गुजरात: विधानसभा चुनाव से पहले वाघेला के बागी तेवर से कांग्रेस की हालत पतली
अपना भारत डेस्क
गांधीनगर: गुजरात में विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस की हालत पतली नजर आ रही है। बीजेपी को पटखनी देने के लिए पार्टी नेताओं में एकजुटता नहीं दिख रही और वरिष्ठ नेता तक एक-दूसरे की टांग खिंचाई में लगे हुए हैं।
राज्य के पार्टी नेताओं में मतभेद इतने गहरा चुके हैं कि पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम शंकरसिंह वाघेला अपना शक्ति प्रदर्शन कहे जाने वाले समर्थकों के एक सम्मेलन में पार्टी के प्रदेश नेतृत्व पर जमकर बरसे। उन्होंने यहां तक कह डाला कि विधानसभा चुनाव इसी साल होने हैं मगर जिस तरह तैयारी की जा रही है उससे पार्टी के दूर-दूर तक जीतने की संभावना नहीं दिख रही है। वाघेला ने कहा, कि जो लोग चुनाव लड़ना तक नहीं जानते हैं वे पार्टी में बॉस बने बैठे हैं और वह अपने समर्थकों से सलाह लेकर पार्टी में रहने को लेकर फैसला करेंगे।
अप्रैल से ही चल रही है खींचतान
वाघेला को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने को लेकर अप्रैल से ही खींचतान चल रही है। 17 अप्रैल को वाघेला के गांधीनगर स्थित आवास पर कांग्रेस के महामंत्री और गुजरात प्रभारी गुरुदास कामथ की उपस्थिति में कांग्रेस विधायकों और नेताओं की बैठक हुई थी। बैठक में 57 में से 36 विधायकों ने साफ तौर पर कहा था कि पार्टी की तरफ से वाघेला को ही मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया जाना चाहिए और अगला चुनाव वाघेला के नेतृत्व में ही लड़ा जाना चाहिए। इस बैठक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भरतसिंह सोलंकी ने हिस्सा नहीं लिया था।
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बड़ा कद और मजबूती है वाघेला की पहचान
जानकारों का कहना है कि बहुसंख्य विधायकों की यह राय सोलंकी को नागवार गुजरी क्योंकि वे खुद को भी सीएम पद का दावेदार मानते हैं। कुछ दिनों बाद कामथ ने गुजरात का प्रभार छोड़ दिया और उनकी जगह अशोक गहलोत को प्रभारी बना दिया गया। हकीकत यह है कि संघ और बीजेपी से टूटकर आए वाघेला को प्रदेश के नेताओं का एक बड़ा गुट कभी स्वीकार नहीं कर पाया, लेकिन वाघेला के बड़े कद और प्रदेश में उनकी मजबूत छवि के चलते ये लोग वाघेला को पूरी तरह किनारे भी नहीं कर पाए। वाघेला विरोधियों के सिर पर हमेशा सोनिया गांधी के विश्वासपात्र नेता अहमद पटेल का हाथ रहा है जिनकी वाघेला से कभी नहीं बनी। पटेल और उनके समर्थक कभी नहीं चाहते कि वाघेला को कांग्रेस अपना सीएम पद का उम्मीदवार बनाए।
सोलंकी से वाघेला की नहीं पट रही
सोलंकी ने कुछ दिनों पूर्व वाघेला से उनके आवास पर मुलाकात के बाद दावा किया था कि उनके बीच कोई मतभेद नहीं हैं। दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान से मुलाकात के बाद लौटे सोलंकी ने यह भी ऐलान किया था कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के सभी 57 विधायकों को टिकट दिए जाएंगे। सोलंकी के इस ऐलान के बावजूद पार्टी की दिक्कतें कम होती नहीं दिख रहीं और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में खींचतान खत्म नहीं हो रही।
सीएम पद की दावेदारी चाहते हैं वाघेला
जानकारों का कहना है कि वाघेला की नाराजगी इस बात को लेकर है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं घोषित किया जा रहा। हालांकि, वे भाषणों में कहते रहे हैं कि वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं। वैसे उनके तेवर से साफ दिख रहा है कि उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी आलाकमान की ओर से इस बाबत अभी तक ऐलान न होने से वे खासे नाराज हैं। यही कारण है कि अपने समर्थकों के सम्मेलन में उन्होंने जमकर भड़ास निकाली। सम्मेलन में उनके विधायक पुत्र महेन्द्र सिंह वाघेला भी उपस्थित थे। बापू (वाघेला को गुजरात में इसी नाम से पुकारा जाता है) के समर्थकों ने तो पिछले दिनों फेसबुक पर हैशटैग के साथ इस तरह का अभियान छेड़ दिया था- बापू फॉर गुजरात: गुजरात नीड्स शंकरसिंह वाघेला, सिंहासन खाली करो कि गुजरात का शेर आता है।
प्रत्याशियों के चयन नहीं होने से नाराज
वाघेला ने अपनी ही पार्टी के नेताओं को निशाना बनाते हुए कहा कि 'चुनावी परीक्षा के लिए सही ढंग से होमवर्क नहीं किया जा रहा है। वे काफी दिनों से कह रहे हैं कि चुनाव के लिए प्रत्याशियों का चयन काफी पहले हो जाना चाहिए। ऐन मौके पर हाथ-पांव बांधकर पानी में फेंक देने से किसी से तैरने की उम्मीद नहीं की जा सकती मगर हालात कुछ ऐसे ही दिख रहे हैं। 2012 के चुनाव में भी यही किया गया था। अंतिम समय में प्रत्याशी घोषित होने से पार्टी को काफी नुकसान हुआ था।'
बीजेपी की नाराजगी का उठाना चाहते हैं फायदा
वाघेला ने कहा, कि इस बार बीजेपी से पाटीदार, ओबीसी और अन्य जातियों की नाराजगी के चलते सही तैयारी कर पार्टी सत्ता में वापसी कर सकती है। उन्होंने सभी 57 विधायकों से पूछे बिना उन्हें प्रत्याशी बनाने के बारे में घोषणा करने के प्रदेश नेतृत्व के फैसले पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने सीएम पद का दावेदार होने की संभावना से इनकार किया मगर यह भी कहा, कि इस पर चर्चा से पहले चुनाव जीतकर सरकार बनाने की स्थिति में पहुंचना जरूरी है।
आलाकमान को ताकत दिखाई ताकत!
वाघेला का यह बयान पार्टी नेताओं में मतभेद को समझने के लिए काफी है कि उन्होंने पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी से कहा है, कि पार्टी के ही कुछ लोग उन्हें बाहर करने की साजिश रच रहे हैं। माना जा रहा है कि पार्टी आलाकमान को अपनी ताकत दिखाने के लिए ही वाघेला ने समर्थकों का यह सम्मेलन आयोजित किया। आलाकमान अभी वाघेला को वह महत्व नहीं दे रहा है जो वह चाहते हैं। यही कारण है कि वाघेला ने अपने ट्विटर अकाउंट से राहुल गांधी को अनफालो कर दिया था। मजे की बात यह है कि इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने पार्टी की आधिकारिक बैठक से भी किनारा कर लिया। इसे उनके व गुजरात के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भरतसिंह सोलंकी के बीच संबंधों की खटास का नतीजा माना जा रहा है। राजनीतिक हलकों में तो यहां तक चर्चा है कि वाघेला अध्यक्ष पद से सोलंकी की छुट्टी चाहते हैं।
वाघेला के अगले कदम को लेकर कयासबाजी
वैसे तो वाघेला ने अभी तक खुलकर अपनी कोई मंशा जाहिर नहीं की है मगर यह माना जा रहा है कि वे कांग्रेस में तभी बने रहेंगे जब उन्हें अगले विधानसभा चुनाव का सेनापति घोषित किया जाए। वे अपनी चुनावी रणनीति में किसी प्रकार का हस्तक्षेप भी नहीं चाहते मगर लाख टके का सवाल तो यह है कि क्या पटेल व सोलंकी का गुट वाघेला की यह इच्छा पूरी होने देगा। राज्य की राजनीति के जानकार तो यही कहते हैं कि ऐसा होना मुश्किल है। ऐसे में वाघेला के अगले कदम को लेकर कयासबाजी का दौर जारी है। यह कयासबाजी तो उस समय से ही चल रही है जब वाघेला की भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात हुई थी। हर किसी को वाघेला के अगले कदम का इंतजार है कि वे कांग्रेस में बने रहेंगे या भाजपा में जाएंगे या अपने समर्थकों संग अलग चुनाव लडऩे को तरजीह देंगे।