Jharkhand Politics: चंपई की बगावत का हेमंत सरकार पर क्या होगा असर, झारखंड विधानसभा का गणित समझना जरूरी

Jharkhand Politics: चंपई सोरेन के साथ झामुमो के 6 विधायकों के भी पाला बदलने की चर्चाएं हैं और यही कारण है कि झारखंड में सियासी हलचल काफी तेज हो गई है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update: 2024-08-19 03:20 GMT

सीएम हेमंत सोरेन और चंपई सोरेन (Pic: Social Media)

Jharkhand Politics: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के दिग्गज नेता चंपई सोरेन ने बागी तेवर अपना लिया है। पिछले तीन दिनों से उन्हें लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं और अब यह अटकलें सच साबित हुई हैं। चंपई सोरेन ने खुद को अपमानित किए जाने का बड़ा आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर निशाना भी साधा है। अब देखने वाली बात होगी कि चंपई सोरेन अपनी नई पार्टी बनाते हैं या भाजपा में शामिल होकर झामुमो के लिए बड़ी चुनौती खड़ी करते हैं।

चंपई सोरेन के साथ झामुमो के 6 विधायकों के भी पाला बदलने की चर्चाएं हैं और यही कारण है कि झारखंड में सियासी हलचल काफी तेज हो गई है। ऐसे में यह समझना भी जरूरी है कि यदि चंपई सोरेन समेत सात विधायक भाजपा में शामिल हो जाते हैं तो झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार पर क्या असर पड़ने वाला है।


झारखंड में जल्द होने वाला है चुनाव

वैसे तो झारखंड में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनाव आयोग ने हाल में जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया था मगर महाराष्ट्र और झारखंड में अभी चुनाव की तारीखें नहीं घोषित की गई हैं। चुनाव आयोग के इस कदम से माना जा रहा है कि झारखंड में कम से कम दो महीने के लिए चुनाव टल गया है।

जमीन घोटाले में जमानत मिलने के बाद हेमंत सोरेन ने आनन-फानन में झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की कमान संभाल ली थी। इसके बाद उन्होंने 8 जुलाई को विधानसभा में विश्वास मत का प्रस्ताव रखा था जिस पर हेमंत सोरेन को 45 विधायकों का समर्थन हासिल हुआ था। विधानसभा में विपक्ष ने विश्वास मत प्रस्ताव का बहिष्कार किया था।

झारखंड विधानसभा का गणित

यदि झारखंड विधानसभा के गणित को देखा जाए तो विधानसभा में मनोनीत समेत विधायकों की संख्या 82 है। इनमें 81 चुने हुए सदस्य शामिल हैं जबकि एक सदस्य मनोनीत है। इनमें से चार विधायक सांसद बन चुके हैं जबकि झामुमो विधायक सीता सोरेन ने पिछले दिनों विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। इस कारण मौजूदा समय में झारखंड विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 77 है।

यदि चंपई सोरेन अपने साथी छह अन्य विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो जाते हैं तो हेमंत सोरेन को समर्थन देने वाले विधायकों की संख्या 45 से घटकर 38 पर आ जाएगी। झारखंड की 77 सदस्यीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए 39 विधायकों के समर्थन की दरकार होगी। ऐसे में हेमंत सोरेन की सरकार के लिए संकट पैदा हो सकता है।

वैसे अगर इन सात विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाती है तो विधानसभा की सदस्य संख्या 70 ही रह जाएगी। ऐसे में सरकार को बचाने के लिए 36 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी जो हेमंत सोरेन के पास मौजूद है।

विभिन्न राजनीतिक दलों की ताकत

यदि झारखंड विधानसभा के मौजूदा गणित को देखा जाए तो वर्तमान में झामुमो के 27, कांग्रेस के 17, राजद का एक और माकपा का एक विधायक है। दूसरी ओर भाजपा के 24, आजसू के तीन, एनसीपी का एक और दो निर्दलीय विधायक हैं। एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि सरकार का कार्यकाल छह महीने से कम का बचा हुआ है और क्या ऐसे में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है?

वैसे कानूनी और संसदीय मामलों के जानकारों का कहना है कि अविश्वास प्रस्ताव के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। संविधान के अनुसार राज्य विधानसभा के दो सत्र आयोजित करने के बीच की अवधि 6 महीने से कम की होनी चाहिए। जानकारों का कहना है कि यदि विपक्ष की ओर से अविश्वास प्रस्ताव की मांग की जाती है तो छह महीने की यह अवधि लागू नहीं होगी।

झारखंड की राजनीति पर पड़ेगा बड़ा असर

झारखंड के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता चंपई सोरेन के अगले कदम का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उनका अगला कदम झारखंड की राजनीति को गहराई से प्रभावित करने वाला साबित हो सकता है। वैसे जानकारों का यह भी कहना है कि चंपई सोरेन के भाजपा का दामन थामने पर भी पार्टी की ओर से अविश्वास प्रस्ताव से परहेज किया जा सकता है ताकि हेमंत सोरेन को इसका सियासी फायदा मिलने से रोका जा सके।

वैसे इतना जरूर है कि चंपई सोरेन की बगावत झामुमो को बड़ा झटका देने वाली साबित हो सकती है। चंपई सोरेन लंबे समय से झामुमो का प्रमुख चेहरा बने रहे हैं और इसी कारण हेमंत सोरेन ने जेल जाने पर उन्हें राज्य की सत्ता सौंप थी। जेल से बाहर आने के बाद हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन को हटाते हुए फिर मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल ली और यह बात चंपई सोरेन को काफी नागवार गुजरी है जिससे उन्होंने बागी तेवर अपना लिया है।

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