Electricity Amendment Bill 2022: आखिर क्या है बिजली बिल में जिसका विरोध कर रहा विपक्ष और बिजली कर्मी

Electricity Amendment Bill 2022: केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पास किये गए विद्युत अधिनियम की धारा 42 और 14 मंं संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2022-08-10 12:06 IST

Electricity (फोटो: सोशल मीडिया )

Electricity Amendment Bill 2022: केंद्र सरकार ने सोमवार को बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को लोकसभा में पेश किया, जिसके तुरंत बाद इसे हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श के लिए ऊर्जा संबंधी संसदीय स्थायी समिति के पास भेज दिया गया।

प्रस्तावित संशोधनों के तहत, बिजली डिस्ट्रीब्यूशन में निजी क्षेत्र भी आ जायेगा, एक ही क्षेत्र में कई डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियां हो जाएंगी, बिजली दरों की न्यूनतम व अधिकतम सीमा तय कर दी जाएगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पास किये गए विद्युत अधिनियम की धारा 42 और 14 मं संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है। ये दोनों धाराएं उपभोक्ताओं के लिए हैं।

इसमें ग्राहकों को बिजली आपूर्तिकर्ताओं को चुनने का विकल्प दिया गया है। जिस तरह उपभोक्ता मोबाइल या इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर को चुन सकते हैं ठीक वैसे ही बिजली सप्लायर को चुन सकेंगे। इस तरह ये संशोधन बिजली के खुदरा वितरण में प्रतिस्पर्धा को सक्षम बनाता है। संशोधित धारा 14 में बिल कहता है, "गैर-भेदभावपूर्ण खुली पहुंच के प्रावधानों के तहत सभी लाइसेंसधारियों द्वारा वितरण नेटवर्क के उपयोग की सुविधा प्रदान करेगा", जबकि धारा 42 को "वितरण नेटवर्क के लिए गैर-भेदभावपूर्ण खुली पहुंच की सुविधा" के लिए संशोधित किया जाएगा।

- ये विधेयक, बिजली अधिनियम की धारा 62 के संशोधन के जरिये बिजली वितरण कंपनियों के अनाप शनाप मूल्य निर्धारण से बचने और उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए उपयुक्त आयोग द्वारा न्यूनतम और अधिकतम टैरिफ सीमा के अनिवार्य निर्धारण का प्रावधान करता है।

- संशोधन विधेयक में वर्गीकृत और समय पर टैरिफ संशोधन सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान हैं। जिससे राज्यों की बिजली कंपनियों को बिजली उत्पादकों को समय पर भुगतान करने में सक्षम होने के लिए पर्याप्त नकदी प्रदान करने में मदद मिलेगी। इस कदम का उद्देश्य बिजली उत्पादन कंपनियों को भुगतान में डिफ़ॉल्ट की पुरानी समस्या का समाधान करना है।

- अधिनियम की धारा 166 में संशोधन के माध्यम से बिल भुगतान तंत्र को मजबूत करने और नियामकों को अधिक अधिकार देने का भी प्रयास किया गया है। विधेयक के अनुसार, नियामक तंत्र तथा न्यायिक तंत्र को मजबूत करना और वितरण लाइसेंसधारियों के बेहतर कॉर्पोरेट प्रशासन के माध्यम से प्रशासनिक सुधार लाना आवश्यक हो गया है।

विरोध क्यों किया जा रहा है?

कई विपक्षी शासित राज्यों और राज्यों के बिजली कर्मचारी संगठनों द्वारा विधेयक के प्रावधानों का विरोध किया जा रहा है। संसद के निचले सदन में बिजली (संशोधन) विधेयक पेश किए जाने के बाद, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस विधेयक को "खतरनाक" करार देते हुए ट्वीट किया कि इससे कुछ बिजली वितरण कंपनियों को फायदा होगा। केजरीवाल ने कहा है कि इससे देश में बिजली की समस्या सुधरने की बजाय और गंभीर होती जाएगी तथा लोगों की परेशानी बढ़ेगी।

जब बिजली मंत्री आर के सिंह ने लोकसभा में विधेयक पेश किया तो कांग्रेस, द्रमुक और वाम दलों जैसे विपक्षी दलों ने विधेयक को वापस लेने की मांग की जबकि वाईएसआरसीपी और बीजेडी जैसे दलों ने व्यापक विचार-विमर्श पर जोर दिया। विधेयक का विरोध करते हुए आरएसपी के एन.के. प्रेमचंद्रन ने कहा कि प्रस्तावित कानून के प्रावधान संघीय ढांचे के खिलाफ हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र ने विधेयक पर राज्यों से परामर्श नहीं किया है।

ये विधेयक ऐसे समय में आया है जब राजनीतिक दलों द्वारा दी जा रही मुफ्त सुविधाओं के बारे में बहस चल रही है, जिसके कारण अन्य चीजों के अलावा, विभिन्न राज्य बिजली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) बिजली उत्पादन कंपनियों को समय पर भुगतान नहीं कर पाती हैं।सरकारी आंकड़ों के अनुसार, तीन राज्यों - तमिलनाडु, महाराष्ट्र और तेलंगाना के डिस्कॉम पर बिजली उत्पादन कंपनियों के कुल बकाये के लगभग 57 प्रतिशत का बोझा है। इसके बाद उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर तथा मध्यप्रदेश का स्थान आता है जिन पर बिजली उत्पादन कंपनियों के कुल बकाया 114,222 करोड़ रुपये का लगभग 26 प्रतिशत बोझ है।

31 मार्च, 2022 तक के सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि राज्यों का वितरण कंपनियों पर 62,931 करोड़ रुपये का बकाया है। यही नहीं, राज्यों द्वारा घोषित मुफ्त की योजनाओं के रूप में 76,337 रुपये का बकाया अलग से है।

डिस्कॉम को भुगतान करने में चूक करने वाले राज्यों में, तेलंगाना 11,915 करोड़ रुपये के संचयी बकाया के साथ सबसे आगे है, इसके बाद महाराष्ट्र (9,131 करोड़ रुपये) है। उत्तर प्रदेश उन राज्यों में सबसे आगे है, जिन्होंने सब्सिडी के लिए डिस्कॉम को भुगतान नहीं किया है। यूपी पर 18,946 करोड़ रुपये की बकाया राशि है। उसके बाद मध्य प्रदेश (16,240 करोड़ रुपये) का स्थान है।

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