फिल्म राम जन्म भूमि का ट्रेलर लांच, दिसंबर के आखिरी सप्ताह में होगी रिलीज
लखनऊ: राजधानी में सोमवार को फिल्म राम जन्म भूमि का ट्रेलर लांच किया गया है। यह फिल्म दिसम्बर के आखिरी सप्ताह में रिलीज होगी। यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी के मुताबिक इस पिक्चर में किसी विशेष समुदाय को निशाना नहीं बनाया गया है।
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बल्कि समाज में फैली बुराइयों को टारगेट किया गया है। यह पिक्चर समाज की दो महत्वपूर्ण बुराइयों के खिलाफ एक फिल्मी प्लेटफार्म से किया गया संघर्ष है।
यह है फिल्म की कहानी
फिल्म रामजन्म भूमि अयोध्या में 30 अक्टूबर और दो नवम्बर 1990 में घटित घटना से शुरू होती है। जिसमें निहत्थे कार्य सेवकों पर गोलियां चलाकर अयोध्या की पवित्र धरती को खून से लाल किया गया था। उसके बाद से जो हालात बदले उसे एक कहानी के रूप में दर्शानी की कोशिश की गई है। फिल्म में एक सदानन्द शास्त्री जी हैं।
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जो रिटायरमेंट के बाद राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के संबंध में सक्रिय हुए और दूसरी तरफ पाकिस्तान का एक एजेंट मौलाना जफर खान है। जो मस्जिद के नाम पर मुसलमानों को भड़काता है और हिन्दू मुसलमानों में फसाद पैदा करने की साजिश करता है और खुद एक बदकिरदार व्यक्ति है।
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जौ गैरकानूनी काम करता है दहशत का सौदागर है। हलाला जैसी गैर शराई प्रथा की आड़ में अपनी बहू के साथ ही उसका शारीरिक शोषण करता है। अंत में मुसलमान उसकी नियत को भांप जाते हैं तो वह भारत छोड़कर पाकिस्तान भाग जाता है।
वसीम रिजवी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के समर्थक
वसीम रिजवी ने कहा कि मैं अयोध्या में राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण का समर्थक हूं क्योंकि बाबर के निर्देश पर मीर बाकी ने अयोध्या में खून खराबा करके राम मंदिरों को तोड़ कर एक मस्जिद रूपी इमारत बनाई।
जिसे शरई तौर पर मस्जिद नहीं माना जा सकता और अयोध्या में उस विवादित ढांचे के नीचे मंदिर पाए जाने की रिपोर्ट इसे साबित करती है। लेकिन कुछ गुमराह बाबर के पैरोकार मीर बाकी के उस विवादित ढांचे को लेकर हिन्दुस्तान का माहौल खराब कर रहे हैं। जिसकी वजह से हिन्दुस्तान में हिन्दू और मुसलमानों के बीच में तासुब बढ रहा है।
कोशिश की है कि मामला आपसी समझौते से तय हो जाए
मैंने कोशिश की है कि यह मामला आपसी समझौते से तय हो जाए, तो अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हो और लखनऊ में एक मस्जिद—ए—अमन बन जाए। ताकि यह मामला बगैर किसी हार जीत के दोनों समुदाय अपने को जीता हुआ समझे, लेकिन कुछ कटटरपंथियों की भीड़ में मेरी एक छोटी सी आवाज दब कर रह गई है। बाबरी पक्षकार इस समझौते पर तैयार नहीं हुए।फिर भी हम कभी ना उम्मीद नहीं होते। हमारी कोशिश जारी है।