Himachal Election: हिमाचल में कांग्रेस को अपनी सरकार बचाने की चिंता, विधानसभा की छह सीटों के उपचुनाव पर ज्यादा फोकस
Himachal Election: राज्य में सुखविंदर सिंह सुक्खू की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के भविष्य के लिए इन छह सीटों पर हो रहे उपचुनाव को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
Himachal Election: हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की चार सीटों के साथ ही विधानसभा की छह सीटों पर उपचुनाव भी हो रहे हैं। 2014 और 2019 में राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने के बाद इस बार भी भाजपा ने चारों सीटों पर जीत हासिल करने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। दूसरी ओर कांग्रेस भी भाजपा को जवाब देने की कोशिश में जुटी हुई है। वैसे राज्य में चार लोकसभा सीटों पर हो रहे चुनाव से ज्यादा सियासी ताप छह विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव का महसूस किया जा रहा है।
दरअसल राज्य में सुखविंदर सिंह सुक्खू की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के भविष्य के लिए इन छह सीटों पर हो रहे उपचुनाव को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी की हार के बाद भाजपा विधानसभा उपचुनाव जीतकर राज्य की सुक्खू सरकार की विदाई की कोशिश में भी जुटी हुई है। इसीलिए कांग्रेस ने विधानसभा का उपचुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है।
सदस्यता रद्द होने के बाद छह सीटों पर उपचुनाव
दरअसल हिमाचल प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने अपनी ताकत दिखाते हुए भाजपा को पछाड़ दिया था। कांग्रेस को राज्य की 40 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि भाजपा 25 सीटों पर ही अटक गई थी।
ऐसे में राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी की जीत तय मानी जा रही थी मगर कांग्रेस के 6 विधायकों की क्रॉस वोटिंग और तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन के दम पर भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन ने कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी को हरा दिया था। बाद में विधानसभा के स्पीकर ने कांग्रेस के इन सभी बागी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था। अब इन सभी विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं।
कांग्रेस चुनाव हारी तो भाजपा कर सकती है खेल
बागी विधायकों की सदस्यता छिनने के बाद अब विधानसभा की स्ट्रेंथ 62 रह गई है और ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 32 पर पहुंच गया है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश में सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार को अभी भी बहुमत तो हासिल है मगर उनकी सरकार पर संकट के बदला जरूर मंडरा रहे हैं। यदि विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस को कामयाबी नहीं मिली तो फिर भाजपा की ओर से सुक्खू सरकार को सत्ता से बेदखल करने का प्रयास किया जा सकता है। यही कारण है कि विधानसभा उपचुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।
राज्यसभा चुनाव के झटके से उबरने के बाद कांग्रेस एकजुटता का संदेश देने की कोशिश में जुटी हुई है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस नेताओं के रवैए को देखकर ऐसा लग रहा है कि उनका फोकस लोकसभा चुनाव पर कम और विधानसभा के उपचुनाव पर अधिक है। कांग्रेस नेताओं की ओर से राज्य सरकार को बचाने पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है।
अपने क्षेत्र में ही फंसे हुए हैं कई कांग्रेस नेता
मंडी से निवर्तमान सांसद और कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने इस बार मंडी सीट से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था और उसके बाद उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह को चुनाव मैदान में उतारा गया। भाजपा की ओर से बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत का मुकाबला करने के लिए प्रतिभा सिंह अपने बेटे के चुनाव प्रचार में ही डटी हुई हैं। उनका पूरा फोकस अपने बेटे को चुनाव जिताने पर ही है।
इसके अलावा कई कैबिनेट मंत्री भी अपने-अपने इलाकों से बाहर प्रचार को नहीं निकल पा रहे हैं। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और राज्य के डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री जरूर पार्टी प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार करने में जुटे हुए हैं मगर अन्य नेताओं की सक्रियता काफी कम दिख रही है। ऐसे में लोकसभा की विभिन्न सीटों पर भाजपा मजबूत स्थिति में नजर आ रही है।
लोकसभा चुनाव में भी सियासी राह आसान नहीं
हिमाचल प्रदेश में 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पूरी ताकत लगाने के बावजूद एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी थी। हालांकि 2021 में मंडी सीट पर हुए उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने जीत हासिल करके कांग्रेस की लाज बचाई थी। वैसे मौजूदा लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस संगठन की कमियां और धरातल पर कमजोर पकड़ उजागर होती जा रही है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस पिछले दो लोकसभा चुनावों का सूखा इस बार खत्म कर पाती है या नहीं। भाजपा की ओर से पूरी ताकत लगाए जाने के कारण कांग्रेस की सियासी राह आसान नहीं मानी जा रही है।