Election Road Show: रोड पर जनता और और रथ पर नेता
Election Road Show: रोड शो सड़क पर ही होता है। नेताजी खूब सजे संवरे रथ पर किसी राजा-महाराजा की तरह खड़े हो कर जनता को दर्शन देते किसी शहर की ख़ास सड़कों पर गुजरते हैं।;
Lok Sabha Election Road Show
Election 2024 Road Show: चुनाव का मौसम आते ही तरह तरह के शो शुरू हो जाते हैं। मीडिया के शो, नेताओं के शो और राजनीतिक पार्टियों के शो। दर्शक रहती है जनता। इन्हीं शो में सबसे ज्यादा चर्चा में रहता है "रोड शो।" यह एक ऐसा शो है जो ख़ास इलाकों में और ख़ास नेताओं द्वारा किया जाता है। यह एक्सक्लूसिव चीज है। हमें लगता है यह कोई नई चीज़ है। पर यह सही नहीं है। यह पहले भी थी । पर पहले तो इसका नाम कुछ और ही रहा होगा। लेकिन अब यह शो चुनाव प्रचार का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। चुनावी मौसम में रोड शो का मतलब नेता-प्रचारक-प्रत्याशी द्वारा सड़क भ्रमण।
हमारे लिए तो रोड शो नाम भी एकदम सटीक है । क्योंकि यह शो सड़क पर ही होता है। नेताजी खूब सजे संवरे रथ पर किसी राजा-महाराजा की तरह खड़े हो कर जनता को दर्शन देते किसी शहर की ख़ास सड़कों पर गुजरते हैं। उन पर फूलों की बरसात होती है और यूं ही शो संपन्न हो जाता है। न कोई भाषण और न कोई जुलूस। सिर्फ हाथ हिलाया जाता है।
रोड शो करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी : Photo- Social Media
रोड शो की खासियत यह भी है कि यह सिर्फ शहर और उसमें भी महानगरों में किया जाता है। गाँव – देहात या कस्बे के हिस्से में सभा या रैली ही मिलती है, जहाँ आमतौर पर पवन यान यानी हेलीकाप्टर से नेता उतरते हैं और भाषण दे कर आगे बढ़ जाते हैं। वहां रोड शो नहीं होते। हाँ, कुछ नेता कभी कभार गाँव गाँव जनसंपर्क जरूर कर लेते हैं । लेकिन अब वो भी ख़त्म होता जा रहा है। शहरों की बात दूसरी है। वहां जगमगाहट है, रौनक है सो वहां रैली या सभा नहीं बल्कि रोड शो होता है। जरूर किसी चुनाव मैनेजमेंट कंसल्टेंट ने इसे डिजाईन किया होगा।
रोड शो करते केंदीय गृह मंत्री अमित शाह : Photo- Social Media
नेता और दल भी जानते हैं कि रैलियों के लिए आज के जमाने में भीड़ जुटाना कितना दुष्कर काम है। खर्चा भी कितना होता है। शहरों में न किसी के पास फुर्सत है। न इंटरेस्ट है कि शहर के किसी बाहरी कोने में जा कर जनसभा में धक्के खाए। यही नहीं, शहर में रैली करना खासा महँगा भी बैठता है। खर्चे का कागजी हिसाब किताब तो देना ही पड़ता है । सो इस टंटे से बचने का सीधा सरल और मुफीद उपाय रह गया है-रोड शो का। कोई भीड़ भरे इलाके का रास्ता तय कर लीजिये, रस्ते में झंडी, फूल, बैनर की व्यवस्था करनी है, बस। चूँकि भीड़ वाला इलाका है सो हजारों लोग सड़क पर हमेशा ही मौजूद रहते हैं। कम खर्चा और टारगेट पूरा। न गली गली पदयात्रा करना और न किसी की टेढ़ी बात सुनने का टेंशन। बस रथ पर खड़े हो कर हाथ ही हिलाना है। राहगीरों और दुकानदारों का मनोरंजन भी हो जाता है और दर्शन लाभ भी मिल जाता है।
अखिलेश यादव : Photo- Social Media
मनोरंजन से बात निकलती है कि रोड शो असल परिभाषा में सबसे पहले यही निकल कर आता है कि कलाकारों द्वारा शहर शहर जा कर शो करने को रोड शो कहते हैं। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि गुजरे ज़माने में किसी फिल्म का प्रचार रिक्शे पर लाउडस्पीकर से मोहल्लों में घूम घूम कर किया जाता था वह भी रोड शो था। घुमन्तु सर्कस या नुमाइश भी रोड शो है। कंपनी के आईपीओ यानी शेयर लांच कने के समय उसके प्रचार या बाहर देश से पैसे वालों को इन्वेस्टमेंट के लिए लुभाने के प्रोग्राम को भी रोड शो कहा जाता है। सभी जगह यही सिस्टम है।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प : Photo- Social Media
अब यही चीज जब नेता अपने पोलिटिकल प्रचार के लिए करने लगे तो ये उनका रोड शो हो गया। यह कोई भारत तक ही सीमित नहीं है, यह अमेरिका में भी होता है। फर्क इतना है कि हमारे यहाँ सडकों पर नेता रथ पर खड़े हो कर हाथ हिलाते हैं ।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन : Photo- Social Media
लेकिन अमेरिका में नेता अलग अलग शहरों में किसी ऑडिटोरियम या छोटे मैदान में जनता से सीधे संपर्क करते हैं । अपनी बात रखते हैं। वहां इस साल के राष्ट्रपति चुनावों के लिए जो बिडेन और डोनाल्ड ट्रम्प जिस तरह अलग अलग राज्यों और शहरों में अपने समर्थकों के बीच जा कर प्रचार करते हैं, उसे रोड शो की ही संज्ञा दी जाती है।
प्रियंका गांधी और राहुल गांधी : Photo- Social Media
समय-समय पर हमें कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से लेकर असम और आगे तक लगभग सभी बड़ी पार्टियों के तरह तरह के मनोरंजक रोड शो देखने को मिले हैं। राजनेताओं द्वारा इन शो में कई शानदार परफॉरमेंस किए गए हैं, जिनमें एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ देखी जाती है। कितनी भीड़, कितनी तैयारी, कितने लोग जुटने का अनुमान, एक समां बांधा जाता है। पहले तो रोड शो में सिनेमा कलाकार सेलेब्रिटीज़ जुटाई जाती थीं ।
अभिनेत्री कंगना रानौत: Photo- Social Media
लेकिन अब उनका आकर्षण भी ख़त्म हुआ है । सो अब रोड शो में सिनेमा कलाकार कम ही नजर आते हैं, अब स्टार नेता और स्टार प्रचारक ही सेलिब्रिटीज़ हैं, कलाकार हैं। वैसे भी नेता सबसे बड़ा अभिनेता होता है। अब तो इन राजनीतिक रोड शो के लिए भी एक अवॉर्ड का आयोजन होना चाहिए। क्योंकि इनमें भी एक्शन, रोमांच, कॉमेडी, नाटक, रहस्य, पारिवारिक ड्रामा यानी हर तरह की सिनेमाई शैली नजर आती है।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी: Photo- Social Media
खैर, एक सवाल वाजिब है कि भारत में इस पोलिटिकल परफॉरमेंस की शुरुआत की किसने थी? तो जान लीजिये कि दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने ही इसकी शुरुआत की थी। उन्होंने चुनावों के समय में दिल्ली और रायबरेली में खुली कार या जीप में सवार हो कर सड़कों पर निकलना शुरू किया। इस तरह रोड शो की शुरुआत की। उन्होंने रायबरेली में अपने बेटे राजीव और बहू सोनिया के संग एक खुली जीप में सड़क पर जनता के बीच रोड शो किया था। इन्हीं रोड शो में वह अपनी पहनी हुईं फूल मालाएं जनता के बीच उछाल देती थीं। जनता में प्रसाद मान कर उसे लपकने की होड़ लग जाती थी। तब यह रोड शो नहीं कहा जाता था। शायद कोई भी नाम नहीं था। मगर अब सब शो है । सो इसका भी नाम रोड शो दे दिया गया।
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव : Photo- Social Media
अगर आप शहरी/महानगरीय बाशिंदे हैं तो आप रोड शो से भली भांति परिचित होंगे, भले ही आप इनसे कोसों दूर रहते हों। रोड शो से उत्पन्न घंटों के ट्रैफिक जाम से दो-चार न भी हुए हों तो उसके किस्से सुनते और पढ़ते जरूर होंगे। फिलहाल जब तक कुछ नया शो ईजाद न हो जाये तब तक रोड शो के मज़े लेते रहिये, डांस ऑफ़ डेमोक्रेसी का उत्सव मनाते रहिये।
(लेखक पत्रकार हैं ।)