वायरस में 17 बार बदलाव: खतरा बढ़ा, बदलते कोरोना पर वैक्सीन कितनी असरदार
कोरोना वायरस किसी भी अन्य वायरस की तरह तेजी से खुद को बदलने में सक्षम है। इस बदलाव के दौरान ये कभी पहले से ज्यादा शक्तिशाली तो कभी पहले से कमजोर हो जाता है।
नई दिल्ली: ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका और इटली में कोरोना वायरस की नई किस्म का पता चलने के बाद दुनिया भर में दहशत पैदा हो गयी है। लेकिन ये कोई पहला म्यूटेशन नहीं है। इस वायरस के म्यूटेशन की रफ़्तार धीमी ही रही है। नए स्ट्रेन को छोड़ दें तो अभी तक कोरोना वायरस के कम से कम आठ स्ट्रेन मिल चुके हैं। पहले वाले सभी स्ट्रेन में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आये थे लेकिन नए स्ट्रेन में 17 बदलाव दिखाई पड़े हैं जो बड़ी और परेशान करने वाली बात है।
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कोरोना वायरस किसी भी अन्य वायरस की तरह तेजी से खुद को बदलने में सक्षम है
कोरोना वायरस किसी भी अन्य वायरस की तरह तेजी से खुद को बदलने में सक्षम है। इस बदलाव के दौरान ये कभी पहले से ज्यादा शक्तिशाली तो कभी पहले से कमजोर हो जाता है। लगातार होते इस बदलाव को म्यूटेशन कहते हैं और इसी के आधार पर जब कोई वायरस तेजी से फैलने लगता है तो उसे वायरस का नया वर्जन या स्ट्रेन कहते हैं।
दुनियाभर के वैज्ञानिक अब तक कोरोना वायरस के 8 से ज्यादा स्ट्रेन का पता लगा चुके हैं और दावा है कि कोरोना वायरस हर 15 दिन में खुद को बदलने की क्षमता रखता है। अगस्त में इस वायरस का एक नया स्ट्रेन मलेशिया में मिला था जिसे डी 614 जी नाम दिया गया। मलेशिया में कोरोना का ये नया वर्जन भारत से लौटे एक व्यक्ति से फैलना शुरू हुआ था जिसने 14 दिन के क्वारंटाइन को बीच में ही तोड़ दिया था। अलग अलग देशों में भी कोरोना के अलग अलग वर्जन मिल चुके हैं।
कोरोना वायरस एक ग्रुप है
कोरोना वायरस दरअसल वायरस का एक ग्रुप है जिसके कई उप ग्रुप का अपता चल चुका है। वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस को मुख्यतः चार उप ग्रुपों में बांटा है – अल्फ़ा, बीटा, गामा और डेल्टा। इनके सात वायरस इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं -
229 ई (अल्फा), एनएल 63 (अल्फा), ओसी43 (बीटा), एचकेयू1 (बीटा), मर्स कोव (ये बीता वायरस है जिससे मर्स बीमारी फ़ैली थी), सार्स कोव (ये भी बीता वायरस है जिससे सार्स बीमारी फ़ैली थी) और अब है सार्स कोव-2 जिससे कोविड-19 बीमारी होती है।
17 बड़े बदलाव
वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन में कम से कम 17 महत्वपूर्ण बदलाव हैं। सबसे महत्वपूर्ण बदलाव ‘स्पाइक प्रोटीन’ में आया है। ये वो प्रोटीन होता है जिसका इस्तेमाल वायरस हमारे शरीर की कोशिकाओं में घुसने के लिए करता है। ब्रिटेन के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि वायरस की ये नई किस्म पहले वाली किस्म के मुकाबले 70 प्रतिशत ज्यादा संक्रामक है। कोरोना का पहले वाला स्ट्रेन 50 फीसदी संक्रामक है। सर्दियों के मौसम में बहुत सतर्क रहने की जरूरत है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा बेकाबू नहीं है नई किस्म
कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि इस पर काबू पाया जा सकता है। संगठन के स्वास्थ्य आपात काल प्रमुख माइक रायन ने जिनेवा में कहा कि स्थिति काबू से बाहर नहीं है लेकिन इसे अपने पर छोड़ा भी नहीं जा सकता है। उन्होंने सभी देशों को उन सभी कदमों को उठाने को कहा जिनकी सफलता साबित हो चुकी है। संगठन के अनुसार, नए स्ट्रेन से जिन्हें संक्रमण हो जाता है वो औसतन 1.5 और लोगों को संक्रमित करते हैं जबकि ब्रिटेन में पहले से मौजूद स्ट्रेनों की रिप्रोडक्शन दर 1.1 है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य कोविड-19 वैज्ञानिक मारिया वान करखोव ने का कहना है कि अभी तक इस बात का कोई प्रमाण सामने नहीं आया है कि नए स्ट्रेन से और ज्यादा गंभीर या और ज्यादा घातक बीमारियां होती हैं।
क्या होगा वैक्सीन का
लोगों के मन में आशंकाएं हैं कि कहीं नए स्ट्रेन के खिलाफ कोरोना की वैक्सीन बेअसर न साबित हो जाए। लेकिन वायरसविज्ञानियों के बीच इस बात पर लगभग सहमति भी है कि इस के आगे मौजूदा वैक्सीनें बेअसर नहीं होंगी। फाइजर के साथ मिल कर वैक्सीन बनाने वाली जर्मनी की कंपनी बायोएनटेक के प्रमुख उगुर साहीन ने कहा है कि उनकी वैक्सीन की वायरस की 20 अलग अलग किस्मों के खिलाफ जांच हुई है और उन जांचों में सफल इम्यून प्रतिक्रिया देखी गई है जिसने वायरस को निष्क्रिय कर दिया।
साहीन ने यह भी बताया कि नया स्ट्रेन एक और मजबूत म्युटेशन का नतीजा है और अगले दो हफ्तों तक वैक्सीन की इसके खिलाफ भी जांच की जाएगी। अमूमन वैक्सीनें शरीर के इम्यून सिस्टम को वायरस के कई पहलुओं से लड़ने के लिए तैयार करती हैं। ऐसे में अगर वायरस के कुछ हिस्सों में म्युटेशन भी हो जाती है तो भी संभव है कि वैक्सीन उसका मुकाबला कर लेगी। लेकिन अगर वायरस पूरी तरह से म्यूटेट हो गया तो संभव है कि वैक्सीन उसके आगे बेअसर हो जाए।
बहुत सतर्क रहने की जरूरत
एक्सपर्ट्स का कहना है कि वायरस का नया स्ट्रेन अपने जीनोम में 17 तरह के बदलाव दिखा रहा है और ये एक व्यापक बदलाव है। अभी नया स्ट्रेन ब्रिटेन से बाहर नहीं पाया गया है लेकिन इसका फैलाव होगा ही। भारत में भी ये स्ट्रेन जरूर आयेगा है। बहुत मुमकिन है कि नया स्ट्रेन भारत में आ भी चुका हो।
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दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि इंग्लैंड में कोरोना वायरस में म्यूटेशन के बाद जो नया वैरिएंट पाया गया वह अभी देश में नहीं है, लेकिन वह देश में आ सकता है। इसलिए पहले की तुलना में अधिक सर्तक रहने और सख्ती से कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करना होगा। सतर्कता में लापरवाही से नए स्ट्रेन का संक्रमण यहां भी फैल सकता है। यदि नया स्ट्रेन यहां आता है तो मामले अचानक बढ़ सकते हैं। इसलिए लोगों को मास्क लगाने, दो गज की शारीरिक दूरी के नियम का पालन सख्ती से करना होगा। जब तक टीका नहीं आ जाता तब तक कोई विकल्प नहीं है।
खुद को और दूसरों को बचाएँ
- कोरोना से बचाव के लिए सामाजिक दूरी रखना जरूरी है। कम से कम दो गज यानी 6 फुट की दूरी बनाए रखें।
- हाथों को बार-बार धोना और सफाई का पूरा ध्यान रखना जरूरी है।
- चेहरे और आंखों को छूना नहीं है।
- छींकते और खांसते समय अपनी नाक और मुंह को रूमाल या टिशू से ढंकें। उपयोग किए गए टिशू को उपयोग के तुरंत बाद बंद डिब्बे में फेंकें।
- अपने इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाएं जिसके लिए पौष्टिक आहार व योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
रिपोर्ट- नीलमणि लाल
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