फिल्म शोले ने पूरे किए अपने 46 वर्ष, जानिए कुछ दिलचस्प बातें

Film Sholay: 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई फिल्म शोले को अब 46 वर्ष हो गए हैं।

Written By :  Shreedhar Agnihotri
Published By :  Shweta
Update:2021-08-14 19:58 IST

कॉन्सेप्ट फोटो (फोटो सौजन्य से सोशल मीडिया)

Film Sholay: 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई फिल्म शोले को अब 46 वर्ष हो गए हैं। पर यह फिल्म आज भी उतनी ही लोकप्रिय है जितनी पहले थी। इस फिल्म के संवाद लोगों को वैसे ही याद हैं जैसे रामचरित मानस की चौपाइयां । आज हम आपको फिल्म के बारे में कुछ दिलचस्प बातों से रूबरू कराते है।

इस फिल्म की शूटिंग दक्षिण कर्नाटक के एक गाँव रमन्नागढ में हुई थी जो बेंगलुरू से 90 किलोमीटर दूर है।

पहाड़ी क्षेत्र में बसे इस गांव में शूटिंग के लिए आने जाने में दिक्कतों के कारण निर्माता जीपी सिप्पी ने खुद एक सडक बनवाई थी।

 शुरू में यह फिल्म काफी लम्बी बनी थी। फिल्म को बनाने मे ढाई साल लगें। सेंसर बोर्ड ने हिंसात्मक दृष्यों को काट छांट कर इसे 198 मिनट की कर दी। बाद में 1990 में फिर 210 मिनट की फिल्म रिलीज की गयी।

 यह देश की पहली स्टीरियो फोनिक और 70एमएम स्क्रीन वाली फिल्म बनी थी।

 बीरू और जय स्क्रिप्ट राइटर सलीम खान के क्लास में दो छात्र हुआ करते थें। जिनके नाम का उपयोग फिल्म में किया गया।

 फिल्म की स्क्रिप्ट लेकर सलीम-जावेद पहले मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा के पास गए थें पर उनके मना करने के बाद फिर जीपी सिप्पी ने फिल्म बनाने का फैसला लिया।

 डाकुओं की पृष्ठपूमि पर बनी शोले का काफी हिस्सा 'मदर इंडिया, 'गंगा जमुना', 'खोटे सिक्के' और 'मेरा गांव मेरा देश ' से लिया गया था।

 गब्बर सिंह का चरित्र 50 के दशक में ग्वालियर के आसपास विख्यात डकैत गब्बर सिंह से प्रभावित था जो पुलिस वालों नाक कान काट लेता था। इसको बदलकर फिल्म में ठाकुर के हाथ काटने का दृष्य फिल्माया गया।

 'अरे ओ सांभा' डायलाग के बारे में अमजद खां का कहना था कि बचपन में उनके एक पड़ोसी अपनी पत्नी को 'अरे ओ शांति ' कहकर बुलाते थें, उन्ही से सीखा।

 फिल्म की जबरदस्त फोटोग्राफी के लिए छायाकार द्वारका दिबेचा को एक फिएट कार तथा बाल कलाकार सचिन को उनके अभिनय के बदले एक रेफ्रीजरेटर मिला था।

 पुलिस इंस्पेक्टर (ठाकुर बल्देव सिंह) की जगह एक सैन्य अधिकारी और दो पूर्व सैनिकों (बीरू-जय) का पात्र था। बाद में सेंसर के डर से इसे बदल दिया गया।

 फिल्म में जेलर की भूमिका निभाने वाले असरानी की मूंछे अडोल्फ हिटलर से प्रभावित थी।

 सूरमा, भोपाल में एक फारेस्ट आफिसर थे जिनके कैरेक्टर सूरमा भोपाली को फिल्म में षामिल किया गया था।

 गब्बर सिंह का रोल पहले डैनी को दिया जा रहा था पर डेटस न होने के कारण उन्होंने फिल्म नहीं की। जय के रोल के लिए शत्रुघ्न सिन्हा को तथा ठाकुर के रोल के लिए दिलीप कुमार से कहा गया था।

 ''ये दोस्ती हम नहीं छोडे़गेे गाना रोशनी की समस्या के कारण 21 दिन में शूट हो पाया था क्योंकि यह पूरा पहाडी क्षेत्र था।

 संगीतकार आरडी बर्मन का गाया गीत 'मेहबूबा मेहबूबा' एक ग्रीक सिंगर डेमिस रसेज के गीत 'से यू लव मी' की कापी था।

 फिल्म में होली वाला गाना पांच मिनट 42 सेकेड का और 'जब तक है जान' पांच मिनट 21 सेकेन्ड का है। जबकि हर गाने की लम्बाई औसतन साढे तीन मिनट होती है।

 शोले को उस साल केवल एक फिल्म फेयर अवार्ड मिला था जो कि बेस्ट एडिटिंग के लिए एमएस शिंदे को मिला था।

 ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्युट ने साल 2002 में शोले को सर्वश्रेष्ठ दस भारतीय फिल्मों में रखा। वर्ष 2005 में फिल्मफेयर समारोह में इसे पिछले पचास वर्षो की सर्वश्रेष्ठ फिल्म से नवाजा गया।

 फिल्म में जय की लाश जलाने वाले सीन पर पिता हरिवंश राय बच्चन काफी दुखी हुए थें और उन्होंने अमिताभ से कहा था कि वह अब कभी अपनी फिल्मों में ऐसे सीन सूट नहीं करवाएंगें।

 यह फिल्म मुम्बई की मिनर्वा टाकीज में पूरे पांच साल तक चलती रही। इसे तभी उतारा गया जब जीपी सिप्पी की 1980 में शान फिल्म आई।

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