मोदी को मिला शिंजो का साथ, अब दिवालिया होगा चीन !

जापान के पीएम शिंजो आबे के 13 सितंबर से शुरू हुए भारत दौरे के बाद चीन की महात्वाकांक्षी दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक गलियारे 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना और भारत जापान के एशिया अफ्रीका कारीडोर पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है। चीन की पूरी परियोजना 51 लाख करोड़ रूपए की है।

Update:2017-09-14 13:48 IST

Vinod Kapoor

लखनऊ: जापान के पीएम शिंजो आबे के 13 सितंबर से शुरू हुए भारत दौरे के बाद चीन की महात्वाकांक्षी दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक गलियारे 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना और भारत जापान के एशिया अफ्रीका कारीडोर पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है। चीन की पूरी परियोजना 51 लाख करोड़ रूपए की है।

योजना को लेकर चीन ने पिछले 14 और 15 मई को शिखर सम्मेलन आयोजित किया था, जिसमें 29 देशों के राष्ट्राध्यक्षों, 70 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों, दुनिया भर के 100 मंत्रिस्तरीय अधिकारियों, विभिन्न देशों के 1200 प्रतिनिधिमंडलों को आमंत्रित किया गया था, लेकिन भारत इस सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ था। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 'वन बेल्ट, वन रूट' यानी न्यू सिल्क रोड परियोजना शिखर सम्मेलन में इसका एजेंडा पेश किया था ।

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चीन ने आर्थिक मंदी से उबरने, बेरोजगारी से निपटने और अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना को पेश किया था । चीन ने एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क मार्ग, रेलमार्ग, गैस पाइप लाइन और बंदरगाह से जोड़ने के लिए 'वन बेल्ट, वन रोड' के तहत सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और मैरीटाइम सिल्क रोड परियोजना शुरू की है।

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इसके तहत छह गलियारे बनाए जाने की योजना है। इसमें से कई गलियारों पर काम भी शुरू हो चुका है। इसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से गुजरने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी शामिल है, जिसका भारत कड़ा विरोध कर रहा है। भारत का कहना है कि पीओके में उसकी इजाजत के बिना किसी तरह का निर्माण संप्रभुता का उल्लंघन है। चीन, भारत को शामिल करने के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का नाम बदलने पर भी राजी हो गया था, लेकिन बाद में इससे पलटी मार गया।

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इन गलियारों से जाल बिछाएगा चीन

न्यू सिल्क रोड के नाम से जानी जाने वाली 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना के तहत छह आर्थिक गलियारे बन रहे हैं। चीन इन आर्थिक गलियारों के जरिए जमीनी और समुद्री परिवहन का जाल बिछा रहा है।

1.चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा

2. न्यू यूराशियन लैंड ब्रिज

3. चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा

4. चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा

5. बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा

6. चीन-इंडोचाइना-प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा

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चीन अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना के जरिए दुनिया की 60 फीसदी आबादी यानी 4.4 अरब लोगों पर शिकंजा कसने की कोशिश कर रहा है। वह इन पर एकछत्र राज करना चाहता है। चीन रोजगार देने का लालच दे रहा है। उसने इस परियोजना को लेकर अपनी नीतियां भी स्पष्ट नहीं की है। वह कभी-भी अपने वादे से मुकर सकता है और इन देशों की प्राकृतिक संपदा का दोहन करके आर्थिक लाभ कमा सकता है। ऐसे में इसके भावी परिणाम बेहद गंभीर साबित हो सकते हैं । इन देशों के लोग भविष्य में चीन के गुलाम बन कर रहे जाएंगे। चीन का रिकॉर्ड रहा है कि वह बिना स्वार्थ के कोई काम नहीं उठाता है। खासकर विदेशी निवेश को लेकर उसका रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है।

दुनिया के 65 देशों की सरकार को भी लालच

चीन ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना को अंजाम देने के लिए न सिर्फ 65 देशों की जनता को बरगला रहा है, बल्कि वह इन देशों की सरकारों को भी लालच दे रहा है। चीनी मीडिया का कहना है कि इस परियोजना के इन देशों की सरकारों को 1.1 अरब डॉलर टैक्स मिलेगा। इससे इनकी आय में इजाफा होगा। साथ ही बेरोजगारी कम होगी। फिलहाल भारत के सभी पड़ोसी देश इसमें फंसते नजर आ रहे हैं। खासकर नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार इस चीनी जाल में फंसते जा रहे हैं । पाकिस्तान तो पहले ही इसकी मंजूरी दे चुका है। भविष्य में चीन इन देशों में आर्थिक नियंत्रण करने के बाद सत्ता में भी दखल बढ़ाने में कामयाब हो सकेगा।

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भारत जापान का एशिया अफ्रीका ग्रोथ कारिडोर

चीन चाहता है कि भारत जापान के साथ शुरू किए अपने एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (AAGC) प्रोजेक्ट पर धीमी गति से काम करे। इसके लिए योजना के तहत चीन BRICS देशों से जोड़ते हुए भारत और दक्षिण अफ्रीका को साथ मिलाना चाहता है ताकि जापान इस प्रोजेक्ट से बाहर हो जाए। एकबार यह प्रॉजेक्ट BRICS देशों से मिल गया तो इसके जरिए भारत का अफ्रीका पर पड़ना वाला प्रभाव कम हो जाएगा।

यह परियोजना अन्य BRICS देशों - भारत, रूस और दक्षिण अफ्रीका - की चीन से असहमतियों को दर्शाता है। चीन-रूस गैस पाइपलाइन प्रॉजेक्ट में ऊर्जा मिश्रण और अन्य मुद्दों को लेकर चीन और रूस में असहमतियां हैं। भारत और जापान ने AAGC की योजना बनाई है, जिसमें अफ्रीकन डिवेलपमेंट बैंक और कई अफ्रीकी देशों का सक्रिय समर्थन है। दक्षिण अफ्रीका भी इस योजना का हिस्सा है। विश्लेषकों का कहना है कि अब वह चीन पर निर्भर नहीं रहना चाहता। इस परियोजना का उद्देश्य है दक्षिण, दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया के साथ अफ्रीका और ओशिऑनिया को मिलाते हुए पुराने समुद्री रास्ते खोजकर और नए समुद्री कॉरिडोर्स का निर्माण कर एक 'स्वतंत्र और खुले इंडो-पसिफिक क्षेत्र' का निर्माण करना।

चीन इस प्रोजेक्ट को बड़ी चुनौती के रूप में देखता है जो अफ्रीकी महाद्वीप पर उसके प्रभाव को कम कर सकता है। इसलिए वह इस प्रॉजेक्ट पर अफ्रीकी देशों से विलय करने के लिए भारत को फुसलाने की कोशिश कर रहा है और इसे BRICS अजेंडे से जोड़ रहा है ताकि उसका प्रोजेक्ट पर नियंत्रण हो जाए।

चीन अपनी कर्ज देने की नीति को अफ्रीकी देशों में फैलाने के लिए BRICS देशों द्वारा बनाए गए न्यू डिवेलपमेंट बैंक का भी इस्तेमाल कर रहा है, भले ही अफ्रीकी देश उसके सदस्य ना हों। चीन ने दो अफ्रीकी देशों, मिस्र और गुएना, को बतौर विश्लेषक BRICS सम्मेलन में आमंत्रित किया था।

दरअसल अफ्रीकी देशों के साथ चीन का व्यापारिक रिश्ता काफी पुराना है जबकि भारत ने अभी अभी इसमें प्रवेश किया है, लेकिन चीन का रिकॉर्ड भी खराब है इस मामले में कि उसने उन देशों के प्राकृतिक संसाधना का बुरी तरह दोहन किया। दूसरी ओर भारत अपनी साफ-सुथरी व्यापार नीति के कारण अफ्रीकी देशों में धीरे-धीरे ज्यादा लोकप्रिय होता जा रहा है ।

क्या होगा असर

चीन की 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना 51 लाख करोड़ की है जबकि भारत जापान की एशिया अफ्रीका ग्रोथ कारिडोर की लागत इससे काफी कम है। इस परियोजना में भारत को मात्र 65 हजार करोड़ रूपए ही खर्च करने होंगे। इसमें जापान ज्यादा रकम खर्च करेगा। भारत जापान की परियोजना यदि समय से पूरी होती है तो चीन की आर्थिक बर्बादी के रास्ते खुल सकते हैं। निर्यात में कमी के कारण चीन ऐसे भी लगातार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। भारत में ही उसका हजारो करोड़ रूपए का निर्यात कम हुआ है।

 

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