अफगानी और रोहिंग्या मुस्लिमों की नई चाल, CAA से बचने के लिए निकाला ये तरीका

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से बचने और भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में एक नया खेल शुरू हो गया है।

Update:2020-07-25 11:00 IST

नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से बचने और भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में एक नया खेल शुरू हो गया है। इस कानून के बनने के बाद सबसे ज्यादा बेचैनी अफगानी और रोहिंग्या शरणार्थियों में दिख रही है और उन्होंने ही यह खेल शुरू किया है। अफगानी औरग रोहिंग्या शरणार्थियों ने ईसाई धर्म अपनाकर सीएए से बचने का रास्ता तलाश लिया है।

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दिल्ली में स्थित अफगानी चर्च इस काम में मददगार की भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि अफगानी चर्च के पदाधिकारी इस पर कुछ भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। केंद्रीय एजेंसियों की ओर से सरकार को इस बाबत सतर्क किया गया है।

वीजा आवेदन से मामले का खुलासा

सूत्रों का कहना है कि हाल ही में धर्म परिवर्तन करने वाले कुछ लोगों के वीजा आवेदन के बाद इस मामले का खुलासा हुआ है। ऐसे लोगों के आवेदन रद्द कर दिए गए हैं। दिल्ली के लाजपत नगर, अशोक नगर,ईस्ट आफ कैलाश और आश्रम आदि इलाकों में तमाम अफगानी शरणार्थी रहते हैं। इसी तरह दिल्ली के कालिंदी कुंज के केशव विहार इलाके में रोहिंग्या मुसलमानों के तमाम परिवार रहते हैं। इसके साथ ही देश भर के विभिन्न हिस्सों में भी अफगानी और रोहिंग्या शरणार्थी डेरा जमाए हुए हैं।

ईसाई धर्म अपनाने की बात मानी

लाजपत नगर में स्थापित अफगान चर्च के आबिद अहमद मैक्सवेल ने अफगानी मुस्लिमों के ईसाई धर्म अपनाने की बात मानी है। उनका कहना है कि अभी भी दिल्ली में रहने वाले बहुत से अफगानी मुस्लिम ईसाई धर्म अपनाने के इच्छुक हैं। उन्होंने बताया कि अफगानी मुस्लिम चर्च आने के बाद कई माह तक हमारी शिक्षाएं सुनते हैं। जब वे पूरी तरह संतुष्ट हो जाते हैं तो वे ईसाई धर्म अपना लेते हैं। उन्होंने कहा कि यह बता पाना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति किस इरादे से किस धर्म को अपना रहा है मगर हम चर्च में सबका स्वागत करते हैं।

सीएए से बचना चाहते हैं अफगानी

साउथ एक्सटेंशन स्थित अफगान चर्च के पास्टर नजीब ने भी ऐसी ही बातें बताईं। उनका भी कहना है कि अफगानिस्तान के बहुत से मुस्लिम शरणार्थियों ने ईसाई धर्म अपना लिया है। इसके पीछे उनका मकसद यही है कि उनको कहीं और न भेजा जा सके। उन्होंने कहा कि इनमें से बहुत से मुस्लिम बाद में फिर इस्लाम धर्म अपना लेते हैं। कई लोग तो इस बाबत सवाल भी करते हैं कि क्या ईसाई धर्म अपनाने के बाद वे किसी और धर्म को अपना सकते हैं या नहीं?

यूएनएचसीआर का लेते हैं सहारा

अफगानी मुस्लिम ईसाई धर्म अपनाने के लिए कम से कम एक साल तक अफगानी चर्चों में आकर ईसाई धर्म की शिक्षाएं सुनते हैं। ईसाई धर्म के बारे में जानने और ईसाई तौर तरीके सीखने के बाद वे ईसाई बनने का शपथ पत्र देते हैं जिसके बाद उन्हें चर्च की ओर से ईसाई बनने का पत्र दे दिया जाता है।

इस पत्र के आधार पर ही संयुक्त राष्ट्र हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी (यूएनएचसीआर) में धर्म परिवर्तन के लिए आवेदन दिया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद यूएनएचसीआर के दस्तावेजों में अफगानी शरणार्थी का धर्म ईसाई के तौर पर दर्ज कर दिया जाता है। वीजा आवेदन में इस तरह के मामले पकड़े गए हैं।

रोहिंग्या शरणार्थी भी पीछे नहीं

रोहिंग्या शरणार्थी भी ऐसे ही तरीके का सहारा ले रहे हैं। उन्होंने भी सीएए से बचने के लिए ईसाई धर्म अपनाने का यह तरीका खोज निकाला है। श्रम विहार के एक युवा रोहिंग्या शरणार्थी का कहना है कि उनके कैंप में रहने वाले एक शरणार्थी ने अपनी पत्नी और 4 बच्चों को छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया। इसके बाद उसने एक कनवर्टेड ईसाई युवती से भी विवाह भी कर लिया। उसने अपनी पत्नी व बच्चों का भी धर्म बदलवाने की कोशिश की, लेकिन महिला ने धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया।

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केंद्रीय एजेंसियों ने किया सतर्क

केंद्रीय एजेंसियों ने भी अफगानी और रोहिंग्या मुसलमानों के ईसाई धर्म अपनाने के बारे में सरकार को जानकारी दी है। एजेंसी ने अपनी जांच में कम से कम 25 अफगानी मुस्लिमों के ईसाई बनने का खुलासा किया है। अधिकारियों का कहना है कि देश में करीब 40000 रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं। जहां तक अफगानी मुसलमानों का सवाल है तो दिल्ली में ही इनकी संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा बताई जाती है। अफगानी पादरी सीएए का तो समर्थन करते हैं, लेकिन इस्लाम से ईसाई धर्म अपनाने वालों को सरकार की ओर से राहत दिए जाने की मांग भी करते हैं।

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