Lithium Reserves in India: लिथियम का भंडार भारत के लिए साबित होगा गेमचेंजर, लेकिन इस अड़चन को करना होगा दूर

Lithium Reserves in India: लिथियम का ये बड़ा भंडार वैश्विक बाजार में चीन की दादागिरी को काउंटर करने में मददगार साबित हो सकता है।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2023-02-11 13:52 IST

lithium in india news (photo: social media )

Lithium Reserves in India: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के रियासी जिले में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को लिथियम का विशाल भंडार मिला है। जब से ये खबर सामने आई है, तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में इसे लेकर काफी कुछ लिखा जा रहा है। जानकार इस खोज को भारत के लिए गेमचेंजर मान रहे हैं। लिथियम का ये बड़ा भंडार वैश्विक बाजार में चीन की दादागिरी को काउंटर करने में मददगार साबित हो सकता है। लेकिन इसका दोहन करना कोयला या तेल जैसे अन्य प्राकृतिक संसधानों की तरह आसान नहीं है।

लिथियम का उत्पादन और रिफाइनिंग का काम काफी जटिल है। चीन इस मामले में आज दुनियाभर में इसलिए सबसे आगे है क्योंकि उसने दो दशक पहले ही इसके महत्व को भांप लिया था और इसमें निवेश करना शुरू कर दिया था। इस मामले में चीनी नेतृत्व ने अमेरिका और पश्चिम के अन्य धनी एवं ताकतवर मुल्कों के मुकाबले अधिक दूरदर्शिता दिखाई। भारत को भी इसका पूरा लाभ उठाने के लिए एक लंबा सफर तय करना होगा।

क्या होता है लिथियम ?

लिथियम ग्रीक शब्द लिथोस से आया है। इसका मतलब पत्थर होता है। यह अलौध धातु है। इसका इस्तेमाल हर उस इलेक्ट्रिक सामान की बैट्री बनाने में होता है, जिसे चार्ज किया जाता है। आसान भाषा में समझें तो इसका यूज चार्जेबल बैटरी बनाने में होता है, जो हमारे-आपके फोन, लैपटॉप और इलेक्ट्रिक गाड़ियों में होता है। लिथियम का इस्तेमाल मेडिकल क्षेत्र में भी होता है। मूड स्विंग और बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी बीमारियों के इलाज में इसका यूज होता है।

कमोडिटी मार्केट में मेटल की कीमत रोज घटती – बढ़ती है। इस समय एक टन लिथियम की कीमत 57.36 लाख रूपये है। भारत में 59 लाख टन लिथियम का भंडार मिला है। आज के हिसाब से देखें तो इसका बाजार मुल्य 3384 अरब रूपये है। भारत से बड़ा रिजर्व केवल चिली (93 लाख टन) और ऑस्ट्रेलिया (63 लाख टन) के पास है।

कहां मिला इसका भंडार ?

जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को जम्मू कश्मीर के रियासी जिले में सलाल-हैमाना इलाके में 59 लाख टन लिथियम संसाधन मिला है। इसी जिले में प्रसिद्ध वैष्णो देवी मंदिर भी स्थित है। खनन विभाग के सचिव अमित वर्मा मानते हैं कि देश के साथ – साथ आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित जम्मू कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए भी यह खोज काफी अहम है। भारत दुनिया के उन चंद देशों की सूची में शामिल हो गया है, जहां लिथियम के भंडार मौजूद हैं।

लिथियम का बड़ा आयातक है भारत

दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला भारत लिथियम का दुनिया में चौथा सबसे बड़ा आयातक है। साल दर साल भारत में लिथियम की खपत बढ़ रही है। पेट्रोल-डीजल जैसे ईंधनों की आसमान छूती कीमतें और सरकार द्वारा प्रोत्साहन मिलने के बाद से देश का इलेक्ट्रिक वाहन सेगमेंट खूब फल-फूल रहा है। भारत अपनी जरूरतों का करीब 80 प्रतिशत लीथियम आयरन बैटरी पड़ोसी चीन से मंगाता है। चीन पर निर्भरता कम करने और इसमें आत्मनिर्भर बनने के लिए भारत चिली, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और बोलिविया जैसे लिथियम भंडार वाले देशों की खदानों में हिस्सेदारी खरीदने पर काम कर रहा है।

ईवी मार्केट में आएगा बूम !

भारत सरकार देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को आक्रमक तरीके से प्रमोट कर रही है। सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक देश में चलने वाली 30 प्रतिशत निजी वाहन, 70 प्रतिशत कर्मिशियल गाड़ियां और 80 प्रतिशत टू-व्हीलर इलेक्ट्रिक हो जाएं। इस टारगेट को पूरा करने के लिए सबसे जरूरी है कि ईवी गाड़ियों की कीमत जीवाश्म ईंधन से चलने वाली गाड़ियों के बराबर हो और ये तब होगा जब इलेक्ट्रिक वाहनों में लगने वाली बैटरियां सस्ती होंगी।

दरअसल, देश में लिथियम आयन की अनुपलब्धता के कारण विदेशों से महंगी बैटरियां आयात की जाती है, जिसके कारण ईवी की कॉस्ट काफी बढ़ जाती है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कीमत में करीब 45 फीसदी हिस्सेदारी केवल बैटरी पैक की होती है। उदाहरण के तौर पर टाटा की नेक्सन ईवी की कीमत 15 लाख रूपये है, जिसमें से इसमें लगी बैटरी पैक की कीमत ही अकेले 7 लाख रूपये है।

ऐसे में अगर घरेलू स्तर पर लिथियम आयन बैटरी का प्रोडक्शन होता है तो निश्चित तौर पर इसकी कीमतें गिरेंगी, जिससे गाड़ियों के मुल्य में भी गिरावट आएगी और लोग इसे खरीदने आगे आएंगे। टू-व्हीलर कंपनी ओकाया ईवी के मालिक अंशुल गुप्ता का भी यही मानना है। उनका कहना है कि इससे ईवी सेक्टर को काफी फायदा होगा। एक तरफ जहां आयात पर हमारी निर्भरता कम होगी। वहीं, दाम कम होने से अधिक से अधिक लोग इसका इस्तेमाल कर सकेंगे, जिससे पर्यावरण को हो रहे नुकसान को भी कम किया जा सकेगा।

आयात बिल कम होगा और उद्योग लगेंगे

भारत लिथियम ऑयन बैटरी के आयात पर हर साल भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा खर्च करता है। भारत सरकार ने साल 2030 तक जो लक्ष्य तय किया है, उसके हिसाब से सलाना 1 करोड़ लिथियन ऑयन बैटरी की जरूरत होगी। भारत में बैटरी के उत्पादन शुरू होने से विदेशी मुद्रा बाहर जाने से बचेगा और साथ ही लिथियम ऑयन बैटरी पर निर्भर अन्य इंडस्ट्री भी यहां निवेश करेंगे। कोविड के बाद से ऐप्पल समेत अन्य दिग्गज स्मार्टफोन और लैपटॉप बनाने वाली कंपनियां चीन से निकलकर दूसरे देशों में जाना चाह रही है। ऐसे में अगर भारत लिथियम ऑयन बैटरी के प्रोडक्शन में महारत हासिल कर लेता है तो टेस्ला और ऐप्पल जैसी कंपनियां यहां यूनिट लगाने से पीछे नहीं हटेंगी।

भारत के सामने क्या है चुनौती ?

लिथियम का केवल खजाना मिल जाने से ही भारत इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन सकता। लिथियम के उत्पादन एवं रिफाइनिंग में अत्याधुनिक तकनीक की जरूरत होती है। दुनिया का सबसे बड़ा लिथियम भंडार होने के बावजूद चिली और ऑस्ट्रेलिया बेहम कम उत्पादन कर पाते हैं। ऐसे में भारत के लिए भी इस भंडार से उत्पादन करना आसान नहीं है। भारत को एक तकनीक विकसित करनी होगी, जिससे वो देश में लिथियम ऑयन बैटरी का उत्पादन कर सके।

चीन इस मामले में आज सबसे आगे इसलिए है क्योंकि उसने ऐसे समय में इस पर काम करना शुरू कर दिया था, जब दुनिया इलेक्ट्रिक वाहनों के बारे में ठीक से सोच भी नहीं रही थी। चीन ने 20 साल पहले से ईवी की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया था। लिथियम का खजाना मिलने से पहले आई एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि अगर भारत 2030 तक 1 करोड़ लिथियन ऑयन बैटरी की उत्पादन क्षमता हासिल करना चाहता है तो उसे कम से कम 10 अरब डॉलर निवेश की जरूरत होगी।

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