चीन ने खोला ट्रंप का राज, तो इसलिए भारत के दौरे पर आ रहे हैं अमेरिकी राष्ट्रपति

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारतीय दौरे पर हैं। विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र और सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के बीच मजबूत होती दोस्ती पर दुनिया की नजर है। खासकर हमारा पड़ोसी चीन भी मोदी-ट्रंप की हर बात, हर कदम पर नजर बनाए हुए हैं।

Update:2020-02-24 13:55 IST

वुहान: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारतीय दौरे पर हैं। विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र और सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के बीच मजबूत होती दोस्ती पर दुनिया की नजर है। खासकर हमारा पड़ोसी चीन भी मोदी-ट्रंप की हर बात, हर कदम पर नजर बनाए हुए हैं। ना केवल व्यापार बल्कि भू-राजनैतिक नजरिए से भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती दोस्ती 'ड्रैगन' को परेशान करती है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे को लेकर चीन की मीडिया में भी कवरेज की जा रही है। बता दें कि ट्रंप पूर्वी एशियाई देशों चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों में सिंगापुर, फिलीपींस और वियतनाम का दौरा कर चुके हैं लेकिन वह अभी तक भारत नहीं आ पाए थे।

चीन की सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ट्रंप ने भारत का दौरा नहीं किया था जबकि भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी अमेरिका का दो बार दौरा कर चुके हैं। ऐसे में भारत को असंतुलन महसूस होता रहा होगा।

चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने मोदी सरकार को ट्रंप के दौरे को लेकर आगाह भी किया है। ग्लोबल टाइम्स ने एक संपादकीय लेख छापा है जिसका शीर्षक है 'ट्रंप की चाल से मोदी को अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बचानी होगी'।

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ट्रंप फायदे के लिए करते हैं विदेशी दौरा: चीन

अखबार ने लिखा है कि अपने पूर्ववर्तियों से अलग ट्रंप ने बहुत ही कम विदेशी दौरे किए हैं। ट्रंप को उन विचारधारा में कोई दिलचस्पी नहीं है जिससे अमेरिका को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की पहचान मिली है। इसका मतलब साफ है कि अगर वे किसी देश का दौरा वह अपने किसी फायदे के लिए ही करते हैं। अखबार ने ट्रंप के दौरे के तमाम मकसद गिनाए हैं-

1- भारत को हथियार बेचना ट्रंप प्रशासन का मुख्य मकसद है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था और रोजगार की स्थिति सुधारने के लिए ट्रंप प्रशासन के लिए दूसरे देशों को हथियारों बेचना बेहद आवश्यक है। ट्रंप ने 2017 की सऊदी अरब यात्रा में 110 अरब डॉलर की आर्म्स डील की थी।

पिछले कुछ सालों में, भारत हथियारों का एक अच्छा बाजार बनकर उभरा है और इसमें भविष्य में आयात की भरपूर संभावनाएं हैं। भारत के हथियार बाजार में पहुंच बनाने को लेकर ट्रंप प्रशासन ने भारत के खिलाफ रूस से हथियार खरीदने को लेकर प्रतिबंध भी लगा दिए थे।

भारत और अमेरिका के बीच 3.5 अरब डॉलर की डील फाइनल: चीन

चीनी मीडिया ने भारतीय मीडिया की रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए लिखा है, नई दिल्ली ने ट्रंप के दौरे से पहले वॉशिंगटन के साथ 3.5 अरब डॉलर की डील फाइनल की है। भारत ने ट्रंप के लिए ये बहुत बड़ा तोहफा तैयार करके रखा है। लेकिन दूरगामी और मोदी के 'मेक इन इंडिया' की रणनीति को देखते हुए भारत अमेरिका के साथ तभी सहयोग करने के लिए तैयार होगा जब अमेरिका भारत को साझा तौर पर हथियार उत्पादन का प्रस्ताव देता है।

लेख में कहा गया है, ट्रंप के दौरे का दूसरा मुख्य मकसद व्यापार है। जब से ट्रंप सत्ता में आए हैं, उन्होंने तमाम व्यापारिक सहयोगियों के साथ ट्रेड वॉर शुरू कर दिया है और भारत भी इसके निशाने पर है। ट्रंप ने ना केवल भारत को दुनिया का सबसे ज्यादा टैक्स लगाने वाले देश करार दिया बल्कि भारत में आउटसोर्सिंग की वजह से अमेरिकियों की नौकरी जाने की शिकायत भी की।

2018 के बाद से भारत और अमेरिका के बीच तमाम व्यापारिक विवाद हुए हैं हालांकि, इनका असर सीमित ही रहा. जून 2019 में अमेरिका ने भारत को व्यापार में मिलने वाली विशेष प्राथमिकता खत्म कर दी थी जिसके बाद भारत सरकार ने भी 28 अमेरिकी उत्पादों पर 120 फीसदी टैरिफ लगा दिया था। भारत-अमेरिका के बीच इस व्यापारिक उठापटक से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों को भी नुकसान पहुंचा।

इसके बावजूद, अमेरिका भारत से जुड़े आर्थिक हितों को साधना चाहता है. अमेरिका-भारत के रिश्तों के सामान्य होने से अमेरिकी कंपनियों को भारतीय बाजार में बड़े हिस्से पर कब्जा जमाने का मौका मिल जाएगा।

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भारत को ट्रंप के दौरे से काफी उम्मीदें : चीन

भारत को भी उम्मीद है कि अमेरिकी बाजार और निवेश से उसकी अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलेगी। ट्रंप के साथ दौरे में पीएम मोदी के एजेंडे में भारत का अमेरिका के साथ जीएसपी दर्जा (व्यापार में मिलने वाली तरजीह) वापस हासिल कर सके।

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ट्रंप भारत को इंडो-पैसेफिक रणनीति से भी लुभाने की कोशिश करेंगे। अमेरिका इंडो-पैसेफिक क्षेत्र को अमेरिका के पश्चिमी समुद्री तट से भारत के पश्चिमी समुद्री तट के क्षेत्र से परिभाषित करता है।

अमेरिका के विदेश मंत्री व अन्य मंत्री भारत का दौरा कर चुके हैं लेकिन भारत की रणनीति अमेरिकी की रणनीति से काफी अलग है। भारत अपने हितों और जरूरतों के हिसाब से इंडो-पैसेफिक रणनीति को आकार देगा।

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