GST काउंसिल की बैठक खत्म, इस बड़े मुद्दे पर नहीं बात, जानिए क्या है वजह
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि केंद्र का प्रस्ताव कानून के दायरे में है, लेकिन अगर कुछ राज्यों को मंजूर नहीं है तो फिर आगे देखते हैं अब क्या समाधान निकलता है।
लखनऊ: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अगुवाई में सोमवार को जीएसटी काउंसिल की बैठक हुई। इस बैठक में भी जीएसटी कलेक्शन में कमी के कारण राज्यों को राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए क्षतिपूर्ति भुगतान पर कोई फैसला नहीं हो पाया। बैठक के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जिस मुद्दे पर ये बैठक हुई उसपर आम सहमति नहीं बन पाई।
सीतारमण की अगुवाई में राज्यों के वित्त मंत्रियों वाली परिषद की तीसरी बार बैठक हुई है जिसमें जीएसटी राजस्व में कमी की क्षतिपूर्ति पर चर्चा की गई। वित्त मंत्री ने कहा कि केंद्र ने राज्यों के सामने दो प्रस्ताव रखे हैं, देश के 21 राज्य ऑप्शन-1 से सहमत हैं, तो वहीं अन्य राज्य केंद्र के प्रस्ताव से सहमत नहीं हैं। सभी राज्यों के साथ विस्तार से चर्चा की गई है।
निर्मला सीतारमण ने कहा कि केंद्र का प्रस्ताव कानून के दायरे में है, लेकिन अगर कुछ राज्यों को मंजूर नहीं है तो फिर आगे देखते हैं अब क्या समाधान निकलता है। केंद्र के प्रस्ताव का विरोध करने वाले राज्यों में दिल्ली, केरल, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु शामिल हैं।
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इससे पहले 5 अक्टूबर को जीएसटी काउंसिल की बैठक हुई थी। इसके बाद निर्मला सीतारमण ने कहा था हम राज्यों को मुआवजे की राशि से मना नहीं कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना संकट के कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई है। ऐसी स्थिति की पहले किसी ने कल्पना नहीं की थी। उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात इस तरह का नहीं है कि केंद्र सरकार फंड पर कब्जा करके बैठी है, और देने से मना कर रही है। फंड उधार लेना होगा।
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वित्त मंत्री ने कहा कि लग्जरी और कई अन्य तरह की वस्तुओं पर लगने वाले कम्पनसेशन सेस को जून-2022 से भी आगे बढ़ाया जाएगा। यह कि कार, सिगरेट जैसे प्रोडक्ट पर कम्पनसेशन सेस आगे भी लगता रहेगा, राज्यों को नुकसान से बचाने के लिए यह निर्णय लिया गया है। नियम के मुताबिक यह जीएसटी लागू होने के बाद सिर्फ पांच साल तक लगना था।
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बता दें कि राज्य लगभग 2.35 लाख करोड़ रुपये का जीएसटी का बकाया मुआवजा देने की केंद्र सरकार से मांग कर रहे हैं। इसके बदले में केंद्र ने उन्हें उधार लेने के दो विकल्प दिए हैं। हालांकि केंद्र की इस पेशकश पर राज्य एकमत नहीं हैं।
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