Jharkhand Politics: चंपई की बगावत से झामुमो को होगा कितना नुकसान, BJP यूं ही नहीं डाल रही डोरे

Jharkhand Politics: भाजपा नेताओं का मानना है कि चंपई के झामुमो से अलग होने के बाद कोल्हान क्षेत्र में भाजपा को ज्यादा मुश्किलों का सामना नहीं करना होगा। दूसरी ओर झामुमो को इससे इलाके में बड़ा सियासी झटका लग सकता है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2024-08-20 03:04 GMT

Jharkhand Politics (Pic: Social Media)

Jharkhand Politics: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन की बगावत झारखंड की सियासत पर बड़ा असर डालने वाली साबित होगी। भाजपा ने चंपई सोरेन पर डोरे यूं ही नहीं डाल रखे हैं। हालांकि चंपई सोरेन ने अभी तक आगे की सियासत के लिए अपने पत्ते नहीं खोले हैं मगर उनकी बगावत का भाजपा को बड़ा फायदा मिलना तय माना जा रहा है।

झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान एक भी सीट न जीत पाने वाली भाजपा अब आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर आशान्वित दिख रही है। भाजपा नेताओं का मानना है कि चंपई के झामुमो से अलग होने के बाद कोल्हान क्षेत्र में भाजपा को ज्यादा मुश्किलों का सामना नहीं करना होगा। दूसरी ओर झामुमो को इससे इलाके में बड़ा सियासी झटका लग सकता है। ऐसे में अब सबकी निगाहें चंपई सोरेन के अगले सियासी कदम पर टिकी हुई हैं।

इस इलाके पर चंपई की जबर्दस्त पकड़

पूर्व मुख्यमंत्री चौपाई सोरेन का ताल्लुक झारखंड के कोल्हान रीजन से है और इस रीजन में झारखंड के सरायकेला, पूर्वी सिंहभूम और पश्चिमी सिंहभूम जैसे जिले आते हैं। यदि विधानसभा सीटों की बात की जाए तो इन तीन जिलों में विधानसभा की 14 सीटें हैं। झारखंड में 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा को इस इलाके में करारा झटका लगा था और पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी।


दूसरी और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कोल्हान रीजन में जबर्दस्त बढ़त हासिल करते हुए 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। दो सीटों पर कांग्रेस और एक विधानसभा सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली थी। भाजपा को लगे झटके को इस तरह समझा जा सकता है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास भी जमशेदपुर की अपनी सीट नहीं बचा सके थे।

चंपई के आने से भाजपा को होगा बड़ा फायदा

झामुमो को मिली इस बड़ी जीत में चंपई सोरेन की मजबूत पकड़ और चुनावी रणनीति को बड़ा कारण माना गया था। कोल्हान को झामुमो का गढ़ बनाने में चंपई सोरेन की प्रमुख भूमिका मानी जाती रही है और अब उनके बागी तेवर से पार्टी को भारी झटका लगना तय माना जा रहा है। यही कारण है कि भाजपा को अब कोल्हान रीजन में उम्मीद की नई किरण दिखने लगी है।

चंपई सोरेन ने यदि भाजपा का दामन थामा तो पार्टी को निश्चित रूप से भारी सफलता मिलेगी मगर यदि चंपई ने भाजपा का दामन नहीं ढी थामा तो भी झामुमो को हुए नुकसान से भाजपा फायदे में रह सकती है। भाजपा नेताओं का मानना है कि चंपई के झामुमो छोड़ने से अब भाजपा को इस इलाके में ज्यादा मुश्किलों का सामना नहीं करना होगा।

पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को आदिवासी सीटों पर बड़ा झटका लगा था। पार्टी राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी सीटों पर हार गई थी और इस कारण भाजपा के सीटों की संख्या 11 से घटकर आठ पर पहुंच गई थी। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा आदिवासी समीकरण को दुरुस्त करने की कोशिश में जुटी हुई है।

परिवारवाद के मुद्दे पर घिर जाएंगे हेमंत

चंपई सोरेन ने यदि भाजपा में शामिल होने का फैसला किया तो पार्टी को झारखंड में एक मजबूत आदिवासी चेहरा भी मिल जाएगा। भाजपा अभी तक हेमंत सोरेन और झामुमो को परिवारवाद की पिच पर घेरती रही है और चंपई सोरेन की बगावत से भाजपा के इन आरोपों को और मजबूती मिली है। चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री के पद से हटाए जाने के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने बड़ा बयान दिया था।

उनका कहना था कि यह बात पूरी तरह साबित हो गई है कि कोई आदिवासी भले ही हो मगर झामुमो को सोरेन परिवार से बाहर कोई चेहरा स्वीकार नहीं है। चंपई की बगावत के बाद भाजपा को झामुमो को घेरने का एक बड़ा मौका हाथ लग गया है और माना जा रहा है कि पार्टी चुनाव में इस मुद्दे को उछालने से पीछे नहीं हटेगी।

झामुमो नेताओं के दावे में दम नहीं

दूसरी ओर झामुमो की मुश्किलें बढ़ती हुई नजर आ रही हैं। हेमंत सोरेन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं और परिवारवाद के मोर्चे पर भी वे बुरी तरह घिरते हुए नजर आ रहे हैं। जमीन घोटाले के सिलसिले में उन्हें हाल में लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा है। ऐसे में स्वच्छ छवि वाले चंपई सोरेन का विरोधी खेमे में जाना झामुमो को बड़ा सियासी नुकसान पहुंचाने वाला साबित हो सकता है।

हालांकि झामुमो नेताओं की ओर से दावा किया जा रहा है कि चंपई की बगावत से कोई राजनीतिक नुकसान नहीं होगा मगर सियासी जानकारों का मानना है कि चंपाई की यह बगावत आदिवासी वोटों के साथ ही विधानसभा सीटों के मामले में भी झामुमो को झटका देने वाली साबित हो सकती है।

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