Montek Singh Ahluwalia on OPS: पुरानी पेंशन योजना पर अहलूवालिया के बयान पर छिड़ी बहस, जानें क्यों कहा इसे वित्तीय दिवालियापन की 'रेसिपी'

Ahluwalia on OPS: योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक अहलूवालिया ने पुरानी पेंशन योजना को लागू करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों के कदम को 'बेतुका' कहा है।

Written By :  aman
Update:2023-01-07 23:35 IST

Montek Singh Ahluwalia (Social Media)

Montek Singh Ahluwalia on OPS: कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के वक्त योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन और अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया (Montek Singh Ahluwalia) ने पुरानी पेंशन स्कीम को 'बेतुका' और 'भविष्य में कंगाली लाने' वाला बताकर देश में एक अलग ही बहस छेड़ दी है। दरअसल, अहलूवालिया ने कहा, 'जो लोग इसे आगे बढ़ा रहे हैं, उसका नतीजा ये होगा कि 10 साल बाद 'वित्तीय कंगाली' आ जाएगी। उन्होंने कहा, ये कदम 'बेतुका' है। जिससे भविष्य में वित्तीय कंगाली का सामना करना पड़ सकता है।

गौरतलब है कि, अहलूवालिया का बयान ऐसे वक्त आया है जब कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश सहित अन्य कुछ राज्यों में हुए चुनावों में 'पुरानी पेंशन योजना' (Old Pension Scheme) को राजनीतिक दलों ने मुद्दा बनाया। कई राज्य सरकारों ने ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल भी कर दिया है।

गैर-बीजेपी राज्यों में मिल रही वाहवाही 

पुरानी पेंशन योजना (OPS) को गैर-बीजेपी शासित राज्यों ने खूब वाहवाही मिल रही है। हाल ही में संपन्न हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन योजना को बड़े मुद्दे के तौर पर पेश किया था। अब जब हिमाचल में सरकार बन चुकी है तो इसे लागू करने का दबाव भी सरकार पर है। मगर, राज्य सरकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती फंड की है। क्योंकि, इसे लागू करने से सरकार के खजाने पर भारी बोझ पड़ेगा।

'सबसे बड़ी रेवड़ी' पर अपनी-अपनी राय 

पुरानी पेंशन पर अब जब मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने बयान दिया तो सच्चाई भी सामने आ रही है। योजना आयोग के पूर्व डिप्टी चेयरमैन के हालिया बयान पर बहस छिड़ गई है। कुछ लोग जहां उनका समर्थन कर रहे हैं तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कई अन्य आलोचना से भी गुरेज नहीं कर रहे। बता दें, मोंटेक सिंह अहलूवालिया पहले भी ओल्ड पेंशन स्कीम की आलोचना कर चुके हैं। वो  इसे 'सबसे बड़ी रेवड़ी' बताते रहे हैं।

वित्तीय दिवालियापन की 'रेसिपी'

पुरानी पेंशन योजना के तहत रिटायर सरकारी कर्मचारी को पेंशन जरूर दी जाती है। जो सेवानिवृत्ति के समय मिलने वाले मूल वेतन का 50 फीसदी पेंशन के रूप में दिया जाता है। जबकि, नई स्कीम के तहत पेंशन की रकम सरकार की जिम्मेदारी ना होकर बाजार जोखिमों के अधीन होती है। केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन योजना वर्ष 2004 में बंद कर दी थी। मोदी सरकार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) की मौजूदगी में मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने एक कार्यक्रम के दौरान भी कहा था, 'कुछ राज्य सरकारों द्वारा पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करना वित्तीय दिवालियापन की 'रेसिपी' है। 

जानें क्या है नई और पुरानी पेंशन योजना में अंतर? 

भारत में 1 जनवरी 2004 से नई पेंशन स्कीम (New Pension Scheme) लागू है। दोनों ही पेंशन के कुछ फायदे, तो कुछ नुकसान भी हैं। पुरानी स्कीम स्कीम यानी OPS के तहत सेवानिवृति (Retirement) के वक्त कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है। क्योंकि, पुरानी स्कीम में पेंशन का निर्धारण सरकारी कर्मचारी की अंतिम बेसिक सैलरी तथा महंगाई दर के आंकड़ों के आधार पर होता है। नई पेंशन स्कीम में पेंशन के लिए सरकारी कर्मचारियों के वेतन से कोई पैसा कटने का प्रावधान नहीं है। पुरानी पेंशन योजना में भुगतान सरकार के खजाने के माध्यम से होता है।

नई पेंशन प्रणाली प्रभावी 

पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) में 20 लाख रुपए तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है। जबकि, रिटायर्ड कर्मचारी के निधन के बाद उसके परिजनों को पेंशन की राशि मिलती है। सबसे अहम बात ये है कि पुरानी पेंशन स्कीम में हर 6 महीने बाद मिलने वाले DA का प्रावधान है। अर्थात, जब सरकार नया वेतन आयोग लागू करती है, तब इससे पेंशन (Pension) में वृद्धि होती रहती है। केंद्र सरकार के साथ-साथ विशेषज्ञों का भी कहना है कि पेंशन सिस्टम (Pension System) से सरकार पर भारी बोझ पड़ता है। इतना ही नहीं पुरानी पेंशन स्कीम से सरकारी खजाने पर ज्यादा असर पड़ता है। अहलूवालिया ने इसी तरफ इशारा किया है। 

क्या कहा था अहलूवालिया ने?

दरअसल, योजना आयोग के पूर्व डिप्टी चेयरमैन और अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने बीते दिनों एक समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा था कि, 'एक अर्थशास्त्री के रूप में मैं यही कहूंगा कि राजनीतिक पार्टियां और सत्ताधारी दल को चाहिए कि वो 'सिस्टम' को ऐसे कदम उठाने से रोकें जो निश्चित रूप से वित्तीय तबाही का सबब होगा। उन्होंने ये भी कहा था कि सवाल उठता है आखिर ये कैसे किया जाए? अहलूवालिया ने इसके लिए जनता को समझाने की जरूरत पर भी बल दिया। उन्होंने कहा, भविष्य में इसकी कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी। मान लीजिए सरकार आपको ऐसी पेंशन स्कीम दे रही है जो पहले से बेहतर है तो लोग इसे पसंद करेंगे। मगर, कोई इसकी कीमत चुका रहा है। इसलिए हमें ऐसा जनमानस बनाने पर ध्यान देना होगा।'

राजनीतिक व्यवस्था पर भी बोले  

अहलूवालिया ने कहा, 'राजनीतिक व्यवस्था (political system) में जो लोग इसकी कीमत चुकाते हैं, उनकी भी बात सुनी जानी चाहिए। यदि राजनीतिक सिस्टम ये करने में अक्षम है तो मेरे पास इसका कोई समाधान नहीं है। उन्होंने आगे कहा, इसी तरह की चीजें अन्य देशों में भी होती हैं। हम ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां कई देश राजनीतिक तौर पर गैर ज़िम्मेदाराना फैसले ले रहे हैं। लेकिन इसमें सुधार की भी गुंजाइश होती है। समस्या ये है और मुझे शंका है कि इस तरह के कदम उठाने को लेकर केंद्र सरकार पर काफ़ी दबाव होगा। चाहे कोई भी सरकार हो। मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए सधी हुई बातें की।'  

'सुधारों का मुख्य दारोमदार राज्यों पर'

योजना आयोग के पूर्व चेयरमैन मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने ये भी कहा, 'सुधारों का मुख्य दारोमदार राज्यों पर होता है। कई ऐसे सुधार हैं जिनके लिए केंद्र को कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं होती है। उन्होंने कहा, उदाहरण के लिए राज्य कानून के अनुसार कई मामलों में अपराधीकरण को खत्म करने के लिए केंद्र की कोई भूमिका नहीं होती। केंद्र ऐसा करने से राज्य को नहीं रोकता। मगर, कई राज्य ऐसा नहीं कर रहे। ऐसी बहुत सी चीजों की लंबी सूची बना सकते हैं, जो पूरी तरह राज्य के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। उन्होंने कहा, 'इस लिहाज से देखें तो सिर्फ पेंशन स्कीम ही नहीं, बल्कि बिजली दरों (electricity rates) को तय करने का मामला भी पूरी तरह राज्य के अधिकार में है।'

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