La Nina: हीटवेव का खतरा 30 गुना बढ़ा, पहले अल नीनो और अब भारत में ला नीना की स्थिति बन रही
La Nina Effect On India: भारत में ला नीना की स्थिति बन रही है जिससे पहले सूखा और अब बाढ़ की संभावना है। इसके पीछे जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाली चरम मौसमी घटनाएं ज़िम्मेदार हैं।
La Nina Effect On India: 2022 के शुरू से ही भारत का मौसम (India Weather) एक रोलर कोस्टर की सवारी जैसा हो रहा है। अप्रत्याशितता मौसम की भविष्यवाणी के लिए एक बढ़ती हुई चुनौती बन रही है और दुनिया के प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञानियों का मानना है कि इसे चरम सीमाओं का मौसम कहना ग़लत नहीं होगा। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के चलते पहले अल नीनो (El Nino) और अब भारत में ला नीना (La Nina) की स्थिति बन रही है जिससे पहले सूखा और अब बाढ़ की संभावना है। यानी पहले कुआँ तो अब खाई। और इसके पीछे जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाली चरम मौसमी घटनाएं ज़िम्मेदार हैं।
जब तक ग्रीन हाउस गैसों (Greenhouse Gas) के उत्सर्जन पर पूरी तरह रोक नहीं लगती तब तक वैश्विक तापमान (Global Temperature) इसी तरह बढ़ता रहेगा और इससे संबंधित चरम मौसमी घटनाएं और भी जल्दी जल्दी होती रहेंगी। वैज्ञानिकों ने पाया है कि अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है तो ऐसी हीटवेव (Heat Wave) की संभावना हर 5 साल में एक बार होगी। यहां तक कि प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कटौती की धीमी प्रक्रिया की वजह से भी ऐसी चरम मौसम यानी बहुत गर्मी या बहुत सर्दी, सूखा/ बाढ़ की संभावनाएं बरकरार रह सकती हैं।
हीटवेव का खतरा 30 गुना बढ़ा
पहले ही जलवायु परिवर्तन ने 30 गुना भारत और पाकिस्तान में समय से पहले हीटवेव का खतरा बढ़ा दिया है। यानी कि अगर जलवायु परिवर्तन नहीं होता तो यह भीषण हीटवेव का दौर अत्यंत दुर्लभ होता। इस दौरान हीटवेव की जल्द आमद और बारिश में कमी की वजह से भारत में गेहूं के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा। सूखा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (डीईडब्ल्यूएस) द्वारा जारी रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत का पांचवां हिस्सा (21.06 फीसदी भूभाग) सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहा है। यह क्षेत्र पिछले साल की तुलना में करीब 62 फीसदी ज्यादा है।
भारत में सामान्य से 7% कम मानसूनपूर्व बारिश हुई। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने बताया है कि इस बात की 93% संभावना है कि 2022 से 2026 के बीच कोई 1 वर्ष इतिहास का सबसे गर्म वर्ष होगा इस साल वैश्विक तापमान में 1.1 से 1.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी। अगले 5 वर्षों के भीतर वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक हो सकता है।
प्री मॉनसून बारिश रही बेहद असामान्य
इस बीच देश में मॉनसून 2022 ने दस्तक तो दे दी लेकिन मॉनसून पूर्व (प्री मॉनसून) बारिश बेहद असामान्य रही है। मौसम विभाग ने बताया कि मानसून सामान्य रूप से आगे बढ़ रहा है और गोवा और महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ और हिस्सों में मानसून के आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं। वहीं विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) का नया अलर्ट आया है जिसमें आने वाले साल 2023 में मौसम की स्थिति बदतर होने और बाढ़ और सूखे की स्थितियों को लेकर आगाह किया गया है।
नए डब्ल्यूएमओ अल नीनो/ला नीना अपडेट के अनुसार, इनके कम से कम अगस्त तक जारी रहने की संभावना है। यह स्थिति 2023 तक बनी रह सकती है। अल नीनो और ला नीना शब्द का संदर्भ प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में समय-समय पर होने वाले बदलावों से है, जिसका दुनिया भर में मौसम पर प्रभाव पड़ता है। अल नीनो की वजह से तापमान गर्म होता है और ला नीना के कारण ठंडा। दोनों असाधारण मामलों में कई वर्षों तक रह सकते हैं।अल नीनो के दौरान भारत में मानसून अक्सर कमजोर होता है। भारत भर में अल-नीनो के कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है, जबकि ला-नीना के कारण अत्यधिक बारिश होती है और बाढ़ के चलते फसल नष्ट होती हैं ।
पिछले 24 घंटों के दौरान, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल, असम, केरल के कुछ हिस्सों, कोंकण और गोवा और तटीय कर्नाटक में मध्यम बारिश के साथ कुछ स्थानों पर भारी बारिश हुई।शेष पूर्वोत्तर भारत, गंगीय पश्चिम बंगाल, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, जम्मू कश्मीर और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश हुई। छत्तीसगढ़, दक्षिण गुजरात और झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में हल्की बारिश हुई। । पर हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से अभी मानसून की दूरी बनी है गौरतलब है कि वर्ष 2018 ने -9.4% वर्षा की कमी कमी के साथ हमने सूखे को लगभग टाल दिया। बाद के वर्ष 2019 में 9.96% अधिक वर्षा के साथ समाप्त हुआ।इस साल में मार्च से ही अल नीनो का प्रभाव बना और अब ला नीना की स्थिति है ।
डब्ल्यूएमओ ने कहा कि इन दिनों चल रहे ला नीना ने तापमान और वर्षा के पैटर्न को प्रभावित किया है। यह ला नीना की स्थिति वर्षाकाल में बने रहने की संभावना है जिसकी वजह से बारिश अधिक होगी और बाढ़ आयेगी । वही मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के वातावरण में विपरीत परिस्थितियां बन रही हैं, जिससे मानसून के पहले दो महीनों में सामान्य बारिश होगी और खरीफ फसलों की बुवाई के लिए यह अनुकूल रहेगा। लेकिन, अगस्त के बाद के हिस्से के लिए मानसून की परिस्थितियां इतनी अच्छी नहीं लग रही हैं। हालाँकि, प्रशांत महासागर का ठंडा होना ला नीना की स्थिति को सीज़न के दूसरे भाग में अच्छी तरह से जारी रखने का वादा कर रहा है।
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