Caste Census: जातिगत जनगणना पर संघ की सहमति से बढ़ा दबाव, मोदी सरकार जल्द ले सकती है बड़ा फैसला

Caste Census: भाजपा ने कभी खुलकर विपक्ष की इस मांग का विरोध नहीं किया है मगर पार्टी विपक्ष की ओर से इसका सियासी फायदा उठाने को लेकर सचेत जरूर दिखती रही है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2024-09-03 05:41 GMT

PM Modi   (photo: social media )

Caste Census: विपक्षी दलों की ओर से जातिगत जनगणना को लेकर लंबे समय से मोदी सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है। विपक्षी दलों का मानना है कि विभिन्न जातियों से जुड़े लोगों को विकास के मौके मुहैया कराने के लिए जातिगत जनगणना जरूरी है। अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इस मुद्दे पर सहमति जताते हुए समर्थन का खुला संकेत दे दिया है। हालांकि संघ ने जोर देते हुए यह भी कहा है कि इसका उपयोग राजनीतिक या चुनावी उद्देश्यों के लिए कतई नहीं किया जाना चाहिए।

संघ के इस रुख के बाद मोदी सरकार पर जातिगत जनगणना कराने का दबाव बढ़ गया है। भाजपा ने कभी खुलकर विपक्ष की इस मांग का विरोध नहीं किया है मगर पार्टी विपक्ष की ओर से इसका सियासी फायदा उठाने को लेकर सचेत जरूर दिखती रही है। संघ की ओर से इसका समर्थन किए जाने के बाद माना जा रहा है कि मोदी सरकार की ओर से जल्द ही कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है। जातिगत जनगणना के मुद्दे पर मोदी सरकार जल्द ही कोई फॉर्मेट लेकर सामने आ सकती है।

संघ को जाति का जनगणना कराने में समस्या नहीं

जातिगत जनगणना के मुद्दे पर संघ ने स्पष्ट कर दिया है कि उसे इसमें किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं है। सरकार को भी योजनाओं के लिए आंकड़ों की जरूरत होती है। किसी विशेष समुदाय या जातियों के कल्याण के लिए विशेष ध्यान देने के लिए आवश्यक हो तो यह होना चाहिए।

वैसे संघ ने जातिगत जनगणना को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने वाले विपक्षी दलों को चेतावनी भी दी है। संघ ने कहा कि यह समाज व देश की एकता-संप्रभुता के लिए अति संवेदनशील मामला है। ऐसे में इसका इस्तेमाल चुनाव जीतने के लिए या राजनीतिक हथियार के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए।

सभी योजनाओं में सरकार को आंकड़ों की जरूरत

केरल के पलक्कड़ में आयोजित संघ की तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक के अंतिम दिन पत्रकार वार्ता के दौरान संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि सभी योजनाओं में किसी खास समुदाय या जाति पर विशेष ध्यान देने के लिए सरकार को आंकड़ों की जरूरत होती है। यह पहले से अच्छी तरह से प्रयोग में होता रहा है और आगे भी इसमें किसी भी प्रकार की समस्या नहीं है।

वैसे संघ ने यह सुनिश्चित करने पर भी जोर दिया है कि जातिगत जनगणना का इस्तेमाल उस विशेष समुदाय या जाति के कल्याण के लिए ही किया जाना चाहिए। हिंदू समाज के लिए यह मुद्दा बहुत संवेदनशील होने के साथ हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए भी महत्वपूर्ण मुद्दा है।

विपक्ष के साथ एनडीए के घटक दल भी समर्थन में

जातिगत जनगणना कराने की मांग केवल विपक्षी दलों की ओर से ही नहीं की जा रही है बल्कि एनडीए के घटक दल भी इसका समर्थन कर रहे हैं। इस मुद्दे पर जदयू और लोजपा की राय इंडिया गठबंधन में शामिल दलों की तरह ही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने राज्य में जातिगत जनगणना कराने के बाद उसके आंकड़े तक जारी जारी कर चुके हैं। लोजपा नेता चिराग पासवान भी समय-समय पर इसके पक्ष में अपनी आवाज बुलंद करते रहे हैं।

बिहार में जब जातिगत जनगणना कराने की मांग उठी थी तो भाजपा के राज्य स्तरीय नेताओं ने खुलकर इसका समर्थन किया था। भाजपा की ओर से कभी आधिकारिक रूप से जातिगत जनगणना का विरोध नहीं किया गया। हालांकि पार्टी इस मुद्दे को टालती जरूर रही है।

लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दलों ने जातिगत जनगणना को अपने घोषणा पत्र में शामिल करके भाजपा को घेरना की कोशिश की थी। उन्हें इस मुहिम में कामयाबी भी मिली और चार सौ पार का सपना देख रही भाजपा अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा जुटाने तक में विफल साबित हुई।

भाजपा को एक बयान की चुकानी पड़ी थी कीमत

आरक्षण का मुद्दा हमेशा से काफी संवेदनशील रहा है। दिल्ली में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की सरकार बनने के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक साक्षात्कार के दौरान आरक्षण की समीक्षा किए जाने की जरूरत बताई थी। उसके बाद बिहार विधानसभा के चुनाव में राजद ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया था। राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव का कहना था कि संघ आरक्षण को खत्म करना चाहता है। भाजपा को बिसार में हार के रूप में इस बयान की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी।

भाजपा और संघ दोनों ने इस हार से सबक सीखा है। पिछले साल सितंबर महीने में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एससी, एसटी और ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण का खुलकर समर्थन किया था। संघ प्रमुख का कहना था कि जब तक समाज में भेदभाव बना हुआ है तब तक आरक्षण को जारी रखना जरूरी है। संघ हिंदुओं के बीच एकता का समर्थक रहा है और इस एकता के लिए जातिगत एकता भी काफी जरूरी है। इसीलिए संघ की ओर से जातिगत जनगणना को भी ग्रीन सिग्नल दे दिया गया है।

अब मोदी सरकार ले सकती है बड़ा फैसला

भाजपा को कभी सवर्णों और अमीरों की पार्टी माना जाता था मगर पार्टी अब एससी और ओबीसी मतदाताओं की भूमिका को गहराई से समझ चुकी है। पार्टी को इन वर्गों में पैठ बनाने में भी कामयाबी मिली है। कई राज्यों में भाजपा को चुनाव जिताने में इन दोनों वर्गों के मतदाताओं की बड़ी भूमिका रही है। हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष की ओर से आरक्षण विरोधी और संविधान विरोधी बताए जाने का भाजपा को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा।

इसलिए पार्टी अब जातिगत जनगणना के मुद्दे पर काफी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। ऐसे में संघ की ओर से ग्रीन सिग्नल दिए जाने के बाद माना जा रहा है कि मोदी सरकार की ओर से इस दिशा में कोई बड़ा कदम उठाया जा सकता है। आने वाले दिनों में सरकार जातिगत जनगणना का कोई फॉर्मेट लेकर सामने आए तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए।

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