अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive: भारत और नेपाल के संबंध

Update:2017-09-01 19:16 IST

अनीता वर्मा

भारत और नेपाल के मध्य गहरे घनिष्ठ संबंध हैं। भौगोलिक निकटता, एक खुली सीमा, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक बंधनों ने दोनों देशों के मध्य प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक संबधों को मधुर बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया है। दोनों देशों के मध्य खुली सीमा का होना अनूठे संबंध को ही प्रदर्शित करता है।

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खुली सीमा के फलस्वरूप दोनों देशों के नागरिक एक दूसरे के देश में मुक्त आवागमन करते हैं। हिमालय की गोद में बसा नेपाल प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थलबद्ध देश होने के बावजूद भारत सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देश है क्योंकि चीन द्वारा तिब्बत पर आधिपत्य के पश्चात नेपाल, भारत और चीन के मध्य बफर स्टेट का कार्य करता है। नेपाल में जैव विविधता की प्रचुरता होने के साथ-साथ जल विद्युत की अपार संभावना हैं। इसी संदर्भ में कई जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण भारत सरकार की सहायता से किया गया है।

नेपाल और भारत का एक-दूसरे के अहम पड़ोसी राष्ट्र है। इसलिए भारत तो नेपाल के साथ संबंधों को निरंतर मधुर बनाने हेतु प्रयासरत है, लेकिन नेपाल भी भारत के साथ बेहतर संबंधों की वकालत करता है। इसी क्रम में नेपाली प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा की पांच दिवसीय (23-27 अगस्त 2017) तक की यात्रा को देखा जा सकता है। भारत, नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है क्योंकि चीन की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा से संपूर्ण विश्व परिचित है।

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जैसे हाल के डोकलाम में घटित घटना से। इसलिए भारत द्वारा भी नेपाल में चीन के प्रभाव को निरंतर कम करने का प्रयास कई दशकों से जारी है। इसी संदर्भ में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की 2-4 नवंबर 2016 की तीन दिवसीय नेपाल यात्रा को देखा जा सकता है। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने भी नेपाल की यात्रा की थी। सितंबर 2016 में नेपाली प्रधानमंत्री प्रचंड ने भारत यात्रा की यात्रा की, जिससे दोनों देशों के मध्य आपसी विश्वास और सहयोग में वृद्धि हुई। नेपाल ने सितंबर 2016 को उड़ी में हुए आतंकी हमले की निंदा की।

साथ ही आतंकवाद पर भारत के कड़े रुख के कारण नवंबर 2016 में होने वाली सार्क सम्मेलन को स्थगित किया गया और नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका ने भारत के रुख का समर्थन किया। वैसे भारत-नेपाल का घनिष्ठ मित्र है बावजूद संबंधों में प्राय: उतार चढ़ाव देखने को मिलते हैं।

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लेकिन हाल के वर्षों में दोनों देशों के मध्य तनाव का मुख्य कारण 20 सितंबर 2015 को नेपाली संविधान का लागू होना रहा है। वस्तुत: नेपाली संविधान में मद्देशियों के उचित प्रतिनिधित्व न होने के कारण मद्देशी जनता संविधान के कुछ प्रावधानों का बहिष्कार कर सडक़ों पर विरोध प्रदर्शन के लिए उतरे। उसी क्रम में हिंसा व आगजनी की घटना ने भारत-नेपाल सीमा पर तनावपूर्ण वातावरण को निर्मित किया, जिसके फलस्वरूप मद्देशियों ने भारत द्वारा नेपाल को आपूर्ति किए जा रहे ईंधन, रसद इत्यादि को भारत-नेपाल सीमा को बाधित कर नेपाल में प्रवेश को रोक दिया।

इससे नेपाल में आवश्यक चीजों की भारी किल्लत होने पर तत्कालीन नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत को इसके पीछे जिम्मेदार ठहराया। इसका फायदा उठाकर चीन पुन: नेपाल की मदद के लिए सक्रिय हुआ और नेपाल को पेट्रोलियम पदार्थों और अन्य सामग्री को उपलब्धता कराया और काडमांडू को रेलमार्ग द्वारा चीन से जोडऩे की बात कही। उस दौरान नेपाल चीन के काफी करीब आ गया था। लेकिन शीघ्र ही नेपाल को वास्तविकता ज्ञात हुई कि फिलहाल भारत की मदद के बगैर उसकी दैनिक आवश्यकता की पूर्ति असंभव है क्योंकि नेपाल एक स्थल बद्ध देश जिसकी खुली सीमा भारत के साथ लगती है।

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भारत-नेपाल संबंधों में तनाव को कम करने हेतु नेपाली प्रधानमंत्री प्रचंड ने तीन दिवसीय (15 से 18 सितंबर 2016) भारत की यात्रा की। प्रधानमंत्री मोदी ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। दोनों प्रधानमंत्रियों की वार्ता के पश्चात तीन समझौते व 25 सूत्रीय संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए। पहला समझौता-भारत नेपाल के भूकंप के बाद पुनर्निर्माण हेतु 75 करोड़ डॉलर की मदद करेगा। 75 करोड़ डॉलर की मदद विनाशकारी भूकंप के बाद दी गयी है। जो एक अरब डॉलर सहायता के अतिरिक्त है। दूसरा तराई क्षेत्र में सडक़ निर्माण से संबंधित है।

तीसरा नेपाल के तराई क्षेत्र में सडक़ और संरचना को सुधारने और उसे उन्नत बनाने हेतु परियोजना प्रबंधन परामर्श सेवा को लेकर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। प्रधानमंत्री प्रचंड की भारत यात्रा को सफल माना जा रहा है। नेपाली प्रधानमंत्री ने कहा कि नेपाली संविधान में सभी नागरिकों के उचित प्रतिनिधित्व को समाहित करके ही संविधान को लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि नेपाल की धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों हेतु नहीं होने दी जाएगी। नेपाली प्रधानमंत्री हरिद्वार के पतंजलि योगपीठ भी गये। यह भारत के प्रति स्नेह को ही प्रदर्शित करता है।

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वस्तुत: नेपाल राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है। समकालीन परिप्रेक्ष्य में नेपाल के साथ संबंधों को निरंतर प्रगाढ़ बनाने की आवश्यकता है। क्योंकि चीन नेपाल में अपनी सक्रियता को बढ़ा रहा है जो भारत के हितों के प्रतिकूल होगा। इसलिए पूर्व भारतीय राष्ट्रपति की 2-4 नवंबर 2016 की तीन दिवसीय नेपाल यात्रा भी महत्वपूर्ण है। गत अठारह वर्ष में यह पहले भारतीय राष्ट्रपति है जिन्होंने नेपाल की यात्रा कर संबंधों को और मजबूती प्रदान करने की कोशिश की।

2 नवंबर को त्रिभुवन हवाई अड्डा पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का स्वागत किया। और बाद में दोनों नेताओं की बैठक शीतल निवास में हुई। यह बैठक गर्मजोशी भरी और सौहार्द पूर्ण थी। पशुपति नाथ मंदिर के दर्शन किए। वही पर नागरिक अभिनंदन किया गया। यह भारत-नेपाल सांस्कृतिक संबंधों की मजबूती को प्रदर्शित करता है।

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नेपाल के उपराष्ट्रपति नंदा बहादुर पुन ने भी भारतीय राष्ट्रपति से मुलाकात की। उन्होंने कोसी और गंगा नदियों के जरिए जल संपर्क विकसित करने करने की नेपाल की इच्छा व्यक्त की, जो नेपाल को पश्चिम बंगाल के बंदरगाह से जोड़ेगा। ज्ञात हो कि नेपाल एक स्थलबद्ध देश है, जिसकी भारत से 1850 किलोमीटर की सीमा पांच राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम से लगती है। ऐसे में यदि इस योजना को भविष्य में अमली जामा पहनाया जाता है तो नेपाल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।

लेकिन व्यावहारिक समस्या यह है कि जिस परियोजना को उप राष्ट्रपति ने उठाया है वो मूर्त रूप तभी ले सकता है जब नदियों पर बांधों का निर्माण हो और कोसी विकास परियोजना शुरू की जाए। लेकिन 60 वर्ष से अधिक समय से कोसी विकास परियोजना नदी पर बांध बनाने से विस्थापन और भूमि संबंधी मुद्दों के कारण लंबित है। भारतीय राष्ट्रपति ने विकास हेतु इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा का माहौल बनाने की जरूरत पर बल दिया।

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भारतीय राष्ट्रपति के नेपाल यात्रा के पश्चात राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी भी भारत की यात्रा पर आई और अब नेपाली प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा पांच दिवसीय (23-27 अगस्त 2017) भारत की यात्रा पर है। नेपाली प्रधानमंत्री का दौरा उस वक्त हो रहा है जब भारत और चीन के मध्य तीन महीने से गतिरोध बना हुआ है। इसलिए इस यात्रा की काफी अहमियत है। दरअसल चीन का डोकलाम मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करने का स्वप्न धराशायी हो चुका है।

डोकलाम मुद्दे पर कोई राष्ट्र चीन के पक्ष में खड़ा नहीं दिखाई दे रहा है भले ही वो नेपाल ही क्यों न हो। जबकि चीन की महत्ताकांक्षी परियोजना वन वेल्ट वन रोड के साथ नेपाल खड़ा है। इसलिए चीन ने नेपाली प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के भारत यात्रा पर सधी हुई टिप्पणी दिया। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि 21वीं सदी में अंतरराष्ट्रीय संबंध नफा नुकसान पर आधारित या देशों के मध्य संतुलन बैठाने के लिए नहीं होना चाहिए और भारत-नेपाल के मध्य बनते मजबूत रिश्ते से वो प्रसन्न है।

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(लेखिका अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार हैं)

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