नई दिल्ली : भारत में डायलिसिस कराने वाली कुल आबादी में केवल 30 प्रतिशत महिलाओं को ही जीवन रक्षक डायलिसिस उपचार प्राप्त हो पाता है। डायलिसिस नेटवर्क कंपनी नेफ्रोप्लस के शोध में कहा गया है कि 70 फीसदी पुरुषों को डायलिसिस सुविधा हासिल होती है। नेफ्रोप्लस के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी विक्रम वुप्पला ने कहा, "जहां ये आंकड़े चिंताजनक है, वहीं यह हमारे समाज की मूलभूत मानसिकता परिलक्षित करता है जिसमें अधिकांश मामलों में महिलाओं को दूसरे दर्जे पर रखा जाता है।"
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उन्होंने कहा, "ऐसे समय में जब स्त्रियां लगातार साबित कर रही हैं कि वे किसी से कम नहीं हैं, वे न्यायोचित व्यवहार की हकदार हैं, विशेषकर स्वास्थ्य सेवा के सन्दर्भ में। अनेक लोगों के लिए डायलिसिस जीवन रक्षक उपचार है, और रंग, सम्प्रदाय या लिंग के आधार पर किसी को भी इस उपचार के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। अब हमारे समाज की पक्षपातपूर्ण मानसिकता को बदलने, डायलिसिस उपचार पर सही जागरूकता फैलाने और इस कलंक को मिटाने का समय आ गया है।"
भारत की सबसे बड़ी डायलिसिस नेटवर्क कंपनी नेफ्रोप्लस ने यह शोध 21,759 लोगों पर चार साल में किए। इसमें 15,437 पुरुष और 6322 महिलाएं शामिल थीं। यह अध्ययन 18 राज्यों के 82 शहरों में स्थित नेफ्रोप्लस के 128 केंद्रों पर किए गए।
इस शोध में सामने आए आंकड़े बताते हैं कि भारत में डायलिसिस कराने वाली कुल आबादी में केवल 30 प्रतिशत स्त्रियों को ही जीवन रक्षक डायलिसिस उपचार प्राप्त हो पाता है।
एक बड़ी अमेरिकी डायलिसिस डेटा रजिस्ट्री के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका में यह अनुपात 43 प्रतिशत है, जबकि अन्य विकसित देशों में भी इसी तरह की स्थिति है। इससे पता चलता है कि भारत में डायलिसिस मरीजों में लिंग के आधार पर भारी भेदभाव किया जाता है।
अध्ययन में पाया गया कि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को डाइलिसिस मुहैया कराने में अत्यधिक भेदभाव किया जाता है। ग्रामीण इलाकों में जहां 29 फीसदी महिलाओं को डायलिसिल उपलब्ध हो पातता है, तो शहरों में यह आंकड़ा 33 फीसदी है। देश के पश्चिमी हिस्से में डायलिसिल पाने में महिला और पुरुषों का अनुपात सबसे बेहतर पाया गया, जहां 35 फीसदी महिलाओं और 65 फीसदी पुरुषों को यह उपलब्ध था।
उसके बाद उत्तरी भारत में 33 फीसदी महिलाओं और 67 फीसदी पुरुषों का डायलिसिल उपलब्ध था। दक्षिण भारत में सबसे अधिक बुरी स्थिति पाई गई, जहां केवल 26 फीसदी महिलाओं को डायलिसिस उपलब्ध था, जबकि पूर्वी भारत में भी स्थिति खास अच्छी नहीं थी वहां केवल 28 फीसदी महिलाओं को ही डायलिसिल उपलब्ध पाया गया।
स्त्रियों को डायलिसिस की सुविधा मुहैया करने में गुजरात, दिल्ली, उत्तराखंड और महाराष्ट्र सबसे आगे पाए गए, जबकि इस मामले में ओडिशा, मध्य प्रदेश और आन्ध्र प्रदेश में सबसे खराब स्थिति है।
हाल ही में एक और अध्ययन में पता चला कि भारत में 70 प्रतिशत प्रतिशत से अधिक जरूरतमंद मरीज डायलिसिस कराने में समर्थ नहीं हैं। हालांकि, सरकारी-निजी साझेदारी में डायलिसिस सेवा में गुणवत्ता और सुरक्षा का उच्च मानदंड बहाल रखने की कोशिशों के साथ-साथ इसे मरीजों की पहुंच में लाने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं, किन्तु नेफ्रोप्लस के अध्ययन में एक स्पष्ट खामी का खुलासा हुआ है कि पुरुष-प्रधान भारतीय समाज में स्वास्थ्य सेवा के मौलिक अधिकार के मामले में भी स्त्रियों को दूसरे स्थान पर रखा जाता है।