गुजरात में BJP फिसलती इससे पहले ही अय्यर की जुबान फिसल गई

Update: 2017-12-18 11:50 GMT

विनोद कपूर

लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) गुजरात में फिर से सरकार बनाने के बावजूद 100 अंकों का आंकडा पाने से वंचित रह गई। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दो दिन पहले ही संसद भवन में संवाददाताओं से कहा था, कि ओपिनियन पोल और उनकी पार्टी के नेता जो भी दावे करें, लेकिन पार्टी को सौ से ज्यादा सीटें नहीं मिलेगी।

मोदी का मैजिक था कि बीजेपी जीत गई। लेकिन इस जीत को शानदार तो नहीं कहा जा सकता। अब तक शर्मनाक हार के बारे में पढ़ा-सुना था, लेकिन इस जीत को क्या कहा जाए? बीजेपी को सालों से दिल से चाहने वाले, इस परिणाम से ज्यादा खुश नहीं हो सकते।

बीजेपी गुजरात में 22 साल पहले 1995 में सत्ता में आई थी। उस वक्त गुजरात में बात-बात पर साम्प्रदायिक दंगे भड़क जाते थे। वह इलाका कर्फ्यू में डूब जाता था। कांग्रेस के शासन से गुजरात की जनता तंग आ गई थी। उसने गुजरात में बीजेपी को सत्ता सौंप दी । हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 121 सीटें मिली और पहली बार उसकी सरकार बनी । अब तक गुजरात की सत्ता में रही कांग्रेस 45 सीटों पर ही सिमट गई ।

साल 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगे ने राज्य को हिंदू और मुसलमान में बांट दिया था। इस बड़े पैमाने पर हुई हिंसा में 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए। करोड़ों की संपत्ति लूट ली गई। दंगे में गुलबर्गा सोसायटी में कांग्रेस एमपी समेत जकिया जाफरी तथा 58 लोगों की हत्या खासी चर्चा में रही। निर्माता-निर्देशत राहुल ढोलकिया ने इस पर एक अंग्रेजी फिल्म 'परजानिया' नाम से बनाई थी। इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।

गुजरात दंगे के बाद 2002 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के पक्ष में जाएंगे, ये सबको पता था। चुनाव के बाद बीजेपी की सरकार बनी और पार्टी को अब तक की सबसे ज्यादा 127 सीटें मिली कांग्रेस को मात्र 51 ही। साल 2007 के चुनाव में भी बीजेपी का प्रदर्शन शानदार रहा। सीएम नरेंद्र मोदी के करिश्मे से पार्टी 117 सीटें जीत गई। पिछले चुनाव में भी बीजेपी की सीटें 115 थी, जबकि कांग्रेस बढ़कर 61 पर पहुंच गई।

लोकसभा के 2014 के चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी पीएम बन गए। गुजरात में शून्यता जैसा माहौल हो गया। मोदी ने पटेल वोट को अपने पास समेटे रखने के लिए आनंदी बेन पटेल को सीएम बनाया। उनके कार्यकाल में ही हार्दिक पटेल पाटीदार नेता के तौर पर उभरा, जिसने आरक्षण को लेकर आंदोलन चलाया। उसे मिले समर्थन से आनंदी बेन की कुर्सी हिल गई और उन्हें हटाकर विजय रुपाणी को सीएम बना दिया गया।

इस बार गुजरात बीजेपी के हाथ से फिसलता दिख रहा था, लेकिन उससे पहले ही कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की जुबान फिसल गई और जाती सत्ता वापस आ गई।

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