राफेल डील: पूर्व मंत्रियों ने SC में दाखिल की पुनर्विचार याचिका, जानिए पूरी कथा

राफेल डील में केंद्र की मोदी सरकार को क्लीन चिट मिलने के बाद बीजेपी के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से राफेल केस पर अपने फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध करते हुए याचिका दाखिल की है। आपको बता दें, कोर्ट ने 14 दिसंबर को अपने फैसले में कहा था कि राफेल डील में अनियमितता नजर नहीं आई।

Update:2019-01-02 12:34 IST

नई दिल्ली : राफेल डील में केंद्र की मोदी सरकार को क्लीन चिट मिलने के बाद बीजेपी के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से राफेल केस पर अपने फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध करते हुए याचिका दाखिल की है। आपको बता दें, कोर्ट ने 14 दिसंबर को अपने फैसले में कहा था कि राफेल डील में अनियमितता नजर नहीं आई।

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क्या है मांग

याचिकाकर्ताओं ने पुनर्विचार अर्जी के लिए ओपन कोर्ट में मौखिक सुनवाई करने का अनुरोध करते हुए कहा राफेल पर हाल के फैसले में कई त्रुटियां हैं। यह फैसला सरकार द्वारा किए गए गलत दावों पर आधारित है, जो सरकार ने बिना हस्ताक्षर के सीलबंद लिफाफे में दिया था और इस तरह से स्वाभाविक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है।

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जानिए क्या है विवाद

वायुसेना की ताकत बढ़ाने के लिए लड़ाकू विमान खरीद की पहल पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने की और 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव कांग्रेस की अगली सरकार में परवान चढ़ा।

तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी की अगुवाई वाली रक्षा खरीद परिषद ने अगस्त 2007 में 126 एयरक्राफ्ट की खरीद को मंजूरी दी। बिडिंग की प्रक्रिया शुरू हुई और अंत में लड़ाकू विमानों की खरीद का आरएफपी जारी हुआ।

लड़ाकू विमानों की रेस में बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, डसॉल्‍ट राफेल, यूरोफाइटर, लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्‍कन, मिखोयान मिग-35 और साब जैस 39 ग्रिपेन शामिल हुए। बाजी लगी राफेल के हाथ।

बताया गया कि राफेल की कीमत काफी कम थी और इसका रख-रखाव भी सस्‍ता था। ये 3 हजार 800 किमी तक उड़ान भर सकता है।

वायुसेना ने विमानों का तकनीकी परीक्षण और जांच की। प्रक्रिया 2011 तक चली।

2012 में राफेल को बिडर घोषित किया गया और इसके उत्पादन के लिए डसाल्ट ए‍विएशन के साथ बातचीत शुरू हुई। लेकिन बातचीत 2014 तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि डसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर भी एकमत नहीं था।

2014 में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी सरकार बनी तो 2015 में पीएम फ्रांस गए और राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर समझौता किया। भारत ने जल्द से जल्द 36 राफेल लेने की बात की थी।

दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ।

समझौता होने के करीब 18 महीने के अंदर आपूर्ति शुरू होनी थी। लेकिन 'राफेल डील' को राजनीति का ग्रहण लग गया और खरीद में अपारदरर्शिता के आरोप लगने लगे।

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उनकी सरकार 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ चुका रही थी। जबकि 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ देने पड़ रहे हैं।

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