Gujarat News: 12वीं की किताब में बौद्धों को जातियों में बाँटने पर छिड़ा विवाद, गुजरात सरकार पर उठे सवाल
Gujarat News: गुजरात सरकार द्वारा छापी गई कक्षा 12वीं की किताब में बौद्ध धम्म को जातियों में बाँटने पर विवाद शुरू हो गया है।
Gujarat News: गुजरात सरकार द्वारा छापी गई कक्षा 12वीं की किताब में बौद्ध धम्म को जातियों में बाँटने पर विवाद शुरू हो गया है। इसे लेकर बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों ने किताबों को पुनः छपने की मांग करते हुए कड़ा विरोध जताया है। बौद्धों का कहना है कि यह किताब हमारे धर्म के बारे में गलत जानकारियां फैला रही है। जो बातें कभी हमारे धर्म में नहीं रहीं उन्हें बच्चों को पढ़ाने की तैयारी है। यह सरासर गलत है। बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों ने गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और राजयपाल देवव्रत अयारी को विरोधात्मक याचिकाएं भेजी हैं। साथ ही मांग उठाई है कि इन किताबों को हटाकर दूसरी किताबें छपवाई जाएं।
ये है बौद्धों की नाराजगी की वजह
पाठ्य पुस्तक मंडल जो गुजरात सरकार के अंतर्गत ही काम करता है उसकी तरफ से राज्य भर में कक्षा 12वीं में पढ़ाई जाने वाली किताबों का प्रकाशन किया गया है। समाजशास्त्र विषय की पुस्तक के 16वें पेज पर बौद्ध धर्म के बारे में भी एक पाठ छापा गया है। इस पाठ में बताया गया है कि "बौद्ध धर्म की दो श्रेणियां हैं जिसमें उच्च श्रेणी में ब्राह्मण, क्षत्रिय और कुछ गृहस्थ श्रेणी के लोग हैं जबकि निचली श्रेणी में बौद्ध धर्म अपनाने वाले आदिवासी और अन्य उपेक्षित लोग हैं" वहीं, बौद्धों का कहना है कि यह बात सरासर गलत है। बौद्धों में जातियां नहीं होती हैं, बौद्ध धर्म जातिवाद से पूरी तरह मुक्त है। इसमें किसी भी प्रकार की वर्ण व्यवस्था नहीं है। भगवान बुद्ध स्वयं क्षत्रिय थे लेकिन बौद्ध धम्म आने के बाद उन्होंने खुद को जातियों से मुक्त कर लिया और उनके साथ हर वर्ग के लोग जुड़े।
बौद्ध पूजा स्थल 'मंदिर' नहीं हैं
बौद्ध धम्म के लोगों का कहना है कि किताब में एक और भ्रामक जानकारी दी गई है। इसमें बौद्ध धर्म के पूजा स्थलों को मंदिर बताया गया है जबकि बौद्ध पूजा स्थलों को मंदिर नहीं विहार कहा जाता है। साथ ही किताब में बौद्ध पुजारियों को लामा बताया गया है। यह बात भी विरोध की वजह है। लोगों का कहना है कि सिर्फ तिब्बत के सीमित क्षेत्र में बौद्ध पुजारियों को लामा कहा जाता है, अन्य जगहों पर उन्हें भिक्खु कहते हैं। इसके अलावा किताब में बौद्ध धर्म को पुनर्जन्म में विश्वास करने वाला बताया गया है जबकि ऐसा नहीं है। हम लोग जातिवाद और पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते हैं। यह बात बौद्धों के ग्रन्थ त्रिपिटक में बुद्ध वाणी में भी स्पष्ट है।