Chuni Lal: नहीं रहा योद्धा, चमार रेजीमेंट के आखिरी सैनिक हवलदार चुन्नी लाल का निधन

Chuni Lal News : ब्रिटिश सेना के खिलाफ विद्रोह करने वाले 'चमार रेजिमेंट' के आखिरी बचे सैनिक हवलदार चुन्नी लाल का निधन हो गया। चुन्नी लाल ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।

Written By :  aman
Update: 2022-11-23 07:25 GMT

हवलदार चुन्नी लाल (Social Media)

Chuni Lal News : ब्रिटिश सेना के खिलाफ विद्रोह करने वाले 'चमार रेजिमेंट' (Chamar Regiment) के आखिरी बचे सैनिक हवलदार चुन्नी लाल का निधन हो गया। चुन्नी लाल ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। दूसरे विश्व युद्ध में कोहिमा से रंगून तक कई मोर्चो पर उन्होंने जापान के विरुद्ध युद्ध लड़ा था। इस जांबाज योद्धा ने मंगलवार देर रात 2 बजे अंतिम सांस ली। चुन्नी लाल को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose) से जा मिलने के जुर्म में 5 साल की जेल भी हुई थी। अब ये योद्धा चिर निद्रा में जा चुका है।

हवलदार चुन्नी लाल चमार रेजीमेंट के एकमात्र जिंदा बचे शख्स थे। चुन्नीलाल जी मूलतः हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिला के निवासी थे। उनके निधन की खबर से इलाके में शोक की लहर है। चुन्नी लाल ने करीब 106 वर्ष की आयु में आखिरी सांस ली। उन्होंने अपना लंबा वक़्त चमार रेजिमेंट को दिया था। 

समय-समय पर किया जाता रहा सम्मानित

चमार रेजिमेंट को दिए वक़्त और अपने जीवन संघर्ष को चुन्नी लाल ने कुछ समय पहले मीडिया से साझा किया था। बातचीत में योद्धा ने चमार रेजीमेंट सहित अनेक सामाजिक अनुभवों को बताया था। चुन्नी लाल एक जिंदादिल और बहादुर इंसान थे। चुन्नीलाल का पैतृक निवास हरियाणा के महेंद्रगढ़ में है। दो साल पहले हरियाणा के तत्कालीन राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य उनके गांव भोजावास सम्मानित करने पहुंचे थे। उस समय उन्होंने कई कहानियां साझा की थी। इसके अलावा, समय-समय पर चुन्नीलाल को कई सम्मान मिलते रहे थे। 

आजाद हिन्द फौज के खिलाफ लड़ने से मना कर दिया

ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने चमार रेजीमेंट के लड़ाकों का इस्तेमाल तब सबसे शक्तिशाली मानी जाने वाली जापानी सेना के खिलाफ किया था। चमार सेना के जवान लड़ाकू और आक्रामक माने जाते थे। हवलदार चुन्नी लाल ने भी जापान के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। मगर, बाद में उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आजाद हिन्द फौज का दामन थाम लिया। इसे अंग्रेजों ने जुर्म करार देते हुए उन्हें 5 साल की कारावास की सजा सुनाई। बता दें कि, चमार रेजिमेंट की आक्रामकता को देखते हुए है अंग्रेजों ने इसे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सेना के खिलाफ भी मैदान में उतारा था। मगर, रेजिमेंट के कई सैनिक बागी हो गए। उन्होंने आज़ाद हिन्द फौज के खिलाफ लड़ने से इनकार कर दिया। इसी बगावत की उन्हें सजा मिली। 

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