नमन इस योद्धा को: लहूलुहान होकर भी जीत गए करम, नाकाम किए 8 भयानक हमले

करम सिंह का जन्म 15 सितम्बर 1915 को पंजाब के संगरूर ज़िले के भालियाँ वाले गाँव में हुआ था। इनके पिता सरदार उत्तम सिंह एक सम्पन्न किसान थे। वे दूसरे विश्व युद्ध में अपनी वीरता का परचम लहरा चुके थे, जिसके लिए इन्हें 14 मार्च 1944 को सेना पदक मिला था।

Update: 2021-01-20 06:29 GMT
परमवीर चक्र विजेता करम सिंह के मन में साहसिक और रोमांचक ज़िंदगी की ललक थी और चाचा इनके आदर्श थे, जो फौज में जूनियर कमांडिंग ऑफिसर थे।

रामकृष्ण वाजपेयी

नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर का 1948 का युद्ध ही परमवीर चक्र विजेता लाँस नायक करम सिंह की बहादुरी की कहानी नहीं कहता है बल्कि उसके पहले वे दूसरे विश्व युद्ध में अपनी वीरता का परचम लहरा चुके थे, जिसके लिए इन्हें 14 मार्च 1944 को सेना पदक मिला था। और इस सम्मान के साथ ही इन्हें पदोन्नति देकर लांस नायक भी बनाया गया था। करम सिंह का जन्म 15 सितम्बर 1915 को पंजाब के संगरूर ज़िले के भालियाँ वाले गाँव में हुआ था। इनके पिता सरदार उत्तम सिंह एक सम्पन्न किसान थे।

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करम सिंह गाँव में कुश्ती और खेल-कूद के चैंपियन

उन्होंने पहले इनको पढ़ाने की भरपूर कोशिश की लेकिन करम का मन पढ़ाई लिखाई में नहीं लगा। इसके बाद उनकी इच्छा थी कि करम सिंह खेती बाड़ी में ही लग जाएँ, लेकिन इसमें भी उन्हें निराशा हाथ लगी और करम सिंह नालायक बच्चे में शुमार हो गए।

वास्तविकता यह थी कि करम सिंह के मन में साहसिक और रोमांचक ज़िंदगी की ललक थी और चाचा इनके आदर्श थे, जो फौज में जूनियर कमांडिंग ऑफिसर थे। करम सिंह गाँव में कुश्ती और खेल-कूद के चैंपियन कहे जाते थे।

इसी बीच दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। करम सिंह युद्ध से जुड़ी जानकारियां रुचि के साथ लेते थे तभी फौज की भर्ती का एक मौका उनके गाँव में भी आया, जिसे करम सिंह गँवाया नहीं और 26 वर्ष की उम्र में करम सिंह एक फौजी बन गए।

फोटो-सोशल मीडिया

राँची में अपनी ट्रेनिंग उन्होंने कुशलता से पूरी की। इन्हें अगस्त 1942 में सिख रेजीमेंट में लिया गया। वहाँ से ही, करम सिंह ने अपनी धाक एक कुशल नायक के रूप में जमाई और अपने अफसरों को यह आभास दिया कि वह कठिन परिस्थिति में तुरंत ठीक निर्णय लेने की क्षमता रखने वाले सैनिक हैं। जिसके चलते करम सिंह को सेना मेडल मिला।

पोल वॉल्ट तथा ऊँची कूद में नाम रौशन किया

करम सिंह ने अपनी पहचान न सिर्फ लड़ाई के मैदान में बनाई, बल्कि खेल के मैदान में भी वह पीछे नहीं रहे। जहाँ बचपन में वह कुश्ती में अपना नाम रखते थे, वहीं फौज में उन्होंने पोल वॉल्ट तथा ऊँची कूद में नाम रौशन किया।

कश्मीर युद्ध में दुश्मनों से लड़ते हुए बुरी तरह घायल होने के बाद भी अपनी पोस्ट नहीं छोड़ी और दुश्मनों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया। इस जंग में मेजर सोमनाथ शर्मा शहीद हो गए थे।

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13 अक्टूबर 1948 को जब भारत-पाकिस्तान युद्ध अपने चरम पर था और लांस नायक करम सिंह और उनके तीन साथी कश्मीर में सीमा की एक सुदूर अग्रिम चौकी पर तैनात थे। तब उन्होंने न सिर्फ दुश्मनों से लड़ाई लड़ी और बल्कि अपने साथियों की जान भी बचाए रखी।

फोटो-सोशल मीडिया

उत्कृष्ट साहस और अदम्य शौर्य का प्रदर्शन

सिख रेजीमेंट के लांस नायक करम सिंह जम्मू - कश्मीर की रिचमर गली में एक टुकड़ी की कमान संभाले हुए थे। दुश्मन ने बंदूकों और मोर्टारों से भारी गोलाबारी द्वारा हमला शुरु किया जिससे पोस्ट के सभी बंकर बर्बाद हो गए। बुरी तरह घायल और लहुलुहान होते हुए भी लांस नायक करम सिंह एक से दूसरे बंकर मे जाकर अपने साथियों की मदद करते रहे और उन्हें लड़ने के लिए प्रेरित करते रहे।

दुश्मन ने उस दिन आठ बार आक्रमण किया। हर एक हमले के दौरान लांस नायक करम सिंह ने अपने साथियों को प्रोत्साहित किया और उनका जोश बढ़ाया।

रीछमार गली को बचाने के लिए उनकी टुकड़ी ने दुश्मनों पर जवाबी हमला करते हुए गुत्थम-गुत्था की लड़ाई में अपने हथियार के बैनट से प्रहार किया। अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में उत्कृष्ट साहस और अदम्य शौर्य का प्रदर्शन करने के लिए लांस नायक करम सिंह को परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

देश को अपने शौर्य से विजय का इतिहास देने वाले लांस नायक करम सिंह ने एक लम्बा जीवन जिया और 20 जनवरी 1993 को अपने गाँव में शांतिपूर्वक अंतिम सांस ली। उस समय उनकी पत्नी गुरदयाल कौर उनके साथ थीं।

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