Lachit Borphukan: लचित बोरफुकन, जिन्होंने मुगलों को चटा दी थी धूल
Lachit Borphukan: मुगलों से लोहा लेने वाले प्रसिद्ध असमिया जनरल और लोक नायक लचित बोरफुकन की 400 वीं जयंती पर आज से दिल्ली में समारोह आयोजित किया जा रहा है।
Lachit Borphukan: मुगलों से लोहा लेने वाले प्रसिद्ध असमिया जनरल और लोक नायक लचित बोरफुकन की 400 वीं जयंती पर आज से दिल्ली में समारोह आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पीएम मोदी भी शामिल होंगे। लचित बोरफुकन को पूर्वोत्तर का शिवाजी भी कहा जाता है। क्योंकि उन्होंने शिवाजी की तरह मुगलों को कई बार युद्ध के मैदान में हराया था।
लचित बोरफुकन, आहोम साम्राज्य के एक सेनापति और बोरफुकन (मंत्रिपरिषद के सदस्य) थे, जो सन 1671 में हुई सराईघाट की लड़ाई में अपनी नेतृत्व-क्षमता के लिए जाने जाते हैं, जिसमें असम पर पुनः अधिकार प्राप्त करने के लिए रामसिंह प्रथम के नेतृत्व वाली मुग़ल सेनाओं का प्रयास विफल कर दिया गया था।
अहोम साम्राज्य
अहोम राजाओं ने 13वीं सदी की शुरुआत से लेकर 19वीं सदी की शुरुआत तक लगभग 600 वर्षों तक पूर्वोत्तर के एक बड़े हिस्से पर शासन किया था। यह साम्राज्य ब्रह्मपुत्र घाटी के ऊपरी और निचले इलाकों में फैला हुआ था। जब दिल्ली में मुगलों का शासन हुआ उस काल में 1615 से 1682 के दौरान जहांगीर से औरंगजेब तक अहोम राजाओं और मुगलों के बीच कई संघर्ष हुए।
लचित एक शानदार सैन्य कमांडर थे। उन्हें राजा चरध्वज सिंहा ने अहोम साम्राज्य के पांच बोरफुकनों (सेनापति तथा मंत्री) में से एक के रूप चुना था और प्रशासनिक, न्यायिक और सैन्य जिम्मेदारियां दी थीं। मुगलों के विपरीत बोरफुकन ने गुरिल्ला रणनीति को प्राथमिकता दी। शिवाजी की मुठभेड़ों की तरह, लचित ने बड़े मुगल शिविरों और स्थिर पदों को नुकसान पहुंचाया।
आज के गुवाहाटी क्षेत्र को फिर से पाने के लिए मुगलों ने अहोम साम्राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ा था जिसे 'सराईघाट की लड़ाई' कहा जाता है। इस युद्ध में औरंगजेब की मुगल सेना 1,000 से अधिक तोपों के अलावा बड़े स्तर पर नौकाओं के साथ लड़ने आई थी लेकिन लचित ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया था।
सरायघाट की लड़ाई के एक साल बाद लंबी बीमारी से लचित बोरफुकन का निधन हो गया। एक किंवदंती के मुताबिक वास्तव में वह सरायघाट की लड़ाई के दौरान बहुत बीमार थे लेकिन उन्होंने वीरतापूर्वक अपने सैनिकों को जीत दिलाई थी।
सरायघाट की लड़ाई में मुग़ल सेनापति राम सिंह ने अहोम सैनिकों और अहोम सेनापति लचित बोरफुकन के हाथों अपनी पराजय स्वीकार करते हुए लिखा, "महाराज की जय हो! सलाहकारों की जय हो! सेनानायकों की जय हो!देश की जय हो! केवल एक ही व्यक्ति सभी शक्तियों का नेतृत्व करता है! यहां तक कि मैं राम सिंह, व्यक्तिगत रूप से युद्ध-स्थल पर उपस्थित होते हुए भी, कोई कमी या कोई अवसर नहीं ढूंढ सका