BHU के कुलपति का आखिरी भाषण भी आ गया विवादों में, देखें पूरी रिपोर्ट
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन 26 नवंबर को बीएचयू के उडुप्पा सभागार में एक यादगार विदाई भाषण दिया
वाराणसी /लखनऊ: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन 26 नवंबर को बीएचयू के उडुप्पा सभागार में एक यादगार विदाई भाषण दिया। प्रो.त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय परिसर में कई और परिसर बनाने की कोशिशों पर प्रहार किया। उन्होंने महामना के सपनो का जिक्र किया। उन्होंने महामना के त्याग और तपस्या से निर्मित इस विद्या संकुल की वैश्विक विरासत की बात की।
कुलपति प्रो. गिरीश चन्द्र ने महामना के संकल्प से निर्मित इस परिसर को एक बनाये रखने की बात की। उन्होंने इस परिसर की महान परम्परा और विरासत पर बात की। भारत के एक मात्र सोलर ऊर्जा से परिपूर्ण इस परिसर की ढेर सारी उपलब्धियों पर बात की। अपने आखिरी सम्बोधन में उन्होंने इस परिसर के लिए भरपूर शुभ मंगल व्यक्त किया। बीसी महोदय ने साढ़े आठ सौ करोड़ की लगत से बनाने वाले कैंसर अस्पताल की बात की। फिर भी प्रो त्रिपाठी का यह भाषण विवादों में आ गया।
प्रो त्रिपाठी के इस विदाई भाषण को जब अखबारों में प्रकाशित किया गया तो विवाद बढ़ गया। अखबारों ने लिखा कि प्रो त्रिपाठी ने अपने भाषण में अयोग्य लोगों की नियुक्ति की बात कही। ऐसे मुद्दे पर विवाद तो होना ही था। इसे परखने के लिए अपना भारत /न्यूज़ ट्रैक (newstrack.com) ने उस पूरे विदाई भाषण की रिकॉर्डिंग मंगाई। इस रिकॉर्डिंग को देखने के बाद जो तथ्य सामने आए उसे सुन या देख कर साफ़ हो गया कि जिस बात को प्रो त्रिपाठी के मुंह से कहलवाया गया है वैसा तो उन्होंने कहीं कहा ही नहीं। पाठकों को समझने के लिए उनके भाषण के विवादित हिस्से का अविकल (Realistic) पाठ यहां प्रस्तुत किया जा रहा है-
... सरकार का लक्ष्य था कि (विश्वविद्यालयों में) यहां अस्सी प्रतिशत शैक्षिक पद भर दिए जाएं (कम से कम), न्यूनतम लक्ष्य तय किया गया था, किन्तु यहां 84.6 प्रतिशत शैक्षिक पदों पर नियुक्तियां पूर्ण की गईं।(तालियां) अब अनेक तरह की बातें कही जा रही हैं, कही जानी भी चाहिए, क्योंकि जिस शिक्षा ने हमारा निर्माण किया है, उसने हमें यह भी सिखाया है कि जब कभी हमारी बात न बनें तो हम यह आरोप मढ़ दें कि यह व्यवस्था ठीक नहीं है।
लेकिन मैं आपके सामने यह पूरे विश्वास से कहता हूं और आपको यह विश्वास दिलाता भी हूं कि मैं भी मनुष्य हूं, nothing in this creation of god is perfect, मेरे अन्दर भी स्वभावगत दोष हो सकते हैं, किन्तु मैं आपको विश्वास दिलाकर कह सकता हूं कि I tried my best to maintain National character of BHUख, नॉर्थ इस्ट से लेकर बंगाल, केरल, ओडिशा, आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हिमाचल और शायद ही कोई राज्य हो जहां का योग्य उम्मीदवार आपके यहां (बीएचयू) नियुक्त न हुआ हो, आप नियुक्त लोगों की लिस्ट उठाकर देखें और उसे गौर से देखने के बाद अगर कोई टिप्पणी करते हैं तो मुझे खुशी होगी।
( तालियां बजती हैं और उसी दरम्यान मंच के नीचे पहली कतार में एक रिटायर प्रोफेसर श्री सिंह बगल बैठे प्रोफेसर से धीरे से कहते हैं कि एक दो अयोग्य प्रमोशन पा गए हैं, वाइस चांसलर जीसी त्रिपाठी इसे सुन लेते हैं, त्रिपाठी श्री सिंह की ओर रुखकर जवाब में कहते हैं)...हां कभी कभी कुछ अयोग्य लोग हो जाते हैं, मजबूरी है,कोई योग्य नहीं मिला तो कोई अयोग्य ही नियुक्त होगा। यहां भी हुए हैं। मैं जानता हूं जिन पर इशारा कर रहे हैं( श्रीसिंह प्रमोशन की नियुक्त पर पहले कुलपति को कुछ बता चुके थे, जिसमें हेड को लेकर शिकायत की गई थी, कुलपति उसी सन्दर्भ में जवाब दे रहे हैं जिसे बीएचयू के अध्यापक खूब ठीक से समझ रहे थे )...लेकिन मैं फिर विश्वास दिलाता हूं कि जिस लिस्ट में से उन्हें चुना है,उसमें मजबूरी में ही उन्हें योग्य कहना पड़ा।(तालियां बजती हैं) मैं फिर आपसे कहता हूं, बार बार दोहराता हूं कि जिनके बारे में आप कह रहे हैं तो go through the selected list और इसमें अगर मैं कहीं गड़बड़ हूं तो मैं महामना की भूमि पर खड़ा हूं, जो प्रायश्चित होगा मैं करुंगा।
(...प्रो. श्री सिंह फिर से बुदबुदाते हैं।कुलपति जिम्मेदार नहीं होते हैं,.डिपार्टमेंटल कमेटी भी तो है, कुलपति मंच से जवाब देते हैं) नहीं, हमारे सभी डायरेक्टर, डीन और हेड यहां बैठे हैं, इनकी गड़बड़ी नहीं कह सकते आप, मैं कमेटी का चेयरमैन हूं...अगर कहीं कुछ है तो I own it, अगर कहीं गड़बड़ है तो मैं जिम्मेदार हूं। लेकिन मैं फिर से कहूंगा कि अगर कहीं गड़बड़ है तो आप पूरी ईमानदारी से उन अध्यापकों के पूरे बैकग्राउंड का विचार करिए कि वो यहां (विश्वविद्यालय में) आए कैसे। मैं नहीं लाया उनको यहां। (वीसी यहां पर बात उनके कार्यकाल के पहले से नियुक्त लोगों के प्रमोशन के सन्दर्भ में कर रहे हैं, जिस पर श्री सिंह ने इशारा किया था। कुलपति कहते हैं-)... उनके एंट्री प्वाइंट पर विचार होना चाहिए कि वो विश्वविद्यालय में आए कैसे? क्योंकि जो एक बार पहले से घुस आए हैं तो फिर मैं क्या करूं।
I have fighting for the cause of teachers for so many years, शिक्षकों के हित का ख्याल रखना मेरी दुर्बलता थी। मैंने अध्यापकों के हितों के संरक्षण में थोड़ी बेइमानी की होगी शायद। क्योंकि जो यहां पहले से नियुक्ति पा चुके हैं, वो अब बाहर नहीं जा सकते यहां से। अगर हम उन्हें बहुत हताश करें तो उनमें निराशा ही जन्म लेगी, उनमें कोई आशा जन्म लेगी, ऐसा मुझे नहीं लगता। पर मैं तो उन्हें यहां पर नहीं लाया...श्री सिंह जी सुन लीजिए।...हमें आज विश्वविद्यालय के स्तर पर समूचे समाज, देश और विश्व की समस्याओं पर विचार करना है।...योग्यता से अध्यापक बना जाता है, प्रोफेसरशिप इज माइ मेरिट, मैं तो यही मानता हूं लेकिन वाइसचांसलरशिप मेरिट से नहीं मिलती, किसी को मिली हो तो उन्हें भ्रम होगा, मुझे नहीं है।
ईमानदारी से कहता हूं कि मैं इस पोजीशन के लिए कभी इच्छुक नहीं था भी नहीं, जिन्हें मेरा इतिहास मालूम है तो उन्हें पता होगा कि मैंने वाइस चांसलरशिप के लिए आवेदन नहीं किया था...।...क्योेंकि this office has been diluted to extent possible. मैं जिस इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आया वहां इस मुद्दे पर बड़ी बहस होती थी। उस जमाने में हमारे कुलपति आदर्श होते थे, उन्होंने कभी मूल्यों से compromise नहीं किया।
...इसलिए अनेक मौके यहां भी आए, जिनमें मैं भी compromise नहीं कर पाया, क्योंकि हम जिस यूनिवर्सिटी में पढ़े, यह वहां के कल्चर का डिफेक्ट है कि हम जब कुछ ठानते हैं तो फिर समझौता नहीं करते। ...क्योंकि मैं कुलपति को कर्मचारी नहीं मानता। मैं तो अध्यापक को भी कर्मचारी नहीं मानता। जब मैं फेडरेशन ऑफ सेंट्रल यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन का अध्यक्ष था तब हमारे सामने यह मुद्दा उठा था, सरकार से तब हमने कहा था कि अध्यापक को आप सरकारी कर्मचारी की संज्ञा नहीं दे सकते।...तो कुछ गड़बड़ियां हैं मेरी स्वभावगत और अब वो जाने वाली नहीं है। इतने दिन मैंने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया, मेरी स्वभावगत गड़बड़ियां नहीं गईं तो आगे भी ये नहीं जाने वाली।...
स्पष्ट है कि कुछ अयोग्य लोगों के प्रोन्नति के बारे में किसी प्रो सिंह की बात का जवाब देते हुए प्रो त्रिपाठी ने कुछ कहा है। उसमे भी उन्होंने खुद ही प्रश्न भी उठाया है कि इन लोगों की इंट्री मेरे कार्यकाल से पहले हो चुकी है। अब प्रोन्नति की सूची में उनके नाम होंगे तो करना तो पैनल की मजबूरी है। वह साफ़ साफ कह रहे हैं कि -एंट्री प्वाइंट पर विचार होना चाहिए कि वो विश्वविद्यालय में आए कैसे? क्योंकि जो एक बार पहले से घुस आए हैं तो फिर मैं क्या करूं? अब इसी बात को स्थानीय मीडिया में यह बताकर प्रकाशित किया गया है कि ऊपरी दबाव में अयोग्य लोगों की नियुक्तियां किये जाने की बात प्रो त्रिपाठी ने कही।