Mamata Banerjee Birthday:पहले चुनाव में ही सोमनाथ चटर्जी जैसे कद्दावर को हराया,जुझारू तेवर से हासिल की सियासी कामयाबी

Mamata Banerjee Birthday: ममता बनर्जी को विपक्ष का बड़ा चेहरा माना जाता रहा है और पिछले दिनों उन्होंने इंडिया गठबंधन के नेतृत्व की दावेदारी भी की थी। पश्चिम बंगाल में उनकी जमीनी पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है;

Report :  Anshuman Tiwari
Update:2025-01-05 12:16 IST

Mamata Banerjee Birthday ( Pic- Social- Media)

Mamata Banerjee Birthday: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी का आज 70वां जन्मदिन है। ममता बनर्जी को विपक्ष का बड़ा चेहरा माना जाता रहा है और पिछले दिनों उन्होंने इंडिया गठबंधन के नेतृत्व की दावेदारी भी की थी। पश्चिम बंगाल में उनकी जमीनी पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा उन्हें सत्ता से बेदखल करने में कामयाब नहीं हो सकी। ममता बनर्जी की छवि एक जुझारू नेता की रही है।

कोलकाता में 5 जनवरी 1955 को पैदा होने वाली ममता बनर्जी ने अपने पहले लोकसभा चुनाव के दौरान ही माकपा के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को हराया था। ममता बनर्जी उस समय कांग्रेस में थीं और उस समय चटर्जी के खिलाफ जादवपुर से लड़ने के लिए कोई कांग्रेस नेता तैयार नहीं था। ममता बनर्जी 1984 में 29 साल की उम्र में चटर्जी को हराकर सबसे कम उम्र की सांसद बनने में कामयाब हुई थीं। बाद के दिनों में उन्होंने तृणमूल कांग्रेस का गठन करके पश्चिम बंगाल में वाम दलों का किला ध्वस्त करने में कामयाबी हासिल की।

पहले चुनाव में ही सोमनाथ चटर्जी को हराया

ममता बनर्जी के सियासी सफर की शुरुआत 1970 के दशक में हुई जब उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। 1984 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने सियासी जीवन में बड़ी कामयाबी हासिल की। ममता बनर्जी ने ‘माय अनफॉरगेटेबल मेमोरीज’ में इस चुनाव के बारे में विस्तार से लिखा है। ममता बनर्जी के मुताबिक इस चुनाव में कांग्रेस की लीडरशिप की ओर से कई बड़े नेताओं को जादवपुर से लड़ने के लिए कहा गया मगर कोई भी नेता तैयार नहीं हुआ। बाद में मेरे सामने यह ऑफर आया। मैं जीवन का पहला चुनाव सोमनाथ चटर्जी के खिलाफ जादवपुर से लड़ने को लेकर असमंजस में पड़ गई थी मगर बाद में मैंने यह चुनाव लड़ा।

इस चुनाव में ममता बनर्जी ने माकपा के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को 19,660 मतों से हरा दिया था। ममता के मुताबिक बंगाल तो क्या पूरे देश में कोई यह बात मानने को तैयार नहीं था कि सोम दा चुनाव हार गए हैं। किसी को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि 29 साल की एक लड़की ने लेफ्ट के बरगद को गिरा दिया है।

सहानुभूति लहर का भी मिला था फायदा

वैसे यह बात भी उल्लेखनीय है कि 1984 का लोकसभा चुनाव तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की पृष्ठभूमि में हुआ था। कांग्रेस और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के लिए पूरे देश में जबर्दस्त सहानुभूति लहर थी। दिसंबर 1984 के लोकसभा चुनाव में जादवपुर में ममता बनर्जी को 3,31,618 या 50.87 प्रतिशत वोट मिले, जबकि सोमनाथ चटर्जी को 3,11,958 या 47.85 वोट मिले। माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी को अपने चार दशक से अधिक के सियासी जीवन में सिर्फ एक हार का सामना करना पड़ा और इस हार का स्वाद उन्हें ममता बनर्जी ने ही चखाया था।

इस बड़ी जीत के बाद ममता बनर्जी वाम पार्टियों के खिलाफ सड़क पर मजबूत लड़ाई लड़ती रहीं। इस लड़ाई के दौरान उन पर कई बार हमले भी किए गए। इन हमलों में घायल होने के बावजूद उन्होंने वाम शासन के विरोध का रास्ता नहीं छोड़ा। जनता से जुड़े मुद्दों की लड़ाई लड़ते हुए उन्हें पुलिस लाठीचार्ज का भी सामना करना पड़ा। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान उन्हें युवा कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था। 1991 का चुनाव जीतने के बाद उन्हें नरसिम्हा राव मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था।

ममता ने कई बार बदले सहयोगी

अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत के साथ ही ममता बनर्जी का एकमात्र मकसद पश्चिम बंगाल से वाम शासन का अंत करना था। इसके लिए उन्होंने कई बार सहयोगी भी बदले। केंद्र में उन्होंने कभी एनडीए का दामन थामा तो कभी कांग्रेस का। 1998 से 2001 तक वे एनडीए के साथ रहीं।

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें रेल मंत्री बनाया गया था मगर तहलका कांड के कारण हुए 17 महीने बाद इस्तीफा देकर वे सरकार से अलग हो गईं। 2006 में उन्होंने कांग्रेस के साथ फिर हाथ मिलाया और लगभग 6 साल तक को उसके साथ बनी रहीं।

जनता से जुड़े मुद्दों की लड़ाई

1 जनवरी 1998 को उन्होंने पश्चिम बंगाल में वाम शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए तृणमूल कांग्रेस का गठन किया था। ममता बनर्जी ने मां, माटी और मानुष के नारे को अपनी पार्टी का आधार बनाते हुए वाम दलों के खिलाफ मजबूत लड़ाई की शुरुआत की।

इस दौरान वे लगातार जनता से जुड़े मुद्दों पर लड़ाई लड़ती रहीं। 2006 में उन्होंने सिंगूर में किसानों की जमीनों के अधिग्रहण के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी। इस कारण टाटा ने अपने प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था। 2007 में उन्होंने औद्योगीकिकरण की नीतियों का विरोध करते हुए नंदीग्राम की लड़ाई लड़ी थी।

34 साल के वाम शासन का किया अंत

हालांकि ममता बनर्जी की सियासी राह आसान नहीं मानी जा रही थी मगर अपने जुझारू तेवर से उन्होंने पश्चिम बंगाल की वाम सरकार को उखाड़ फेंका। पश्चिम बंगाल में 2011 के विधानसभा चुनाव के दौरान ममता बनर्जी ने राज्य में 34 साल से चल रही वाम मोर्चा सरकार को सत्ता से बेदखल करने में कामयाबी हासिल की। इसके बाद 2016 और 2021 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल करते हुए पश्चिम बंगाल में अपनी ताकत दिखाई।

अब इंडिया गठबंधन के नेतृत्व की दावेदारी

2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने उन्हें सत्ता से बेदखल करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाई थी मगर इसके बावजूद भाजपा को कामयाबी नहीं मिल सकी। हमेशा रबड़ की स्लिपर और कॉटन साड़ी पहनने वाली ममता बनर्जी का सादगी भरा अंदाज हमेशा चर्चा का विषय रहा है।

मौजूदा समय में उन्हें विपक्ष का बड़ा चेहरा माना जाता है और उन्होंने इंडिया गठबंधन के नेतृत्व की दावेदारी भी कर डाली है। उनका साफ तौर पर करना है कि राहुल गांधी और कांग्रेस इंडिया गठबंधन को मजबूत नेतृत्व देने में विफल साबित हुए हैंउल्लेखनीय बात यह है कि उन्हें विपक्ष के बड़े नेताओं लालू प्रसाद यादव, शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं का समर्थन हासिल है। सियासी जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में ममता कोई और बड़ा सियासी गुल खिलाने में कामयाब हो सकती हैं।

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