Kolkata Rape Case: पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टर फिर हड़ताल पर, सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप
Kolkata Rape Case: पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टर एक बार फिर हड़ताल पर चले गए हैं। उनका आरोप है कि राज्य सरकार ने उनकी और सरकारी अस्पतालों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं।
Kolkata Rape Case: पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टर एकबार फिर हड़ताल पर चले गए हैं। उनका आरोप है कि राज्य सरकार ने उनकी सुरक्षा और सरकारी अस्पतालों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। राज्य के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा से ठीक पहले बेमियादी आंदोलन की अपील से स्वास्थ्य सेवाओं के पूरी तरह चरमराने का अंदेशा पैदा हो गया है।
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के रेप और हत्या की घटना के विरोध में जूनियर डॉक्टरों के लंबे आंदोलन के कारण राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हो गई थीं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ बैठक में डॉक्टरों की कुछ मांगों पर सहमति होने के बाद आंदोलन खत्म कर स्वास्थ्यकर्मी काम पर लौटे थे।
दो अक्टूबर को कोलकाता में आन्दोलनकारी डाक्टरों ने एक बड़ी रैली निकाली। कॉलेज स्क्वायर से एस्प्लेनेड तक हजारों लोग, जूनियर और सीनियर डॉक्टर और नागरिक रैली में शामिल हुए। मेडिकल कॉलेज कोलकाता के सीनियर रेजिडेंट और विरोध प्रदर्शन का चेहरा रहे देबाशीष हलदर ने रानी रश्मोनी एवेन्यू पर एक मंच से प्रदर्शन को संबोधित करते हुए कहा - अगर जरूरत पड़ी तो हम दिल्ली जाकर अपनी आवाज उठाएंगे। हमने राज्य सरकार को अल्टीमेटम दिया है। लेकिन सीबीआई पर भी दबाव बनाए रखना होगा। अगर हमें काम बंद करना पड़ा तो यह केवल आम लोगों की वजह से ही संभव होगा।
हड़ताल की क्या वजह बताई है?
आरजी कर की घटना के विरोध में वेस्ट बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट के बैनर तले आंदोलनरत जूनियर डॉक्टर 21 सितंबर को काम पर लौटे थे। अब 10 दिन बाद ही उन्होंने 2 अक्टूबर से दोबारा काम बंद करने का एलान किया है। 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के बाद करीब आठ घंटे चली बैठक के बाद जूनियर डॉक्टरों ने काम बंद के फैसले का एलान किया।
संगठन ने चेतावनी दी है कि जब तक उनकी 10 सूत्री मांगों को पूरा करने की दिशा में ठोस पहल नहीं होती, आंदोलन जारी रहेगा। इन मांगों में अस्पताल परिसरों में सुरक्षा मुहैया कराना, डॉक्टरों के साथ होने वाली मारपीट की घटनाओं पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस कदम उठाना और तमाम अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरे लगाना शामिल हैं। संगठन का आरोप है कि सरकार के आश्वासन के बावजूद विभिन्न अस्पतालों में मारपीट की घटनाएं लगातार हो रही हैं। ऐसी परिस्थिति में काम करना संभव नहीं है।
वहीं 2 अक्तूबर को जादवपुर विश्वविद्यालय में एक सम्मेलन में, कई प्रमुख नागरिकों ने विरोध करने वाले जूनियर डॉक्टरों से काम पर लौटने का आग्रह किया। कार्डियोथोरेसिक सर्जन और सार्वजनिक वक्ता कुणाल सरकार ने कहा - जूनियर हों या सीनियर, हम डॉक्टरों में जिम्मेदारी की भावना होती है। इसी वजह से वे मुख्यमंत्री के घर के सामने हाथ जोड़कर खड़े हुए, बारिश का सामना करते हुए इसलिए, आज मैं उनसे कहूंगा, कृपया सोचें, आपका आंदोलन लोगों के खिलाफ नहीं है। यह धमकी संस्कृति डॉक्टरों द्वारा डॉक्टरों पर डॉक्टरों के कारण उत्पन्न समस्या है।
हाल ही में विरोध के तौर पर तृणमूल छोड़ने वाले जवाहर सरकार ने कहा: अगर जूनियर डॉक्टर पूरी तरह से काम बंद करने का फैसला करते हैं, तो उन्हें इस पर विचार करना चाहिए। पूरी तरह से काम बंद करने से लोगों पर बुरा असर पड़ेगा। विरोध के कई रूप हो सकते हैं। मैं एक बार भी यह नहीं कह रहा हूं कि विरोध खत्म हो जाना चाहिए, लेकिन आम लोगों पर इसके प्रभाव पर विचार किया जाना चाहिए।
डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (नेशनल) ने भी कहा है कि जूनियर डॉक्टरों को काम पर वापस लौट जाना चाहिए। वहीं, जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट के प्रवक्ता अनिकेत महतो कहते हैं कि फिलहाल यह तय नहीं किया गया है कि दुर्गा पूजा के दौरान हमारी भूमिका क्या रहेगी।
बीते दिनों जब जूनियर डॉक्टर आंदोलन कर रहे थे, उस दौरान सीनियर डॉक्टरों ने कुछ हद तक परिस्थिति को संभालने का प्रयास किया था। इसके बावजूद सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ के कारण आम लोगों को कई जरूरी सेवाओं से वंचित रहना पड़ा था। अब दुर्गा पूजा के दौरान ज्यादातर सीनियर डॉक्टर छुट्टी पर रहते हैं। ऐसे में जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन से मरीजों को भारी परेशानी उठानी पड़ सकती है।
तृणमूल कांग्रेस ने किया हड़ताल का विरोध
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने डॉक्टरों के ताजा फैसले का विरोध किया है। राज्य सरकार की दलील है कि जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन के कारण बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं अब धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही हैं। अब अचानक नए सिरे से आंदोलन के कारण राज्य का स्वास्थ्य ढांचा पूरी तरह चरमरा जाएगा। टीएमसी के प्रवक्ता कुणाल घोष कहा, यह फैसला बेहद दुर्भाग्यजनक है। डॉक्टरों के इस आंदोलन का खामियाजा आम लोगों को भरना पड़ेगा। उन्होंने जूनियर डॉक्टरों से पुनर्विचार करने की अपील की है।
वहीं, जूनियर डॉक्टरों के प्रवक्ता अनिकेत महतो कहते हैं, सरकार आज कह दे कि वह हमारी मांगों को पूरा करने की दिशा में ठोस कदम उठा रही है, तो हम तुरंत अपना फैसला वापस ले लेंगे। हम भी काम पर लौटना चाहते हैं। एक जूनियर डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, कई लोग नए सिरे से आंदोलन के खिलाफ थे, लेकिन ज्यादातर सदस्यों का कहना था कि आंदोलन के जरिए सरकार पर दबाव नहीं बढ़ाया गया, तो इस लड़ाई में जीत संभव नहीं है।
स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट क्या कहती है?
पश्चिम बंगाल में पंजीकृत निजी और सरकारी अस्पतालों की संख्या करीब 3,000 है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से राज्य सचिवालय को पिछले महीने भेजी गई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि जूनियर डॉक्टरों के आंदोलन के कारण आउटडोर सेवाएं और महत्वपूर्ण ऑपरेशनों की संख्या घटकर आधी रह गई थी। स्वास्थ्य सचिव ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जो स्वास्थ्य मंत्री भी हैं, को यह रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि एक ओर जहां सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ तेजी से कम हुई है, वहीं निजी अस्पतालों में उनकी तादाद बढ़ रही है। इसकी वजह से स्वास्थ्य साथी के मद में खर्च तेजी से बढ़ा है। राज्य सरकार की स्वास्थ्य साथी परियोजना के तहत हर व्यक्ति को सरकारी या निजी अस्पतालों में पांच लाख तक के मुफ्त इलाज की सुविधा मिलती है। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, 10 अगस्त को जूनियर डॉक्टरों का आंदोलन शुरू होने के बाद से इस मद में रोजाना औसतन छह करोड़ से भी ज्यादा का भुगतान किया गया है, जबकि इससे पहले तक इस मद में रोजाना औसतन तीन करोड़ रुपए खर्च होते थे।