Mohan Bhagwat: संघ प्रमुख के पंडित संबंधी बयान ने बढ़ाई भाजपा की मुश्किलें, अब RSS और पार्टी की ओर से डैमेज कंट्रोल की कोशिशें

Mohan Bhagwat: संघ प्रमुख के इस बयान पर ब्राह्मण समुदाय की ओर से सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर तीखी प्रतिक्रिया जताए जाने के बाद संघ और भाजपा की ओर से डैमेज कंट्रोल की कोशिशें शुरू कर दी गई हैं।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2023-02-07 12:38 IST

RSS Mohan Bhagwat (photo: social media )

Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत की ओर से पंडितों के संबंध में दिए गए बयान ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान संघ प्रमुख ने कहा था कि जाति व्यवस्था भगवान ने नहीं बल्कि पंडितों ने बनाई है। संघ प्रमुख के इस बयान पर ब्राह्मण समुदाय की ओर से सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर तीखी प्रतिक्रिया जताए जाने के बाद संघ और भाजपा की ओर से डैमेज कंट्रोल की कोशिशें शुरू कर दी गई हैं। ब्राह्मण वर्ग की नाराजगी के बाद संघ बैकफुट पर आता हुआ दिखा और संघ की ओर से सफाई दी गई की भागवत के पंडित शब्द का इस्तेमाल करने का मतलब ब्राह्मण नहीं बल्कि विद्वान है।

हाल के वर्षों में देश में हुए चुनावों में भाजपा को ब्राह्मण वर्ग का भरपूर समर्थन मिलता रहा है और ऐसे में ब्राह्मणों की भाजपा और संघ से नाराजगी ने पार्टी की चिंताएं बढ़ा दी हैं। मौजूदा समय में भाजपा की एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि पार्टी के पास मजबूत ब्राह्मण चेहरों की कमी है। ऐसे में पार्टी की ओर से विपक्ष को इस मुद्दे का हथियार बनाने से रोकने के लिए रणनीति बनाई जा रही है। संघ की ओर से सफाई के बाद भाजपा सांसद सुब्रत पाठक की ओर से भी सफाई पेश करके ब्राह्मणों को मरहम लगाने की कोशिश की गई है।

संघ प्रमुख के इस बयान पर फैली नाराजगी

संघ प्रमुख ने मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि जाति भगवान ने नहीं बल्कि पंडितों ने बनाई। उन्होंने इसे गलत बताते हुए कहा कि भगवान के लिए हम सब एक हैं। उन्होंने कहा कि समाज को बांट कर हमारे देश पर आक्रमण किए गए और बाहर के लोगों ने इसका खूब फायदा उठाया। अगर हमारे समाज में बंटवारा न हुआ होता तो किसी में हमारी ओर नजर उठाकर देखने की हिम्मत भी नहीं होती।

उन्होंने कहा कि क्या हिंदू समाज के नष्ट होने का भय है, इस सवाल का जवाब कोई पंडित या ब्राह्मण नहीं दे सकता। इसे आपको खुद महसूस करना होगा। संघ प्रमुख ने कहा कि जब हर काम समाज के लिए ही है तो फिर ऊंच-नीच का भेदभाव कैसे हो सकता है।

पहली बार बैकफुट पर दिखा संघ

मिशन 2024 की तैयारी में जुटी भाजपा के लिए संघ प्रमुख का यह बयान महंगा साबित होता दिख रहा है। संघ प्रमुख के इस बयान पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। दूसरी ओर विपक्ष ने भी संघ प्रमुख के बयान को हथियार बनाने की कोशिश शुरू कर दी हैं। सोशल मीडिया पर लोगों की तीखी प्रतिक्रियाएं देखने के बाद संघ पहली बार बैकफुट पर आता हुआ दिखा। इसी कड़ी में संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर की ओर से सफाई पेश की गई।

उन्होंने कहा कि पंडित शब्द से संघ प्रमुख का आशय ब्राह्मण या किसी जाति से न होकर विद्वानों से था। उन्होंने कहा कि मराठी में पंडित का अर्थ विद्वान होता है। ऐसे में उनके बयान का को सही अर्थों में लेने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि संघ प्रमुख के बयान का गलत मतलब निकाला जा रहा है। आंबेकर ने कहा कि भागवत का बयान था कि ईश्वर हर व्यक्ति में मौजूद है। इसलिए नाम और रूप के बावजूद किसी की क्षमता और सम्मान में कोई अंतर नहीं है।

क्यों महंगी पड़ सकती है ब्राह्मणों की नाराजगी

दरअसल भाजपा की मुश्किलें इसलिए बढ़ती हुई दिख रही हैं क्योंकि पार्टी को अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले इस साल नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ना है। इन चुनावी राज्यों में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे महत्वपूर्ण राज्य भी शामिल हैं। देश में ब्राह्मणों की आबादी मोटे तौर पर करीब चार फ़ीसदी मानी जाती है।

पिछले कई चुनावों से ब्राह्मण समुदाय का समर्थन भाजपा को ही मिलता रहा है। ऐसे में पार्टी ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया को लेकर चिंता में पड़ गई है। संघ की ओर से पेश की गई सफाई को पार्टी की डैमेज कंट्रोल की कोशिशों के रूप में ही देखा जा रहा है।

मजबूत ब्राह्मण नेताओं की कमी

भाजपा की एक और बड़ी दिक्कत पार्टी में मतदाताओं पर असर डालने वाले किसी बड़े ब्राह्मण चेहरे का न होना भी मानी जा रही है। मौजूदा समय में भाजपा के ब्राह्मण नेताओं के रूप में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और नितिन गडकरी का नाम लिया जाता है।

ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वास सरमा की चर्चा की जाती है मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के सामने इन नेताओं की चमक-दमक काफी फीकी लगती है। ब्राह्मण मतदाताओं पर इन नेताओं की पकड़ भी मजबूत नहीं मानी जाती है। ऐसे में ब्राह्मणों की नाराजगी पार्टी के लिए महंगी साबित होती दिख रही है।

यूपी में भी हो सकता है सियासी नुकसान

2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मजबूती के साथ दिल्ली की सत्ता में स्थापित करने में उत्तर प्रदेश की बड़ी भूमिका रही है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की करीब 12 फ़ीसदी आबादी है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की नाराजगी मिशन 2024 में भाजपा के लिए बड़ा झटका बन सकती है। पार्टी को ब्राह्मणों की नाराजगी से बचाने के लिए भाजपा के प्रदेश महामंत्री एवं कन्नौज के सांसद सुब्रत पाठक सामने आए हैं।

उन्होंने भी संघ की ओर से दी गई सफाई का ही उल्लेख किया है। उन्होंने कहा कि संघ प्रमुख मोहन भागवत की ओर से पंडित शब्द का इस्तेमाल ज्ञानी या विद्वान के लिए किया गया है। उन्होंने यह टिप्पणी ब्राह्मण समाज को लेकर नहीं की है। सुब्रत पाठक के इस बयान को भी प्रदेश में भाजपा को ब्राह्मणों की नाराजगी से बचाने की कोशिश के रूप में ही देखा जा रहा है।

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