Surrogacy Law: 'लिव-इन रिलेशनशिप और समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट से दूर रखा जाए', केंद्र का सुप्रीम कोर्ट को जवाब
Surrogacy Law: केंद्र सरकार ने अपने जवाब में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि, लिव इन जोड़े या समलैंगिक जोड़े किसी कानून से बंधे नहीं होते हैं। लिहाजा, इन मामलों में सरोगेसी से जन्मे बच्चे का भविष्य हमेशा सवालों के घेरे में रहेगा।
Surrogacy Law: केंद्र सरकार ने मंगलवार (09 मई) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपना जवाब दाखिल किया। केंद्र ने लिव-इन-रिलेशनशिप (Live-in Relationship) में रह रहे जोड़ों के साथ-साथ समलैंगिक जोड़ों (Same Sex Relationship) को भी सरोगेसी एक्ट के दायरे में लाने का विरोध किया है। अब तक दो ही परिस्थितियों में सिंगल महिला 'किराए की कोख' रख सकती हैं।
सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल अपने जवाब में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि, ऐसे समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी एक्ट (Surrogacy Act) के दायरे में लाना सही नहीं होगा। इसकी वजह कानून के दुरुपयोग को बढ़ावा बताया गया है। केंद्र ने कहा, कि 'इस तरह के मामलों में आगे भी दिक्कत बनी रहेगी, क्योंकि 'किराए की कोख' यानी सरोगेसी से जन्मे बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को लेकर हमेशा आशंका की स्थिति बनी रह सकती है।' शीर्ष अदालत में इस मामले की सुनवाई जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी (Justice Bela M. Trivedi) और जस्टिस अजय रस्तोगी (Justice Ajay Rastogi) की बेंच कर रही है।
इन सिंगल महिलाओं को ही 'किराए की कोख' की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में केंद्र सरकार ने 'अकेली' तथा 'अविवाहित महिला' को सरोगेसी एक्ट के फायदे से बाहर रखने के अपने फैसले को सही ठहराया है। वर्तमान में सिर्फ दो ही स्थितियों में सिंगल वूमेन को किराए की कोख की इजाजत मिली है। पहला, यदि महिला विधवा हो और समाज के डर से खुद बच्चा न पैदा करना चाहती हो। या फिर महिला तलाकशुदा हो और वो दोबारा शादी करने को इच्छुक ना हो लेकिन, बच्चा पालने की इच्छा रखती हो। हालांकि, इन दोनों ही स्थितियों में महिला की उम्र 35 साल से ज्यादा होने की शर्त रखी गई है।
आपको बता दें, केंद्र सरकार और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने ये हलफनामा सरोगेसी एक्ट के कई प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दाखिल किया है।
लिव-इन या सेम सेक्स जोड़े कानून से बंधे नहीं हैं
केंद्र सरकार ने अपने जवाब के समर्थन में संसदीय कमेटी की रिपोर्ट (Parliamentary Committee Report) का हवाला दिया है। जिसमें सरकार ने कहा है कि, सरोगेसी एक्ट सिर्फ कानूनी मान्यता प्राप्त शादीशुदा पुरुष या स्त्री को ही अभिभावक के रूप में मान्यता देता है। केंद्र का कहना है कि चूंकि, लिव इन जोड़े या समलैंगिक जोड़े किसी कानून से बंधे नहीं होते हैं, इसलिए इन मामलों में सरोगेसी से जन्मे बच्चे का भविष्य हमेशा सवालों के घेरे में रहेगा।