दुल्हे की घोड़ी पर चढ़कर दुल्हन के द्वार पहुंचने की हसरत अब नहीं हो सकेगी पूरी

Update:2017-11-03 14:53 IST

जयपुर: शादी में घोड़ी पर चढ़कर दुल्हन के द्वार पर पहुंचना बहुत से दूल्हों की ख्वाहिश होती है। राजस्थान में तो यह विवाह समारोह का एक शगुन भी माना जाता है, लेकिन इस बार शादियों के मौसम में राजस्थान में न तो दूल्हे की घोड़ी पर चढऩे की हसरत ही पूरी हो सकेगी और न ही दूल्हे की मां का घोड़ी पूजन का शगुन ही पूरा हो पाएगा। राजस्थान में घोड़े और खच्चरों में फैले ग्लैंडर्स रोग के कारण शादियों में घोड़ी के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। चार महीने देवशयन के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देवउठनी एकादशी के साथ ही शादियों का सीजन शुरू हो गया है।

शुरू हो गए मांगलिक कार्य

कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने बाद पाताल लोक से क्षीरसागर में लौटे। इसके साथ ही शादी-ब्याह, गृह प्रवेश, गृह निर्माण आदि मांगलिक व शुभ कार्यों का शुभारंभ हुआ। इस मौके पर मंदिरों में देव दिवाली मनाई गयी, साथ ही तुलसी-शालिगराम विवाह भी हुए। मांगलिक सीजन शुरू होने के साथ एक बुरी खबर यह है कि प्रदेश भर में घोड़ों में खतरनाक संक्रामक ग्लैंडर्स रोग फैलने से इस बार दूल्हे घोड़ी नहीं चढ़ सकेंगे।

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घोड़े-घोडिय़ों का उपयोग नहीं करने की अपील

पशुपालन विभाग ने शादी समारोह में घोड़े-घोडिय़ों का उपयोग नहीं करने की अपील की है। नवंबर 2016 में धौलपुर से फैला यह रोग अब तक उदयपुर, राजसमंद, अजमेर सहित अन्य जिलों में 27 घोड़े-घोडिय़ों, खच्चरों की जान ले चुका है। यह रोग मनुष्यों में भी तेजी से फैल सकता है।

देश-दुनिया में अभी तक ग्लैंडर्स रोग का इलाज उपलब्ध नहीं है। टेंट डीलर्स एसोसिएशन ने भी पदाधिकारियों को भेजे पत्र में शादियों के इस मौसम में घोड़े-घोड़ी का उपयोग नहीं करने के लिए कहा है। घोड़ों से इंसानों को रोग होने का खतरा होने से राजस्थान टेंट डीलर्स किराया व्यवसाय समिति ने पूरे राजस्थान में बारातों में घोड़े-घोड़ी सप्लाई करने पर रोक लगा दी है। समिति के प्रदेश अध्यक्ष रवि जिंदल ने बताया कि सभी जिलाध्यक्षों व महामंत्रियों से आग्रह किया गया है कि शादी-बारातों में घोड़े-घोडिय़ों का उपयोग न किया जाए। साथ ही इस रोग के बारे में अपने ग्राहक को आगाह करें और बारात में घोड़े-घोड़ी का उपयोग न करने की सलाह दें।

घोड़ों के अस्तित्व पर संकट

राजस्थान की अर्थव्यवस्था पशुप्रधान मानी जाती है,लेकिन यहां पशुओं पर लगातार संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। ऊंटों और कुत्तों के बाद अब घोड़ों के अस्तित्व पर यह संकट आ गया है। राजस्थान जैसे देश के सबसे बड़े क्षेत्रफल वाले प्रांत में मात्र 37700 घोड़े ही बचे हैं। पिछले 15 सालों में राजस्थान में ऊंट आधे से भी कम रह गए। यह राजस्थान के लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी चिंताजनक है। राजस्थान में देश के ऊंटों की कुल आबादी का 81,37 प्रतिशत रहता है। सन 2012 की पशुगणना में यहां ऊंटों की संख्या 3,25 लाख रह गई है। लोकहित पशुपालक संस्थान के अध्यक्ष हनवंत सिंह राठौड का मानना है कि हमारे अनुमान के अनुसार अब राजस्थान में दो लाख से भी कम ऊंट ही बचे हैं। इससे राज्य के करीब सात हजार ऊंट पालक परिवारों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है।

राजस्थान में कुछ ही सालों के अंदर कुत्तों की तादाद घटकर आधी ही रह गई। राजस्थान के पशुपालन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 2007 में हुई पशुगणना में प्रदेश में जहां कुत्तों की तादाद 12 लाख 46 हजार 36 थी। 2012 में हुई प्रदेश की अंतिम पशुुगणना में यह संख्या घटकर पांच लाख 69 हजार 575 ही रह गई। इस तरह इन पांच सालों में रातस्थान में कुत्तों की तादाद में आधे से भी ज्यादा यानी 54 प्रतिशत से भी अधिक की गिरावट आई।

पुष्कर मेले में रहा सन्नाटा

ग्लैंडर्स बीमारे के कारण पुष्कर अंतरराष्ट्रीय पशु मेले में इस बार एक भी घोड़ा बिक्री के लिए नहीं आया। सितंबर की शुरुआत में ही मेले में घोड़ों को प्रतिबंधित कर दिया गया था। प्रतिबंध के मद्देनजर जिन गाडिय़ों को प्रतिबंधित पशु के साथ पकड़ा गया उन्हें वापस भेज दिया गया था। पुष्कर मेले में सबसे ज्यादा मांग घोड़ों की ही होती है और बीते 10 साल में यहां रेकॉर्ड 3 करोड़ रुपये के घोड़ों की बिक्री भी हुई है।

यूपी में संकट

ग्लैंडर्स रोग का व्यापक फैलाव २००६ में पाया गया था। २०१४ में इस बीमारी के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश से रिपोर्ट किए गए, लेकिन पिछले तीन साल में यह बीमारी हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, बंगाल, राजस्थान और मध्य प्रदेश तक फैल गई है। 'डाउन टू अर्थ' के अनुसार सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश से सामने आए हैं।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय एवं पशुपालन विभाग के अनुसार यृपी से कहा गया है कि वह इस बार जाड़े के मौसम में पशु मेलों का आयोजन न करे। यूपी में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत सभी जिलों में एक प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है जिसमें अश्व प्रजाति के पशुओं के ब्लड सीरम सैम्पल जांच के लिए हिसार स्थित केंद्रीय संस्थान में भेजे जा रहे हैं।

क्या है ग्लैंडर्स बीमारी

घोड़ों-खच्चरों में होने वाली ग्लैंडर्स बीमारी का प्रकोप देशभर में है। इस बीमारी की वजह से पूरे शरीर में गांठें होने लगती हैं। नाक और मुंह से लगातार पानी बहता रहता है और धीरे-धीरे ये गांठें जानलेवा बन जाती हैं। इस बीमारी की सबसे खतरनाक बात यह है कि इस रोगी के सम्पर्क में आने वाला हर जानवर और इंसान भी इसका शिकार बन जाता है। समझा जाता है कि इस बीमारी फैलाव सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश से हुआ है। मेलों में खरीद-बिक्री के बाद पशु देश के विभिन्न हिस्सों में जाते हैं और इस तरह यह बीमारी बाहर फैल जाती है।

वर्ष 2006 में देश में ग्लैंडर्स घोड़े में दिखाई दिया था, लेकिन उसे तुरंत काबू कर लिया गया था। अब फिर इस रोग के मामले लगातार बड़े स्तर पर सामने आ रहे हैं। ग्लैंडर्स बीमारी की पुष्टि के बाद पशुओं को मार दिए जाने की सलाह दी जाती है ताकि बाकी के जानवरों के साथ पशुपालक भी बीमारी से सुरक्षित रह सकता है। मरने के बाद रोगग्रस्त पशु को ऐसे दफनाया जाता है कि उसे कोई कुत्ता या अन्य जानवर न खा सकें क्योंकि यह बीमारी तेजी से फैलती है। ग्लैंडर्स और फार्सी अधिनियम 2009 में इस बीमारी से घोड़े के मरने पर 25,000 रुपए और गधों, खच्चर के मरने पर 16000 रुपए की धनराशि पशुपालकों को दी जाती है।

लक्षण

गले व पेट में गांठ पड़ जाना।

जुकाम होना (लसलसा पदार्थ निकलना)।

श्वासनली में छाले।

फेफड़े में इंफेक्शन।

बचाव के लिए क्या करें

पशु को समय पर ताजा चारा-पानी दें।

बासी खाना न दें।

ज्यादा देर तक मिट्टी-कीचड़ में न रहने दें

साफ-सफाई का ध्यान रखें।

गर्मी में नहलाना चाहिए।

दवाओं का छिड़काव जरूर करें।

बीमार पशुओं के नजदीक अन्य पशुओं को न जाने दें।

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