निजामुद्दीन की दरगाह पर ऐसी सोच रखते हैं तबलीगी जमात के लोग, जान चौंक जाएंगे

दिल्ली के तबलीगी जमात के मरकज में कोरोना संक्रमण की खबर सामने आने के बाद हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह की चर्चा की वजह से तेज हो गई। इसकी वजह यह है कि तबलीगी जमात का मरकज भी निजामुद्दीन इलाके में ही स्थित है।

Update: 2020-04-02 04:31 GMT

नई दिल्ली: दिल्ली के तबलीगी जमात के मरकज में कोरोना संक्रमण की खबर सामने आने के बाद हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह की चर्चा की वजह से तेज हो गई। इसकी वजह यह है कि तबलीगी जमात का मरकज भी निजामुद्दीन इलाके में ही स्थित है। मरकज और दरगाह के बीच कुछ ही कदमों का फासला है। जब खबरे फैलीं तो दरगाह ने सफाई दी कि उनका मरकज से कोई संबंध नहीं है।

तबलीगी जमात और निजामुद्दीन दरगाह को मानने वाले लोग दो विपरीत धाराएं हैं। इस्लाम को जानने वाले लोग ये जानते हैं कि तबलीगी जमात के लोग सिर्फ निजामुद्दीन औलिया की ही नहीं बल्कि किसी भी अन्य दरगाह या मजार पर नहीं जाते, क्योंकि वे इस विचार के ही खिलाफ होते हैं।

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निजामुद्दीन औलिया की दरगाह की देखभाल और सारी जिम्मेदारी चिश्ती परिवार निभाता है। यहां कई तरह के संगठन बने हुए हैं और वे सब मिलकर दरगाह की देखभाल करते हैं, तो वहीं, तबलीगी जमात मरकज के सर्वेसर्वा संस्थापक मौलाना इलियास कांधलवी के परपोते मौलाना साद हैं।

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मुसलमानों के बीच सदियों से निजामुद्दीन औलिया की दरगाह अहमियत रखती है, पर तबलीगी जमात के लोग वहां नहीं जाते। इतना ही नहीं अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह सहित तमाम औलियाओं की मजारों पर इन्हें जाते नहीं देखा जाता। मजारों पर होने वाली कव्वाली और सजने वाली महफिलों को तबलीगी जमात इस्लाम का खिलाफ बताती है और हराम करार देती है।

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मजारों पर विश्वास बरेलवी और सूफीज्म विचारधारा के लोग करते हैं और वे जियारत करने, चादर चढ़ाने, मन्नत मांगने इन मजारों पर जाते हैं। मुस्लिमों के अलावा हिंदू, सिख सहित बाकी धर्मों के लोग भी दरगाह जाते हैं। मजारों पर जाने वाले मुसलमान निजामुद्दीन औलिया ही नहीं तमाम बुजुर्गों की मजारों पर जाते हैं और उन्हें अल्लाह के करीब मानते हैं। दरगाहों पर जाने को ये लोग रुहानी तस्कीम (आध्यात्मिक सुकून) मानते हैं।

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