Old Pension Scheme: जानिए क्या है पेंशन योजना जिसकी रेवड़ी पर मांगे जा रहे वोट
Old Pension Scheme: पुरानी पेंशन योजना या ‘ओपीएस’ का आकर्षण रिटायरमेंट के बाद एक सुनिश्चित या परिभाषित लाभ के अपने वादे में निहित है।
Old Pension Scheme: गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और आप पुरानी पेंशन योजना पर स्विच करने का वादा किया हुआ है। कांग्रेस पहले ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पुरानी पेंशन योजना पर लौट चुकी है जबकि आप ने कहा है कि वह पंजाब में भी ऐसा ही करेगी। हिमाचल प्रदेश की तरह गुजरात के विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा काफी गरमा गया है। दरअसल, नई पेंशन योजना को लेकर सरकारी कर्मचारियों में नाराजगी दिख रही है और दोनों दल चुनाव में इस नाराजगी को भुलाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। ये कहा जा सकता है कि पुरानी पेंशन योजना अब नई चुनावी रेवड़ी बन चुकी है। ऐसे में जानते हैं कि पुरानी और नई पेंशन योजना आखिर है क्या?
पुरानी पेंशन योजना क्या थी?
केंद्र और राज्यों के सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन अंतिम आहरित मूल वेतन के 50 प्रतिशत पर तय की गई थी। पुरानी पेंशन योजना या 'ओपीएस' का आकर्षण रिटायरमेंट के बाद एक सुनिश्चित या परिभाषित लाभ के अपने वादे में निहित है। इसलिए इसे परिभाषित लाभ योजना के रूप में वर्णित किया गया था।
उदाहरण के लिए, यदि सेवानिवृत्ति के समय किसी सरकारी कर्मचारी का मूल मासिक वेतन 10,000 रुपये था, तो उसे 5,000 रुपये की पेंशन का आश्वासन दिया जाएगा। साथ ही, सरकारी कर्मचारियों के वेतन की तरह, पेंशनभोगियों के मासिक भुगतान में भी वृद्धि हुई है और सरकार द्वारा सेवारत कर्मचारियों के लिए घोषित महंगाई भत्ते या डीए में वृद्धि हुई है।
मूल वेतन के प्रतिशत के रूप में गणना किया गया डीए एक प्रकार का समायोजन है जो सरकार अपने कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को जीवनयापन की लागत में लगातार वृद्धि के लिए प्रदान करती है। डीए बढ़ोतरी की घोषणा साल में दो बार की जाती है, आमतौर पर जनवरी और जुलाई में। 4 प्रतिशत डीए बढ़ोतरी का मतलब यह होगा कि 5,000 रुपये प्रति माह की पेंशन वाली एक सेवानिवृत्त व्यक्ति की मासिक आय बढ़कर 5,200 रुपये प्रति माह हो जाएगी। आज तक, सरकार द्वारा भुगतान की जाने वाली न्यूनतम पेंशन 9,000 रुपये प्रति माह है, और अधिकतम 62,500 रुपये है (केंद्र सरकार में उच्चतम वेतन का 50 प्रतिशत, जो कि 1,25,000 रुपये प्रति माह है)।
ओपीएस की दिक्कतें
पुरानी पेंशन योजना की मुख्य समस्या यह थी कि पेंशन की देनदारी अधूरी रह गई - यानी विशेष रूप से पेंशन के लिए कोई कोष नहीं था, और पेंशन का खर्चा लगातार बढ़ रहा था। भारत सरकार का बजट हर साल पेंशन के लिए राशी प्रदान करता है लेकिन भविष्य में साल दर साल भुगतान कैसे किया जाए, इस पर कोई स्पष्ट योजना नहीं थी। सरकार ने हर साल बजट से पहले सेवानिवृत्त लोगों को भुगतान का अनुमान लगाया है, और करदाताओं की वर्तमान पीढ़ी ने सभी पेंशनभोगियों के लिए भुगतान किया है। वर्तमान पीढ़ी को पेंशनभोगियों के लगातार बढ़ते बोझ को सहन करना पड़ा। समस्या ये भी थी कि ओपीएस में पेंशन देनदारियां चढ़ती रहेंगी क्योंकि हर साल पेंशनभोगियों के लाभ में वृद्धि हुई है; जैसे कि मौजूदा कर्मचारियों का वेतनमान और पेंशनभोगियों को सामान डीए। इसके अलावा बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं से जीवन प्रत्याशा का बढ़ना और लंबी उम्र बढ़ने का मतलब लम्बे समय तक भुगतान का होना।
बढ़ता ही गया पेंशन बिल
पिछले तीन दशकों में केंद्र और राज्यों के लिए पेंशन देनदारियां कई गुना बढ़ गई हैं। 1990-91 में केंद्र का पेंशन बिल 3,272 करोड़ रुपये था, और सभी राज्यों का कुल खर्च 3,131 करोड़ रुपये था। 2020-21 तक केंद्र का बिल 58 गुना बढ़कर 1,90,886 करोड़ रुपये हो गया था; जबकि राज्यों के लिए यह 125 गुना बढ़कर 3,86,001 करोड़ रुपये हो गया।
क्या कदम उठाये गए
1998 में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वृद्धावस्था सामाजिक और आय सुरक्षा (ओल्ड ऐज सोशल एंड इनकम सिक्यूरिटी) योजना के लिए एक रिपोर्ट तैयार की। सेबी और यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष एस.ए. दवे के तहत एक विशेषज्ञ समिति ने जनवरी 2000 में रिपोर्ट प्रस्तुत की। ओएएसआईएस परियोजना सरकारी पेंशन प्रणाली में सुधार के लिए नहीं थी बल्कि इसका प्राथमिक उद्देश्य असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर लक्षित था जिनके पास वृद्धावस्था की कोई भी आय सुरक्षा नहीं थी। 1991 की जनगणना के आंकड़ों को लेते हुए, समिति ने नोट किया कि केवल 3.4 करोड़ लोगों, या 31.4 करोड़ की अनुमानित कुल कामकाजी आबादी के 11 प्रतिशत से कम के पास सेवानिवृत्ति के बाद की आय सुरक्षा थी। यह आय सुरक्षा सरकारी पेंशन, कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) या कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) में से कोई भी हो सकती है। शेष कार्यबल के पास सेवानिवृत्ति के बाद आर्थिक सुरक्षा का कोई साधन नहीं था।
तीन तरह के फंडों की सिफारिश
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि व्यक्ति तीन प्रकार के फंडों में निवेश कर सकते हैं - सुरक्षित (इक्विटी में 10 प्रतिशत तक निवेश की अनुमति), संतुलित (इक्विटी में 30 प्रतिशत तक), और विकास (इक्विटी में 50 प्रतिशत तक) । ये फंड्स छह फंड मैनेजरों द्वारा जारी किये जायेंगे। शेष राशि को कॉरपोरेट बॉन्ड या सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश किया जाएगा। लोगों के पास यूनिक सेवानिवृत्ति खाते होंगे, और उन्हें प्रति वर्ष कम से कम 500 रुपये का निवेश करना होगा।
सेवानिवृत्ति के बाद, सेवानिवृत्ति खाते से कम से कम 2 लाख रुपये का उपयोग वार्षिकी खरीदने के लिए किया जाएगा। वार्षिकी या एन्युटी प्रदाता आपकी राशि का निवेश करता है और एक निश्चित मासिक आय प्रदान करता है। रिपोर्ट तैयार होने पर ये निश्चित मासिक आय 1,500 रुपये थी – एन्युटी खरीदने वाले व्यक्ति के शेष जीवनकाल के लिए। रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के डेढ़ साल बाद, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय ने सरकारी कर्मचारियों की स्थिति के अध्ययन के लिए कर्नाटक के पूर्व मुख्य सचिव बी के भट्टाचार्य के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह की स्थापना की। विशेषज्ञ समूह ने सरकारी कर्मचारियों के लिए हाइब्रिड परिभाषित लाभ/परिभाषित योगदान योजना का सुझाव दिया। पहले चरण में, इसने नियोक्ता और कर्मचारी द्वारा 10 प्रतिशत योगदान की सिफारिश की। सुझाव था कि संचित धन का उपयोग वार्षिकी के रूप में पेंशन का भुगतान करने के लिए किया जाएगा। दूसरे स्तर में, कर्मचारी के लिए कोई सीमा निर्दिष्ट नहीं की गई थी, लेकिन नियोक्ता का समान योगदान होगा लेकिन 5 प्रतिशत तक सीमित होगा। संचित धन को एकमुश्त निकाला जा सकता है या वार्षिकी में परिवर्तित किया जा सकता है। ये आय कर मुक्त होगी। रिपोर्ट 22 फरवरी, 2002 को प्रस्तुत की गई थी, लेकिन इसे सरकार ने पसंद नहीं किया।
नई पेंशन योजना की उत्पत्ति
ओल्ड ऐज सोशल एंड इनकम सिक्यूरिटी प्रोजेक्ट की रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित नई पेंशन प्रणाली पेंशन सुधारों का आधार बन गई। जो बात मूल रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए परिकल्पित थी, उसे सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए अपना लिया। केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना (एनपीएस) 22 दिसंबर, 2003 को अधिसूचित की गई थी। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने पेंशन सुधार पर कदम उठाया था। एनपीएस 1 जनवरी, 2004 से सरकार में समस्त नई भर्तियों के लिए प्रभावी हो गया, और उस वर्ष सत्ता में आई कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार ने सुधार को पूरी तरह से लागू कर दिया। 21 मार्च, 2005 को, यूपीए सरकार ने एनपीएस के नियामक, भारतीय पेंशन कोष नियामक और विकास प्राधिकरण को वैधानिक समर्थन देने के लिए लोकसभा में एक विधेयक पेश किया।
क्या है नई योजना में
नयी योजना में कर्मचारी द्वारा पेंशन फण्ड में मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 10 प्रतिशत योगदान और सरकार द्वारा समान योगदान शामिल था। ये योगदान अनिवार्य था। जनवरी 2019 में सरकार ने अपने योगदान को मूल वेतन और महंगाई भत्ते के 14 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। कर्मचारियों को विकल्प दिया गया कि वे कम जोखिम से लेकर उच्च जोखिम, और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों के साथ-साथ निजी कंपनियों द्वारा प्रोमोट किये गए पेंशन फंड मैनेजरों की योजनाओं में से किसी को चुन सकते हैं।
न्यू पेंशन स्कीम या एनपीएस के तहत योजनाएं नौ पेंशन फंड मैनेजरों द्वारा पेश की जाती हैं - एसबीआई, एलआईसी, यूटीआई, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, कोटक महिंद्रा, अदिता बिड़ला, टाटा और मैक्स। एसबीआई, एलआईसी और यूटीआई द्वारा शुरू की गई एनपीएस योजना के लिए 10 साल का रिटर्न 9.22 प्रतिशत; 5 साल का रिटर्न 7.99 फीसदी और 1 साल का रिटर्न 2.34 फीसदी है। उच्च जोखिम वाली योजनाओं पर रिटर्न 15 फीसदी तक हो सकता है।
पिछले आठ वर्षों में, एनपीएस ने एक मजबूत ग्राहक आधार बनाया है, और प्रबंधन के तहत इसकी संपत्ति में वृद्धि हुई है। 31 अक्टूबर, 2022 तक, केंद्र सरकार के पास 23,32,774 ग्राहक और राज्यों में 58,99,162 ग्राहक थे। कॉर्पोरेट क्षेत्र में 15,92,134 ग्राहक और असंगठित क्षेत्र में 25,45,771 ग्राहक थे। एनपीएस स्वावलंबन योजना के तहत 41,77,978 ग्राहक थे। इन सभी ग्राहकों की प्रबंधनाधीन कुल संपत्ति 31 अक्टूबर, 2022 तक 7,94,870 करोड़ रुपये थी।