भारत-चीन पर बड़ी खबर: चुशुल-मोल्डी सीमा पर ही क्यों हो रही वार्ता, पढ़ें पूरी खबर
भारत-चीन के बीच सैनिकों को पीछे हटाकर पूर्व स्थिति में लाने के लिए दसवें दौर की बातचीत चुशुल मोल्डी सीमा पर मोल्डी में हुई है। चुशुल सब सेक्टर भारतीय सेना के लिए एक बड़ी अहमियत रखता है। शायद इसीलिए यहां ये बातचीत हुई है। आइये जानते हैं ये क्षेत्र क्यों इतना महत्व रखता है। और क्या है इसकी खासियत।
रिपोर्टः रामकृष्ण वाजपेयी
नई दिल्लीः भारत-चीन के बीच सैनिकों को पीछे हटाकर पूर्व स्थिति में लाने के लिए दसवें दौर की बातचीत चुशुल मोल्डी सीमा पर मोल्डी में हुई है। चुशुल सब सेक्टर भारतीय सेना के लिए एक बड़ी अहमियत रखता है। शायद इसीलिए यहां ये बातचीत हुई है। आइये जानते हैं ये क्षेत्र क्यों इतना महत्व रखता है। और क्या है इसकी खासियत।
खासियतः
चुशुल सब सेक्टर लद्दाख के पूर्वी भाग में, पैंगोंग त्सो के दक्षिण में स्थित है। इस सब सेक्टर में ऊंचे पहाड़ हैं, और इसमें ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, हेलमेट टॉप, मैगर हिल और थांग जैसी चोटियां और रेचिन ला और रेजांग ला जैसे दर्रे शामिल हैं। स्पांगूर खाई और चुशुल घाटी भी इस सब सेक्टर का हिस्सा है।
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चुशुल सब सेक्टर : सामरिक महत्वः
चुशुल, अपनी भौगोलिक स्थितियों के रसद की इकट्ठा करने का एक केंद्र है, और इसलिए, भारत के लिए इसका अत्यधिक सामरिक महत्व है। इस सब सेक्टर में एक से दो किलोमीटर की चौड़ाई वाले मैदानी क्षेत्र टैंक सहित मैकेनाइज्ड फोर्सेस की तैनाती के लिए आदर्श हैं। यह लेह को भी सड़क संपर्क से जोड़ता है और इसमें शामिल हवाई पट्टी भी है। यह क्षेत्र भारतीय सैनिकों के लिए बेहद सुरक्षित और फायदेमंद है, इससे उन्हें चुशूल में हावी होने के साथ-साथ मोल्दो क्षेत्र पर निगरानी में मदद मिलती है। मोल्डो भारत में स्थित चुशूल सेक्टर के ठीक विपरित में चीनी सीमा में स्थित है।
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क्यो हुआ पिछले दिनों सीमा पर तनावः
पिछले दिनों दोनों देशों में हुए तनाव के दौरान पैंगोंग त्सो में कैलाश रेंज की मगर हिल, गुरुंग हिल, रेजांग ला, रेचिन ला, हेलमेट टॉप और ब्लैक टॉप जैसी कई अहम चोटियों पर भारतीय सेना की मोर्चाबंदी से चीन के कई रणनीतिक ठिकाने भारत के निशाने पर आ गए थे।
चीन का मोल्डो सैनिक अड्डा इन चोटियों पर बैठे भारतीय जवानों के सीधे निशाने पर था। कैलाश रेंज में दोनों देशों के सैनिक लगभग 300 मीटर की दूरी पर आमने-सामने थे।
तिब्बत और शिनजियांग को जोड़ने वाला चीन का हाईवे नंबर 219 भी ज्यादा दूर नहीं था। भारतीय जवानों के मोर्चे पर डटे रहने के कारण चीन की मुश्किलें बढ़ रही थीं, उसकी चौकियां भारत के सीधे निशाने पर थीं। इस सख्त संदेश से चीन को एक संदेश गया कि अब 1962 वाला भारत नहीं है। इसके बाद ही वह बातचीत के लिए आगे आया सेना की वापसी पर बात आगे बढ़ रही है।