शिशिर कुमार सिन्हा
पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक तरफ पुलिस के आला अधिकारियों को कसने में लगे हैं तो वहीं कुछ ही महीने पहले डीजीपी का पदभार संभालने वाले आईपीएस के. एस. द्विवेदी भी लगातार मॉनीटरिंग का दावा कर रहे हैं। लेकिन, हासिल क्या है? आज की तारीख में बड़ा सवाल यही हो गया है। विपक्षी दल अपराध को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं आम जनता परेशान है। बड़ा सवाल है कि जब कथित तौर पर मुस्तैद सुरक्षा व्यवस्था से घिरे रहने वाले अपराधी और आरोपी न्यायालय परिसर में मार डाले जा रहे हैं तो सिस्टम किसी आम आदमी की सुरक्षा का दावा कैसे कर सकता है।
सीतामढ़ी में 11 पुलिसकर्मी थे साथ, फिर भी नहीं चलाई गोली
सीतामढ़ी में पुलिस के 11 जवानों की कथित सुरक्षा में पेशी के लिए आए कुख्यात संतोष झा को 19 साल के लड़के ने साथी की मदद से भून डाला। संतोष को गोली मारने वाला अपराधी बाइक से भाग निकला और भागते-भागते एलान भी किया कि उसने अपने पिता की हत्या का बदला लिया है। हत्याकांड में उसका साथ देने वाला विकास महतो अपनी पिस्तौल जमीन पर गिरा कर भीड़ का हिस्सा बनने की कोशिश कर रहा था, जिसे पुलिस ने पिस्तौल-खोखे के साथ गिरफ्तार कर लिया। इस गोलीबारी के दौरान 11 में से किसी पुलिसकर्मी ने जवाबी फायरिंग नहीं की, जिसके आधार पर संतोष झा की पत्नी रीता देवी कह रही है कि उसके पति की हत्या पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत से हुई है।
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रीता के अनुसार संतोष ने बार-बार ऐसी आशंका जताई थी। डेढ़ महीने पहले संतोष झा के शार्प शूटर अभिषेक झा की मोतिहारी केंद्रीय कारागार से सिकरहना एसडीजेएम की कोर्ट में पेशी के दौरान में मौत हो गई थी। इस घटना की जांच में सामने आया था कि कोर्ट परिसर से भगा ले जाने आए साथियों की गोली से ही अभिषेक की मौत हो गई थी। हत्या के बाद अपराधी पुलिसकर्मियों आंखों में मिर्च पाउडर झोंककर भाग निकले थे। अभिषेक की मौत के बाद से संतोष झा अपनी हत्या को लेकर आशंकित था।
पटना के बाढ़ कोर्ट से बेतिया तक में अंधाधुंध फायरिंग से हत्या
कुख्यात संतोष झा और अभिषेक की हत्या से पहले भी न्यायालय परिसर में अपराधियों की हनक लगातार दिखती रही है। पिछले साल पटना जिले के बाढ़ कोर्ट में 8 सितंबर को गैंगस्टर गुड्डू सिंह को अत्याधुनिक हथियारों से लैस दो अपराधियों ने भून डाला था। अंधाधुंध गोलीबारी में दो अन्य कैदी बरकुन महतो व गुड्डू सिंह भी घायल हुए थे। पटना का मामला होने के कारण पुलिस ने तेजी दिखाते हुए तीन आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया था। इससे कुछ महीने पहले बेतिया कोर्ट भी अपराधियों की अंधाधुंध फायरिंग से दहला था। बेतिया कोर्ट परिसर में 11 मई को पेशी के बाद कुख्यात अपराधी बबलू दुबे की हत्या कर दी गयी थी। हमलावर आराम से कोर्ट परिसर से भागने में कामयाब रहे थे।
पुराना इतिहास रहा है कोर्ट में बमबारी-गोलीबाजी का
इन घटनाओं के बाद एक बार फिर पुलिस-प्रशासन ने कोर्ट परिसरों में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर निर्देश जारी किए हैं। दरअसल, किसी भी घटना के बाद कोर्ट की सुरक्षा दुरुस्त करने की बात करना एक रूटीन सी कवायद हो गयी है। लेकिन पटना के कोर्ट परिसरों में बमबाजी-गोलीबारी की घटनाओं के बावजूद सख्त सुरक्षा जैसा कुछ नहीं है। किसी आरोप के सिलसिले में कोर्ट लाए गए या किसी आरोपी की हत्या के लिए रेकी करने वालों को यहां की सुरक्षा में सेंध का रास्ता आसानी से मिल जाता है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण 2007 में सामने आया था।
पटना सिविल कोर्ट परिसर में पेशी के लिए ले जाए जाने दौरान कुख्यात हरिवंश राय पर बमों से हमला किया गया। हरिवंश राय जगनपुरा के जघन्य हत्याकांड का आरोपी था और पुलिस ने उसे जमशेदपुर से गिरफ्तार किया था। एक समय में पटना के बाइपास से सटे इलाकों में हर नए निर्माण के लिए हरिवंश राय को रंगदारी देनी पड़ती थी। रंगदारी नहीं देने के कारण हरिवंश ने दीपावली की रात एक शिक्षक के घर में घुसकर पूरे परिवार की सामूहिक हत्या कर डाली थी। कहा जाता रहा है कि पुलिस हरिवंश का एनकाउंटर करना चाहती थी, लेकिन मौका नहीं मिल पाने के कारण यह संभव नहीं हो सका। कोर्ट परिसर में हरिवंश की हत्या के बाद इसी कारण पुलिस पर हत्या करवाने का भी आरोप लगा था।
2004 में नवादा सिविल कोर्ट में कुख्यात पंकज सिंह और सुभाष सिंह की बम मारकर हत्या कर दी गई थी। 13 जुलाई 2016 को सासाराम कोर्ट परिसर में बमबाजी में एक की मौत हुई थी। 22 जनवरी 2015 को आरा कोर्ट परिसर में महिला सुसाइड बम के धमाके में दो की मौत हो गई थी, जबकि 15 घायल हो गए थे। 18 अप्रैल 2016 को छपरा कोर्ट परिसर में बम विस्फोट हुए थे जिसमें एक कैदी समेत छह घायल हो गए थे।