Patanjali Ayurveda: रामदेव की पतंजलि को कोर्ट के झटके पर झटके

Patanjali Ayurveda: 29 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद पर 4 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। पतंजलि पर ये जुर्माना कोर्ट के अंतरिम आदेश के उल्लंघन पर लगाया है जिसमें कोर्ट ने पतंजलि को कपूर वाले उत्पाद न बेचने के लिए कहा था।

Report :  Neel Mani Lal
Update:2024-07-30 16:31 IST

Patanjali Ayurveda

Patanjali Ayurveda: बाबा रामदेव के पतंजलि आयुर्वेद को अदालतों से एक के बाद एक झटके लग रहे हैं। एक तरह बॉम्बे हाई कोर्ट ने पतंजलि पर चार करोड़ का जुर्माना लगाया है तो वहीँ दिल्ली हाई कोर्ट ने पतंजलि से तीन दिन के भीतर कोरोना के इलाज वाले विज्ञापन हटाने को कहा है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन से जुड़े मामले में केंद्र सरकार को हिदायत दी है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने लगाया जुर्माना

इससे पहले 29 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद पर 4 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। पतंजलि पर ये जुर्माना कोर्ट के अंतरिम आदेश के उल्लंघन पर लगाया है जिसमें कोर्ट ने पतंजलि को कपूर वाले उत्पाद न बेचने के लिए कहा था। जस्टिस आरआई चागला की बेंच ने कहा कि पतंजलि जानबूझकर आदेश का उल्लंघन कर रहा है। बेंच ने कहा कि इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि पतंजलि का इरादा अदालत के आदेश का उल्लंघन करना था। हाईकोर्ट ने बीते साल अंतरिम आदेश जारी किया था।


आदेश में मंगलम ऑर्गेनिक्स लिमिटेड की ओर से दायर ट्रेडमार्क उल्लंघन मामले के संबंध में पतंजलि के कपूर उत्पाद बेचने पर रोक लगाई गई थी। न्यायमूर्ति आर. आई. चागला की सिंगल बेंच ने कहा कि पतंजलि ने अदालत के आदेश का जानबूझकर उल्लंघन किया। पीठ ने कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पतंजलि का इरादा अदालत के आदेश का उल्लंघन करने का था। याचिका में अदालत की रोक के बावजूद कपूर उत्पाद बेचने के लिए पतंजलि के खिलाफ अवमानना कार्रवाई का अनुरोध किया गया था। न्यायमूर्ति चागला ने पतंजलि को दो सप्ताह में चार करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया है। इससे पहले इस महीने की शुरुआत में अदालत ने कंपनी को 50 लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया था।

क्या हुआ सुप्रीम कोर्ट में

सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि मामले की सुनवाए के दौरान केंद्र से कहा कि वह दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायतें सार्वजनिक करे। कोर्ट ने कहा है कि उपभोक्ता शिकायतों की प्रगति की निगरानी के लिए आयुष मंत्रालय डैशबोर्ड का निर्माण करे तथा कोई गलत ब्रांडिंग न हो यह सुनिश्चित करने के लिए विज्ञापनों की पूर्व स्वीकृति हो। जस्टिस हिमा कोहली और संदीप मेहता की पीठ ने यह सुझाव इस बात पर गौर करने के बाद दिया कि ऐसी शिकायतों की प्रगति की निगरानी करने में कई बाधाएँ हैं, खासकर तब जब ऐसी शिकायतों को राज्य लाइसेंसिंग अधिकारियों द्वारा एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजा जाता है। इससे औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत अभियोजन में भी बाधाएँ आती हैं क्योंकि ऐसी शिकायतों के मामले में की गई कार्रवाई रिपोर्ट पर कोई डेटा आसानी से उपलब्ध नहीं होता है।


न्यायालय भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) द्वारा पतंजलि आयुर्वेद और उसके प्रवर्तकों बाबा रामदेव तथा आचार्य बालकृष्ण के विरुद्ध एलोपैथिक चिकित्सा को लक्षित करके भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए दायर मामले की सुनवाई कर रहा था। समय के साथ, इया मामले का दायरा पतंजलि द्वारा की गई चूकों से आगे बढ़कर अन्य लोगों द्वारा भ्रामक विज्ञापन, भ्रामक विज्ञापनों का समर्थन करने वाले सेलिब्रिटी प्रभावशाली व्यक्तियों की जिम्मेदारी, आधुनिक चिकित्सा में अनैतिक व्यवहार आदि जैसे बड़े मुद्दों तक फैल गया है। अधिवक्ता शादान फरासत को न्यायालय में एमिकस क्यूरी के रूप में सहायता करने तथा ऐसे मुद्दों पर विभिन्न राज्यों और विनियामक प्राधिकरणों द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए नियुक्त किया गया था।


न्यायालय को बताया गया कि छत्तीसगढ़, गुजरात, दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों में भ्रामक दावों या विज्ञापनों के विरुद्ध बड़ी संख्या में शिकायतें अन्य राज्यों को भेज दी गईं, क्योंकि शिकायत की गई उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली इकाइयां उस राज्य में स्थित नहीं थीं। न्यायालय ने पाया कि उपभोक्ता शिकायतों पर की गई कार्रवाई के संबंध में प्राप्त करने वाले राज्यों द्वारा कोई डेटा प्रस्तुत नहीं किया गया है। न्यायालय ने कहा कि इससे उपभोक्ता असहाय और अंधेरे में रह जाता है। इसलिए, न्यायालय ने सुझाव दिया कि आयुष मंत्रालय (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, सोवा रिग्पा और होम्योपैथी) द्वारा अन्य राज्यों से प्राप्त शिकायतों और उन पर की गई कार्रवाई का विवरण प्रस्तुत करने के लिए एक डैशबोर्ड स्थापित किया जाना चाहिए ताकि डेटा सार्वजनिक डोमेन में आ सके और सभी उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराया जा सके। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से 14 पतंजलि प्रोडक्ट्स के निलंबन पर 2 हफ्ते में फाइनल फैसले को कहा है।


दिल्ली हाई कोर्ट का सख्त निर्देश

उधर दिल्ली उच्च न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद और बाबा रामदेव सहित इसके प्रवर्तकों को आदेश दिया कि वे उन दावों को वापस लें, जिनमें कहा गया है कि कोरोना महामारी के दौरान लाखों लोगों की मौत के लिए एलोपैथी डॉक्टर जिम्मेदार हैं, जबकि पतंजलि के कोरोनिल को "इलाज" के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने रामदेव, उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद को इस तरह के आरोप लगाने से रोकते हुए एक अंतरिम आदेश पारित किया।


न्यायाधीश ने कहा, मैंने प्रतिवादियों को तीन दिनों में कुछ ट्वीट हटाने का निर्देश दिया है, अगर वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो सोशल मीडिया कम्पनियाँ सामग्री को हटा देंगी। एक विस्तृत फैसले में, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि लाखों कोविड मौतों के लिए एलोपैथी डॉक्टरों को दोषी ठहराने में रामदेव का आचरण "घोर" है और पतंजलि की गोलियों को कोरोनिल के रूप में लेबल करना गलत लेबलिंग के बराबर है, जो औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत अस्वीकार्य है। पीठ ने जोर देकर कहा कि अगर रामदेव और पतंजलि को कोरोनिल का प्रचार और विज्ञापन करने की अनुमति दी गई तो बड़े पैमाने पर जनता जोखिम में पड़ जाएगी और आयुर्वेद बदनाम हो सकता है।

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