कॉलेजों में बिकने वाले जंक फूड स्टूडेंट्स में बांट रहे बीमारियां

Update:2018-12-11 21:24 IST

लखनऊ: बर्गर, छोले भटूरे, समोसे, चाऊमिन, मोमोज़ ...... ये किसी होटल का मेन्यू नहीं, बल्कि लखनऊ यूनिवर्सिटी की कैंटीन का मेन्यू चार्ट है। यूनिवर्सिटी के सभी छात्र इन जंक फूड्स को बड़े चटकारे ले लेकर खाते हैं। इनमें से किसी को भी इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि यह जंक फूड इनकी सेहत को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। नेशनल कॉलेज में भी तेल में डूबे समोसे, भटूरे, चाऊमिन खा खाकर अधिकतर छात्र अपनी सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं। केवल यही नहीं, शहर के सभी कॉलेजों का यही हाल है। कॉलेज कैंपस की कैंटीन में खाने के नाम पर केवल फास्ट फूड ही मिलते हैं। इसलिए छात्रों के पास और कोई ऑप्शन नहीं बचता।

सभी कैंटीनों का एक ही हाल

राजधानी में कुल मिलाकर करीब 16 विश्वविद्यालय और 32 डिग्री कॉलेज हैं। इन सभी कॉलेजों की कैंटीन में खाने के लिए छात्रों को फास्ट फूड ही मिलता है। इनकी मेन्यू लिस्ट में समोसा, बर्गर, पिज्जा, चाऊमिन, मोमोज, कोल्ड्रिंक जैसी चीजे ही हैं। लविवि, इस्लामिया, टेक्नो कॉलेज, आईटी कॉलेज, अवध कॉलेज, नेशनल पीजी कॉलेज, जैसे बड़े कॉलेजों की कैंटीन की पड़ताल की गई तो पता चला कि इनमें से किसी भी कैंटीन में दाल चावल, रोटी सब्ज़ी जैसे पौष्टिक आहार की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां तक कि अधिकतर कॉलेजों के बाहर भी फास्ट फूड के ठेले ही दिखाई देते हैं। मजबूरी में छात्रों को इन्हीं चीजों से पेट भरना पड़ता है।

ठेके पर हैं अधिकतर कैंटीन

नेशनल पीजी कॉलेज में कैंटीन के संचालक आशीष जैन ने बताया कि उनकी कैंटीन यहां एक कॉन्ट्रैक्ट के तहत चल रही है। हर साल यह कॉन्ट्रैक्ट बदलता है। 7 साल से वह यहां कैंटीन चला रहे हैं। जंक फूड बेचने पर उनका कहना है कि छात्रों को यही खाना पसंद आता है। कभी किसी ने खाने को लेकर कोई शिकायत नहीं की। उनका कहना है कि तब भी वह इस बात का ध्यान रखते हैं कि यहां मिलने वाले रोल में मैदे की जगह आटे का इस्तेमाल हो।

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इस्लामिया कॉलेज में कैंटीन चला रहे रिज़वान ने बताया कि उनकी कैंटीन भी ठेके पर है। कॉलेज प्रशासन ने उन्हें किराए पर यहां कैंटीन चलाने की अनुमति दी है। फ़ास्ट फ़ूड के सवाल पर उनका कहना है कि जो छात्र खाने को मांगते हैं, हम वही बनाते हैं। कभी कॉलेज या छात्रों की तरफ से खाने के मेन्यू को लेकर कोई सुझाव नहीं दिया गया। उन्हें सरकार की जंक फूड वाली नीति की कोई जानकारी भी नहीं है। लखनऊ यूनिवर्सिटी न्यू कैम्पस में भी छात्रों को कैंटीन में फ़ास्ट फ़ूड ही मिलता है। यहां भी कैंटीन ठेके पर है। कैंटीन के मालिक का कहना है कि यहां बनने वाला खाना हमारी देख रेख में बनता है। कॉलेज की इसमें कोई भागीदारी नहीं है, न कॉलेज ने कभी यह जानने की कोशिश की कि स्टूडेंट्स को क्या परोसा जा रहा है। जो भी यहां बनता है, स्टूडेंट्स की डिमांड पर बनता है। ऐसे में पौष्टिक खाना बनाने की कोई खास डिमांड कभी नहीं हुई।

स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हैं छात्र

कई विश्वविद्यालय के कैंपस बहुत बड़े हैं। दिनभर क्लास अटेंड करने के बाद छात्र इतना थक जाते हैं कि कैंटीन में जो मिलता है वही खा लेते हैं। आईटी कॉलेज की सुनन्दा ने बताया कि अभी तो परीक्षा की वजह से कैंटीन बंद हो गयी है, लेकिन हर रोज़ कैंटीन में हमलोग फ़ास्ट फ़ूड ही खाते हैं। टेक्नो कॉलेज की अक्षरा के तो मोमोज फेवरेट हैं। उन्हें जब फ़ास्ट फ़ूड से होने वाले नुकसान के बारे में बताया गया तो उन्होंने कहा कि कम पैसे में भरपेट खाना मिल जाता है, इसलिए वो इसके नुकसान के बारे में ज़्यादा नहीं सोचती और आसपास कोई अच्छा खाना नहीं मिलता इसलिए इन जंक फ़ूड से ही काम चला लेती हैं।

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इस्लामिया की कैंटीन में तो हर किसी की प्लेट में केवल समोसे, छोले भटूरे और चाऊमिन ही नज़र आई। अम्बेडकर यूनिवर्सिटी की कैंटीन की मेन्यू लिस्ट में भी फ़ास्ट फ़ूड ही दिखाई देता है। छोले समोसे खा रहे अजीत ने कहा कि इतना बड़ा कैम्पस है, एक डिपार्टमेंट से दूसरे तक जाने में 5 से 10 मिनट लग जाते हैं। इसलिए भूख ज़्यादा लगती है। ऐसे में जो भी यहां मिलता है हम उसे ही खा लेते हैं।

3 साल पहले फ़ास्ट फ़ूड हटाने के लिए बनाई गई थी नीति

कॉलेजों में बिकने वाले जंक फूड स्टूडेंट्स को कई बीमारियों की चपेट में ला रहे हैं। लगभग 3 साल पहले केंद्र सरकार ने शैक्षिक संस्थानों से जंक फूड और ज़्यादा फैट वाले ड्रिंक्स को दूर करने के लिए नीति भी बनाई। संयत लोढ़ा ने इनकी जगह 80% ग्रीन फ़ूड मुहैय्या कराने का सुझाव भी दिया लेकिन कॉलेज की कैंटीनों में ग्रीन फूड तो दूर, कोई पौष्टिक खाना भी नहीं मिलता।

जंक फूड से युवाओं की सेहत को खतरा

रेलवे हॉस्पिटल के फिजीशियन डॉ आर के वर्मा बताते हैं कि जंक फूड के ज़्यादा सेवन से युवाओं में डायबिटीज़, हायपर टेंशन, मोटापा, स्ट्रेस जैसी बीमारियां होने का बहुत ज़्यादा खतरा होता है। केजीएमयू के एंडोक्राइन सर्जन डॉ आनंद ने बताया कि फ़ास्ट फ़ूड और ज़्यादा तली हुई चीजें खाने से लड़कियों में ब्रेस्ट कैंसर और पीसीओडी जैसी इनफर्टिलिटी की दिक्कतें बढ़ रही हैं। कम उम्र की लड़कियां जंक फूड के कारण बांझपन का शिकार हो रही हैं। उनका कहना है कि स्टूडेंट्स को स्वस्थ रहने के लिए फ़ास्ट फ़ूड की जगह दाल चावल, रोटी, सब्ज़ी जैसे पौष्टिक खाने को तरजीह देनी चाहिए।

इस विषय पर लखनऊ यूनिवर्सिटी के पीआरओ प्रोफेसर एन के पांडे का कहना है कि उन्होंने कुछ समय पहले नई कैंटीनों के लिए टेंडर बनाया जिसमें पौष्टिक खाने की व्यवस्था होगी। जैसे ही टेंडर पास होगा, स्टूडेंट्स को हेल्थी फ़ूड खाने को मिलेगा।

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