आरसी बोरालः इनके शागिर्द थे नौशाद, गुलाम मोहम्मद व बेगम अख्तर

फिल्मी संगीत में विविधता लाने का श्रेय बंगाल के आरसी बोराल को है। वाद्य यंत्रों से साउंड इफैक्ट देने की शुरुआत भी बोराल ने ही की थी। रायचन्द बोराल एक जमाने में बाङ्ला एवं हिन्दी सिनेमा के मशहूर संगीतकार थे।

Update: 2020-11-25 05:58 GMT
आरसी बोरालः इनके शागिर्द थे नौशाद, गुलाम मोहम्मद व बेगम अख्तर

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: आर. सी. बोराल, क्या आपने कभी ये नाम सुना है। नहीं सुना तो हम आपको बताते हैं कि ये वो शख्सियत है जिसने फिल्मों में पार्श्वगायन यानी प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत की। इस व्यक्ति को पहली संगीतमय कार्टून फ़िल्म बनाने का भी क्रेडिट जाता है। शुरुआत में एक्टरों से ही गाना गवाने की शुरुआत भी बोराल ने की। बोराल की सरपरस्ती में काम करने वालों में नौशाद, गुलाम मोहम्मद, हेमंत कुमार और श्याम सुंदर जैसे बड़े नाम तो हैं ही, बेगम अख्तर और मास्टर निसार ने भी संगीत की शिक्षा इन्हीं से ली थी।

संगीत में विविधता का श्रेय आरसी बोराल को है

फिल्मी संगीत में विविधता लाने का श्रेय बंगाल के आरसी बोराल को है। वाद्य यंत्रों से साउंड इफैक्ट देने की शुरुआत भी बोराल ने ही की थी।

रायचन्द बोराल एक जमाने में बाङ्ला एवं हिन्दी सिनेमा के मशहूर संगीतकार थे।

इनके पिता भी शास्त्रीय संगीतकार थे। बोराल ने पार्श्वगायन तकनीक की खोज में तो महत्वपूर्ण भूमिका निभायी ही कुन्दनलाल सहगल जैसे सुप्रसिद्ध महानायक को भी दुनिया के सामने लाए। शायद लोगों को पता नहीं होगा कि पहले महानायक कुन्दनलाल सहगल कहे गए थे।

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दादा साहब फाल्के सम्मान से सम्मानित बोराल

दादा साहब फाल्के सम्मान से सम्मानित बोराल को पहली संगीतमय कार्टून फ़िल्म बनाने का भी श्रेय प्राप्त है। उनके द्वारा निर्मित तीन कार्टून कथाचित्रों में 'भुलेर शेषे', 'लाख टाका' एवं 'भोला मास्टर' हैं। बोराल को कार्टून फ़िल्म बनाने की प्रेरणा मशहूर हास्य कलाकार चार्ली चैपलिन की फ़िल्म 'सिटी लाइट्स' से मिली थी, जिसे उन्होंने 40 बार देखा था।

दादा मुनि, आर सी बोराल के पसंदीदा एक्टर थे

दादा मुनि कहे जाने वाले अशोक कुमार और देविका रानी बॉम्बे टॉकीज़ के संगीतकार आरसी बोराल के पसंदीदा एक्टर थे। पुराने गानों में गाना शुरू होने से पहले कुछ देर तक सिर्फ संगीत बजता था उसके बाद गायक का गाना शुरू होता था।

जब तक आप इन गायकों की आवाज नहीं सुनेंगे यकीन नहीं कर सकते कि यह गाना सन 1940 में बनी फिल्म का है। यानि एकदम पाश्चात्य संगीत सी धुन लगती है। ये भी कहा जा सकता है कि हिन्दी फिल्म के गानों में पाश्चात्य संगीत का प्रभाव सबसे पहले आर सी बोराल ने शुरु किया।

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