प्रतापगढ़ से नाता है गुलाबो सिताबो का, अलख ने इसके लिए बहाया है पसीना
इशारों-इशारों में बड़ी बात कह देने की कला कठपुतली में होती है। इसने सामाजिक संदेश देने के एक सशक्त माध्यम के तौर आपनी जगह बनायी। कठपुतली के माध्यम से मनोरंजक ढंग से समाज के तान बाने में सामाजिक कुरीतियों की ओर लोगों का ध्यान खींचना इस कला की खासियत है।
प्रतापगढ़: इशारों-इशारों में बड़ी बात कह देने की कला कठपुतली में होती है। इसने सामाजिक संदेश देने के एक सशक्त माध्यम के तौर आपनी जगह बनायी। कठपुतली के माध्यम से मनोरंजक ढंग से समाज के ताने - बाने में सामाजिक कुरीतियों की ओर लोगों का ध्यान खींचना इस कला की खासियत है।
आज अचानक से कठपुतली का जिक्र हो रहा है, ऐसा नहीं है। दरअसल कठपुतली कला और प्रतापगढ़ का रिश्ता चोली दामन का है। आज जब गुलाबो सिताबो पर फिल्म बन रही है तो एक बार फिर कठपुतली के पात्रों पर चर्चा करना तो बनता ही है।महानायक अमिताभ बच्चन गुलाबो सिताबो पर बन रही फिल्म में अभिनय कर रहे हैं।
यह भी पढ़ें....इस फिल्म की शूटिंग करने लखनऊ पहुंचे महानायक अमिताभ बच्चन
ये कठपुतली भी न जाने कितनी परतें खोलने को तैयार है।दरअसल कठपुतली कला अमिताभ बच्चन के पुरखों की धरती प्रतापगढ़ से बहुत गहराई से जुड़ी है। बिग बी प्रतापगढ़ के बाबूपट्टी के हैं और इसी के बगल के गांव नरहरपुर के कायस्थ परिवार में यह कला विरासत के रूप में निखारी और संवारी गई। यहां अब भी ये सिलसिला जारी है।
यह भी पढ़ें......जानिए किस फिल्म में साथ नजर आएंगे बिग बी और आयुष्मान खुराना?
आइये अब उस यात्रा पर चलते हैं, जिसमें नामक ननद भौजाई पात्र के रूप गुलाबो सिताबो का जन्म होता है। इसके पीछे एक लंबी कहानी है और उसकी शुरूआत होती है,नरहरपुर गांव के राम निरंजन लाल श्रीवास्तव से।
श्रीवास्तव जी उन दिनों एग्री कल्चर इंस्टीट्यूटी प्रयागराज में नौकरी के दौरान इस कला को सीखा और गुलाबो सिताबो नामक ननद भौजाई पात्र गढ़े। इस नाम से इन्होंने दर्जनों जगहों कला का प्रदर्शन करके भारतीय परिवारों में कुप्रथा को प्रतिबिंबित करते हुए इसे दूर करने का संदेश दिया।
यह भी पढ़ें......भाईसाहब! अपने बिग-बी अब सिल्वर स्क्रीन पर मुल्ला जी बन आयेंगे नजर
जब एक बार निरंजन लाल श्रीवास्तव जी ने अपना मन इसमें लगाया तो इनके भतीजे अलख नारायण श्रीवास्तव ने इस कला के संरक्षण का कार्य संभाल लिया। इन्होंने इसकी बारीकियों को सीखा और उसे पहचान दिलाई। इनके साथ बीआर प्रजाप्रति समेत कई अन्य लोग भी कठपुतली की बेल को सींचा।
यह भी पढ़ें......मंत्री जी नहीं छोड़ पा रहे VVIP कल्चर, अब योग दिवस पर करवाया ऐसा काम
खास बात ये है कि अलख के मन में कला की ऐसी अलख जगी कि इन्होंने दो-दो बार सरकारी नौकरी से मुंह मोड़ लिया। पं. नेहरू भी इनकी इस कला के मुरीद थे।इनकी कला को देखकर पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी तारीफ की थी। अलख नारायण ने सूचना विभाग, दूरदर्शन, सांस्कृतिक विभाग से जुड़कर कला को विस्तार दिया। हजारों लोगों को इसे सिखाया। सेमिनार में लेक्चर दिए।
इस कला को आक्सीजन देगा
अलख नारायण पिछले चार दशक से लखनऊ में रहते हैं, लेकिन अपने गांव नरहरपुर से इन्होंने नाता नहीं तोड़ा है।इनके पारिवारिक मित्र अमितेंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि दशहरे के दौरान रामलीला के मंच पर यह अपनी कला का प्रदर्शन करने जरूर आते हैं।
बात जब गुलाबो सिताबो फिल्म की सामने आई तो इस पर अलख नारायण श्रीवास्तव का कहना है कि कठपुतली के पात्रों पर हो रहा यह प्रयोग निश्चित रूप से इस कला को आक्सीजन देगा।
यह भी पढ़ें......रांची: PM मोदी ने 40 हजार लोगों के साथ मनाया ‘योग दिवस’
इस कला को और संरक्षण मिलना चाहिए
अलख नारायण का मानना है कि इस कला में वो ताकत है कि ये बहुत ही सहज ढंग से समाज, परिवार और देश को विसंगतियों से सावधान व जागरूक करती है।आज के सामाजिक बुनावट में अनेकों विसंगतियां व्याप्त है। गुलाबो सिताबो बड़ी उम्मीद के साथ् लोगों को दहेज, घरेलू कलह, अशिक्षा, अस्वच्छता आदि से दूरे रहने को प्रेरित करती हैं। अलख नारायण ने कहा कि इस कला को और संरक्षण मिलना चाहिए। संगीत नाटक अकादमी की तरह कठपुतली का भी कोई सरकारी संस्थान बनाया जाना चाहिए। इस आशय का पत्र वह प्रधानमंत्री मोदी को लिखेंगे।