Naxalism in India: भारत में नक्सलवाद का उदभव और समाधान

Naxalism in India: विगत वर्षों में शहरी नक्सलवाद शब्द बड़ी तेजी से सामने आया है। इसका मतलब उन लोगों से है जो शहर में रहते हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से नक्सलवाद का समर्थन नहीं करते पर कुछ संगठनों के प्रति सहानुभूति रखते हैं।

Report :  AKshita Pidiha
Update:2024-11-17 11:08 IST

Naxalism in India : भारत में बढ़ते आर्थिक विकास के साथ भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में शामिल हो चुका है। लेकिन देश में कुछ ऐसी भी खतरे हैं जो इसकी संप्रभुता, एकता और विकास में बाधा डालते हैं।पहला, जम्मू और कश्मीर संघर्ष। दूसरा,अलगाववादी आंदोलन। तीसरा, नक्सली विद्रोह। आज हम नक्सली विद्रोह के बारे में विस्तार से जानेंगे।

नक्सली शब्द का उद्भव

नक्सली शब्द का उद्भव पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से हुआ।जब 1967 में उत्पीड़ित किसानों ने भू स्वामियों के खिलाफ आवाज उठाई।नक्सलबाड़ी वह गांव है जिसने आंदोलन को अपना नाम दिया।जहां पर भूमि स्वामियों के खिलाफ कम्युनिस्ट नेताओं द्वारा गांव के किसानों को भड़काया गया था। नक्सलबाड़ी का परिणाम माओवादी और उग्रवादी विद्रोही और अलगाववादी समूह हैं, जो रुक-रुक कर सक्रिय होते हैं। हम देखते हैं कि 1960 के दशक से ही भारत में नक्सली ताकतों का बोलबाला है।जब नक्सलबाड़ी गांव में 1967 में आदिवासी किसानों ने विद्रोह किया था, उस समय इस आंदोलन को दबा दिया गया था।लेकिन यह भारत के दूर दराज के आदिवासी इलाकों में व्यापक रूप से फैल गया था।नक्सलवाद का उदय भारत में साम्यवाद उग्रवादी विकास के साथ हुआ।इसमें विशेष रूप से 1969 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी लेनिनवादी निर्माण, कम्युनिस्ट सेंटर और पीपुल्स वार ग्रुप जैसे विद्रोही समूह का उदय हुआ। नक्सलबाड़ी समूह आमतौर पर भारत के सबसे पिछड़े और सबसे गरीब आश्रय पर पड़े लोगों का प्रतिनिधित्व करने और निरंतर नेतृत्व वाली क्रांति के माओवादी सिद्धांत का पालन करने का दावा करते हैं। नक्सलबाड़ियों ने जमीदारों व्यापारियों राजनेताओं और सुरक्षा बलों जैसे लोगों के खिलाफ युद्ध छेड़ा था और इन्हें परिवहन, संचार, बिजली लाइनों को नुकसान पहुंचा कर देश के बुनियादी ढांचे को प्रभावित किया है।इस प्रक्रिया में नक्सलवादी दूरदराज के गांव के इलाकों को ऑपरेशन का अड्डा बनाकर अपने मनसूबों को साकार करने में सफल रहते हैं।नक्सलवादी समूह कई राज्यों में विशेष रूप से आंध्र प्रदेश,बिहार ,छत्तीसगढ़,झारखंड,उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में बड़े क्षेत्र पर नियंत्रण कर चुके हैं। इनका प्रभाव आगे भी देखने को मिलेगा।

नक्सली शब्द का उद्भव

भारत में राष्ट्रीय राज्य सरकारों में लगातार नक्सली के समूह को आतंकवादी संगठन कहा है और उन्हें अवैध घोषित किया है।पुलिस और सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को जवाब देने के लिए विभिन्न सैन्य अभियान चलाएं, जिसका उद्देश्य कुछ नादान लोगों को नक्सलियों की गिरफ्त से बाहर निकालना है। नक्सलवादियों का मुकाबला करना है।इन अभियानों में बहुत ज्यादा तो नहीं पर कुछ सफलता जरूर मिली है।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि नक्सलवाद मूल रूप से कानूनी समस्या है या विषमता से उत्पन्न हुआ कोई लावा। कुछ विचार करने वालों का मत यह है कि नक्सलवाद आतंकवाद जैसी गतिविधियां करके देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है तो वही दूसरा वर्ग ऐसे दमन शोषण की पीड़ा से उपचार को एक विद्रोह समझकर इसका समर्थन करता है।

1967 में शुरू हुई आंदोलन की आंधी ने जल्द ही आंदोलन का रूप ले लिया और इस आंदोलन को ही नक्सलवाद कहा गया ।इस आंदोलन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ नेता सामने आए। इन नेताओं में चारु मजूमदार,कानू सान्याल और कन्हाई चटर्जी प्रमुख है ।आंदोलन में यह कोशिश की जाती है कि राज्य को किसी तरह हिंसा के माध्यम से अस्थिर किया जा सके और इसी को नक्सलवाद का नाम दिया जाता है। ज्यादातर नक्सलवाद माओवादी विचारधारा से प्रेरित होते हैं, जो मौजूदा शासन व्यवस्था को उखाड़ फेंकना चाहते हैं और युद्ध के जरिए अपनी सरकार लाना चाहते हैं।नक्सलबादी गतिविधियां कभी भी काम नहीं होती है। यह हमें हर महीने कहीं ना कहीं किसी न किसी राज्य में देखने को मिल जाती है । क्योंकि नक्सलवादी अपने आप को निष्क्रिय कभी नहीं करते हैं।वह शासन में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं जिसकी वजह से वह लगातार किसी न किसी तरह से ऑपरेशन को अंजाम देते हैं।

शहरी नक्सलवाद

शहरी नक्सलवाद

विगत वर्षों में शहरी नक्सलवाद शब्द बड़ी तेजी से सामने आया है । इसका मतलब उन लोगों से है जो शहर में रहते हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से नक्सलवाद का समर्थन नहीं करते पर कुछ संगठनों के प्रति सहानुभूति रखते हैं।कई बार इन संगठनों पर आरोप भी लगता है कि यह नक्सलियों के लिए युवाओं की भर्ती करने में मदद करते हैं।

नक्सलवाद के कितने चरण हुए आईए जानते हैं

पहला चरण- साल 1967 से 1980 तक का समय नक्सलवादियों को शुरुआती समय था, जिसे पहला चरण कहा जाता है। इस समय मार्क्सवादी लेनिनवादी नक्सलवाद था यानी कि इसे वैचारिक और आदर्शवादी आंदोलन कहते थे । इसमें अक्सर नक्सलियों में अनुभव की कमी देखने मिलती थी । लेकिन इस दौरान उन्हें राष्ट्रीय पहचान जरूर मिली।

दूसरा चरण- साल 1980 से 2004 का समय जमीनी अनुभव आवश्यकता के आधार पर क्षेत्रीय नक्सली गतिविधियों का दौर था ।इसलिए काफी हद तक नक्सली हर मामले में अनुभवी हो चुके थे।

तीसरा चरण- साल 2004 से वर्तमान तक के चरण को तीसरा चरण कहते हैं जो कि बताता है कि नक्सलवाद का स्वरूप अब राष्ट्रीय हो चुका है। इसके तार विदेशों से भी जुड़ चुके हैं । यानी कि अब यह देश के लिए आंतरिक चुनौती बनकर उभर चुका है।

नक्सलवाद की उत्पत्ति के कारण

  • 1.नक्सली मानते हैं कि वह यह लड़ाई उन आदिवासियों और गरीबों के लिए लड़ रहे हैं जिनको सरकार अनदेखी करती है।
  • 2.नक्सलवादियों का मानना है कि माओवादी प्रभावित इलाके में आदिवासी बहुतायत में हैं । पर यहां पर जीवन यापन की बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। लेकिन प्राकृतिक संपदा का भंडार होने के कारण सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियां इस क्षेत्र का दुरुपयोग करने से बाज नहीं आती हैं। जिस वजह से भी इसके खिलाफ खड़े होते हैं।
  • 3.नक्सलवादी आदिवासी क्षेत्र के लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काते हैं और वहां किसी भी तरह का विकास नहीं होने देते हैं। साथ ही सरकार के विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • 4.इन स्थानों में प्रशासन की पहुंच ना होने के कारण नक्सलियों का अत्याचार बढ़ता जाता है और यह लोग अत्याचार का शिकार होते जाते हैं।
  • 5.शिक्षा का न होना और विकास कार्यों की कमी के कारण स्थानीय लोगों और नक्सलियों के बीच रिश्ता मजबूत हो चुका है।
  • 6.सामाजिक असमानता इन क्षेत्र में देखी जाती है। जिसकी वजह से नक्सलियों के लिए यह एक मानसिक हथियार होता है।
  • 7.शासन की बनाई गई योजनाएं और उनके क्रियान्वयन में गंभीरता, निष्ठा और पारदर्शिता देखने को नहीं मिलती है जिसकी वजह से वंचितों को भड़काने और नक्सलियों की और फौज तैयार करने में आसानी होती है। इस बात का नक्सली फायदा उठाते हैं।
  • 8.लोगों को यह बात समझ में आने लगा है कि केंद्र में बैठे सत्ता के लोग ना ही सामाजिक असमानता को खत्म करना चाहते हैं ना ही भ्रष्टाचार को बंद करना चाहते हैं, जिस वजह से भी नक्सलियों की बातों को और मजबूती मिल जाती है।

सरकार कर रही है प्रयास

सरकार कर रही है प्रयास

  • 1.कानून व्यवस्था राज्य सूची के अंतर्गत आता है यानी कि राज्य में कानून व्यवस्था को बनाए रखने का काम राज्य का होता है। लेकिन नक्सली समस्या को देखते हुए वर्ष 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इसे राष्ट्र के आंतरिक सुरक्षा के लिए एक चुनौती समझा। जिसके बाद गृह मंत्रालय ने इस समस्या से लड़ने के लिए एक अलग विभाग बनाया।
  • 2.सरकार लगातार प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी शिक्षा ,ऊर्जा, डिजिटल कनेक्टिविटी ,कौशल विकास पर ध्यान दे रही है। इन इलाकों में सड़के लगातार बनाई जा रही है ।
  • 3.2013 में रोजगार की दृष्टि से रोशनी नाम की पहल शुरू हुई थी,इस योजना के तहत इन प्रभावित जिलों में रोजगार के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जा सके।
  • 4. देश के सर्वाधिक प्रभावित 30 जिलों में जवाहर नवोदय विद्यालय और केंद्रीय विद्यालय चलाए जा रहे हैं ।
  • 5.हिंसा का रास्ता छोड़कर समर्पण करने वाले नक्सलियों को सरकार द्वारा इनाम दिया जा रहा है ।साथ ही पुनर्वास की व्यवस्था भी की जा रही है।

समस्या के समाधान करते समय कई चुनौतियां आती हैं, जिनमें से कुछ निम्न है

  • 1.नक्सली सामाजिक असमानता और आर्थिक कारण से जन्म लेके है। इन क्षेत्रों में लोग आज भी मजबूरीवश निचले स्तर की जीवन शैली जीने को मजबूर है ।यहां पर उसमें किसी की मौत हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है ।जिस वजह से भी नक्सलवाद की जड़ों को फैलाने का एक बड़ा अवसर मिलता है।
  • 2.सरकार द्वारा शिक्षा ,चिकित्सा ,रोजगार के लिए योजनाएं बनाई जाती हैं। पर वह जमीन स्तर पर इतनी जल्दी लागू नहीं होती है ।जिससे यहां के प्रभावित लोगों को यह लगता है कि यह कानून उन्हें परेशान करने के लिए बनाए जाते हैं।
  • 3. भ्रष्टाचार ,खेती की दुर्दशा, शिक्षा में सुधार न होना तमाम समस्या है, जो अभी भी जस की तस बनी हुई है। इन समस्याओं को देखकर विद्रोहियों की क्षमता और बढ़ जाती है।इन सभी वजह से नक्सलवादी सोच को बढ़ावा मिलता है, जिसके व्यवहारिक समाधान पर सरकारी अभी भी नहीं सोच पा रही हैं।
  • 4. यहां पर संचार सुविधाओं और प्रशिक्षित मानव संसाधनों की अभी भी कमी है ।
  • 5.नक्सलियों से निपटने के लिए राज्यों का अन्य राज्यों से कोई संबंध नहीं है। जिस वजह से अंतरराज्यीय सीमा का लाभ उठाया जाता है।

क्या हो सकता है

नक्सलवादी अब सामाजिक आर्थिक विषमता से ज्यादा राजनीतिक मुद्दा हो गया है ।क्योंकि जब भी कारण मिलता है ,सियासी दल इसे चुनावी तवा समझकर इस पर अपनी अपनी रोटी सेंकने की कोशिश में लग जाते हैं।ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि पांचवी अनुसूची को अभी भी सरकार से अनुमति नहीं मिली है।पांचवी अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्र में एक काउंसिल की स्थापना की जाती है, जिसमें यह पंचायत की तरह काम करती है, जो आदिवासियों को अपने क्षेत्र पर शासन करने का अधिकार देती है । इसमें 20 सदस्य होते हैं और तीन चौथाई सदस्य वे होते हैं जो संबंधित राज्य की विधानसभा में अनुसूचित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं ।सरकार को कोशिश करना चाहिए कि कानून व्यवस्था की समस्या से ऊपर उठकर उनके मूलभूत समस्याओं को देखा जाए और उसे दूर करने का प्रयास किया जाए।

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