AIPEF प्रतिनिधिमंडल ने की केंद्रीय विद्युत मंत्री से मुलाकात, ज्ञापन देकर की यह मांग

AIPEF: ज्ञापन में कहा गया अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी का प्रयोग महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, यूपी, बिहार और कुछ अन्य प्रांतों में किया गया किंतु प्रयोग पूरी तरह से विफल रहा।

Newstrack :  Network
Update: 2024-07-04 08:19 GMT

Union Power Minister Manohar Lal Khattar   (फोटो: सोशल मीडिया )

AIPEF: ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज (04 जुलाई) को केंद्रीय विद्युत मंत्री मनोहर लाल खट्टर से दिल्ली में मुलाकात कर उनका स्वागत किया और उन्हें एक ज्ञापन दिया। ज्ञापन के माध्यम से फेडरेशन ने यह मांग की है कि ऊर्जा क्षेत्र एवं बिजली उपभोक्ताओं के व्यापक हित में इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल का प्रस्ताव अब न लाया जाए और निजीकरण के व अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी के विफल प्रयोग को वापस लिया जाए। फेडरेशन ने यह भी मांग की है कि कोयले के लगातार बढ़ रहे उत्पादन को देखते हुए राज्यों के बिजली उत्पादन घरों को अनिवार्य रूप से कोयला आयात करने का निर्देश वापस किया जाए। फेडरेशन ने कहा है कि ऊर्जा क्षेत्र को सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए विशेषज्ञ पावर इंजीनियर्स को देश के सभी पावर कार्पोरेशन में शीर्ष प्रबंधन पदों पर तैनात किया जाए।

फेडरेशन के प्रतिनिधि मंडल में मुख्य रूप से फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे, सेक्रेटरी जनरल पी रत्नाकर राव, मुख्य संरक्षक पदमजीत सिंह,अजयपाल सिंह अटवाल,यशपाल शर्मा, प्रशांत चतुर्वेदी और एके जैन सम्मिलित थे।

फेडरेशन के ज्ञापन में कहा गया है कि विगत कुछ वर्षों में केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल के जरिए इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 में संशोधन करने के प्रयास किया। इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल का मुख्य उद्देश्य यह था कि विद्युत वितरण के क्षेत्र में निजी घरानों को लाइसेंस दिया जाए और उन्हें सरकारी क्षेत्र की विद्युत वितरण कंपनियों के नेटवर्क के इस्तेमाल की इजाजत दी जाए।

सरकारी क्षेत्र की वित्तीय हालत और खराब

उल्लेखनीय बात यह है कि निजी क्षेत्र के बिजली घरों को सभी श्रेणी के उपभोक्ताओं को बिजली देना अनिवार्य नहीं था। स्वाभाविक है निजी क्षेत्र की कंपनियां सरकारी वितरण कंपनी का नेटवर्क इस्तेमाल कर मुनाफे वाले इंडस्ट्रियल और कमर्शियल उपभोक्ताओं को बिजली देती जिससे सरकारी क्षेत्र की वित्तीय हालत और खराब हो जाती जो न तो पावर सेक्टर के हित में था और न ही गरीब घरेलू उपभोक्ताओं और किसानों के हित में।

ज्ञापन में कहा गया है कि अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी का प्रयोग महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और कुछ अन्य प्रांतों में किया गया किंतु यह प्रयोग पूरी तरह से विफल रहा और अधिकांश अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी के करार निरस्त किए जा चुके हैं। इसी प्रकार उड़ीसा प्रांत में संपूर्ण विद्युत वितरण क्षेत्र का निजीकरण किया गया। यह प्रयोग भी बुरी तरह से विफल रहा और 2015 में रिलायंस पावर के सभी लाइसेंस रद्द कर दिए गए। किंतु दुर्भाग्य की बात है कि 2020 में पुनः उड़ीसा में संपूर्ण वितरण क्षेत्र टाटा पावर को दे दिया गया है। इसके बावजूद कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। इसलिए निजीकरण के और अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी के इन विफल प्रयोग को अब वापस लेने का समय आ गया है।

बताते चले कि इस ज्ञापन में यह भी कहा गया है की एक और कोल इंडिया लिमिटेड यह दावा कर रहा है कि कोयले का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। कोल इंडिया लिमिटेड का यह भी दावा है कि देश के ताप बिजली घरों के लिए पर्याप्त कोयला उपलब्ध है। ऐसे में पिछले कुछ वर्षों से राज्यों के ताप बिजली घरों के लिए कोयला आयात करना अनिवार्य किया जाना किसी भी प्रकार उचित नहीं है। हाल ही में केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने एक आदेश के जरिए 4% कोयला आयात करने का आदेश अक्टूबर 2024 तक के लिए बढ़ा दिया है । इन आदेशों को अब वापस लेने का समय है।


आम जनता को मिले सस्ती बिजली 

फेडरेशन के ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि सरकार का और बिजली इंजीनियरों का एकमात्र उद्देश्य यही है कि आम जनता को सस्ती बिजली मिले। उल्लेखनीय है कि सबसे सस्ती बिजली राज्य के बिजली उत्पादन घरों से मिलती है, सेंट्रल सेक्टर से मिलने वाली बिजली इसकी तुलना में कुछ महंगी होती है और सबसे अधिक महंगी बिजली निजी क्षेत्र से खरीदनी पड़ती है। ऐसे में यदि आम उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली देना है तो राज्यों के जेनरेशन कंपनियों को और सशक्त करना होगा और राज्यों की जेनरेशन कंपनियों को और अधिक मात्रा में नई परियोजनाएं देनी होगी। इसके अलावा निजी घरानों के साथ किए गए 25- 25 साल के महंगी बिजली खरीद के पावर परचेज एग्रीमेंट की पुन: समीक्षा करने का भी समय आ गया है और राज्यों के विद्युत वितरण कंपनियों को इस बात की अनुमति मिलनी चाहिए कि ऐसे महंगी बिजली खरीद के पावर परचेज एग्रीमेंट की पुन: समीक्षा भी कर सके ।

आपको बता दें कि फेडरेशन ने केंद्रीय विद्युत मंत्री से यह मांग की है कि देश के पावर सेक्टर को आत्मनिर्भर, कुशल और सक्षम बनाने के लिए यह जरूरी है कि देश के सभी पावर कारपोरेशन में शीर्ष प्रबंधन पदों पर विशेषज्ञ और योग्य पावर इंजीनियर्स की तैनाती की जाए। फेडरेशन ने उम्मीद जताई है कि पावर सेक्टर को सशक्त, आत्मनिर्भर बनाने की प्रक्रिया में केंद्रीय विद्युत मंत्रालय समय-समय पर पावर इंजीनियर फेडरेशन और उपभोक्ता संगठनों के साथ विचार विमर्श की प्रक्रिया बनाएगी ।



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