Cotton Prices Rise: कपास चढ़ा आसमान पर, परिधान उद्योग परेशान, एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध की मांग
Cotton Prices Rise: कपास की कीमतों में जबर्दस्त उछाल के चलते अब कपड़ा और परिधान उद्योगों (textile industries) द्वारा कपास फाइबर के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जा रही है।
Cotton Prices: तमाम अन्य चीजों की तरह अब कपास (cotton prices rise) के दामों में आग लगी हुई है। आलम ये है कि कपास के दाम पिछले साल की तुलना में लगभग दोगुने हो गए हैं। कपास के मुख्य क्षेत्र गुजरात (Main areas of cotton Gujarat) में राजकोट एपीएमसी मंडी में कपास (कच्चा बिना कटा हुआ) का औसत मोडल या सबसे अधिक मूल्य 12,250 रुपये प्रति क्विंटल था, जबकि पिछले साल इसी समय यह लगभग 6,300 रुपये था। यह कपास की लंबी किस्मों के लिए सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य 6,025 रुपये प्रति क्विंटल से भी अधिक था। कपास की कीमतों में जबर्दस्त उछाल के चलते अब कपड़ा और परिधान उद्योगों (textile industries) द्वारा कपास फाइबर के निर्यात पर प्रतिबंध (Demand for ban on export of fiber) लगाने की मांग की जा रही है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल नवंबर के बाद से कपास की कीमतें बढ़ रही हैं। नवंबर में 8000 रुपये प्रति कुंतल से बढ़ते बढ़ते जनवरी की शुरुआत में ये कई बाजारों में पहली बार 10,000 रुपये के स्तर को पार कर गईं। कपास का मार्केटिंग मौसम अक्टूबर से सितंबर तक होता है, जिसमें 90 फीसदी से अधिक फसल की आवक मई के अंत तक हो चुकी होती है।
क्या है वजह (what is the reason)
वर्ष 2020-21 में भारत का कुल कपास लिंट फाइबर उत्पादन 170 किलोग्राम के 353 लाख गांठ (एलबी) था। चालू वर्ष के लिए, मुंबई स्थित व्यापार निकाय, कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) ने उत्पादन का अनुमान 323.63 एलबी रखा है। 14 मई को जारी यह आंकड़ा पिछले किये गए अलग अलग महीनों के अनुमान से कम है। पिछले अनुमान 343.13 एलबी (25 फरवरी), 348.13 एलबी (18 जनवरी) और 360.13 एलबी (30 अक्टूबर) के थे।
दूसरा कारण अंतरराष्ट्रीय कीमतें हैं। बाजारों के सूचकांक वर्तमान में 167 सेंट प्रति एलबी पर चल रहा है, जो एक साल पहले 92 सेंट से ऊपर था। चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक और तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक (अमेरिका और ब्राजील के बाद) है। उच्च वैश्विक कीमतों ने निर्यात को आकर्षक बना दिया है। इसके अलावा घरेलू कीमतों को निर्यात कीमत के स्तर के करीब धकेल दिया है, साथ ही साथ आयात को और अधिक महंगा बना दिया है।
तीसरा कारण खपत है। सरकारी स्वामित्व वाली कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने मार्च में 2021-22 के लिए कुल घरेलू खपत 345 एलबी का अनुमान लगाया था, जबकि पिछले तीन मार्केटिंग वर्षों में यह 334.87 एलबी, 269.19 एलबी और 311.21 एलबी था। सीसीआई के अनुसार, मांग में काफी वृद्धि हुई है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में मिलों और अन्य उपयोगकर्ता लगभग पूरी क्षमता से काम कर रहे थे। महामारी के दौरान भी, चादर और तौलिये की मांग में तेजी आई थी, जिससे कपास और धागे की अधिक खपत होती गई। लेकिन कम उत्पादन से उपलब्धता पर दबाव ने पहले ही सीएआई को घरेलू खपत के अपने अनुमानों को 320 एलबी तक घटाने ने के लिए मजबूर किया है।
देश में उत्पादन (cotton production in the country)
भारत में कपास के तहत बोया जाने वाला क्षेत्र 2019-20 में 134.77 लाख हेक्टेयर से घटकर 2020-21 में 132.85 लाख हेक्टेयर और 2021-22 में 123.5 लाख हेक्टेयर हो गया है। यह काफी हद तक आनुवंशिक रूप से संशोधित बीटी कपास से घटते लाभों के कारण है, जिसने 2002-03 और 2013-14 के बीच देश के उत्पादन को 136 एलबी से 398 एलबी तक लगभग तिगुना करने में मदद की थी।
बीटी कॉटन का हाल
समय के साथ, बीटी कपास गुलाबी बोलवर्म और सफेद मक्खी कीट के हमलों के लिए अतिसंवेदनशील हो गया है, जिससे किसानों के लिए फसल उगाना जोखिम भरा हो गया है। इसके अलावा, सरकार अगली पीढ़ी की ट्रांसजेनिक प्रजनन तकनीकों के परीक्षण या व्यावसायीकरण की अनुमति नहीं देती है। इस बार, नवंबर-दिसंबर में बेमौसम बारिश से फसल भी प्रभावित हुई है।
एक्सपोर्ट पर रोक की मांग (Demand for ban on export)
कपास की स्थिति के मद्देनजर परिधान निर्यातकों के संगठन एईपीसी के अध्यक्ष नरेंद्र गोयनका ने कहा है कि कपास और सूती धागे की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से चालू वित्त वर्ष के दौरान देश के परिधान निर्यात का 19-20 अरब डॉलर का लक्ष्य प्रभावित हो सकता है। उन्होंने कहा कि पिछले 18 महीनों के दौरान कीमतों में लगभग 125 से 130 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इसका एक कारण कपास और सूती धागे का अंधाधुंध निर्यात होना है। उन्होंने सरकार को कपास और सूती धागे के निर्यात पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया, जैसा कि इंडोनेशिया ने अपने पाम तेल के लिए किया है।
उन्होंने कहा कि 2021-22 में निर्यात 16 बिलियन अमरीकी डालर था और हम इस वित्त वर्ष में 19-20 बिलियन अमरीकी डालर का लक्ष्य रख रहे हैं। लेकिन मूल्य वृद्धि के कारण, यह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एक चिंता का विषय है। उद्योग को कच्चे माल के मोर्चे पर बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।