आशुतोष सिंह
वाराणसी: दलितों के सबसे बड़े संत रविदास जी की जयंती पर बड़ा जलसा लगाने की तैयारी है। वाराणसी के सीर गोवर्धन स्थित उनके जन्मस्थली पर तैयारियां जोरों पर हैं। हर साल की तरह इस बार भी देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार भी इस मौके को भुनाने से नहीं चूकना चाहती। पिछले 3 सालों से बीजेपी रविदास जी की जयंती को बड़े स्तर पर मनाती आ रही है। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ तक इसमें शिरकत करते रहे हैं। दलित संत के प्रति बीजेपी नेताओं की आस्था देखते ही बनती है, लेकिन दलित संत को लेकर बीजेपी नेताओं के समर्पण को लेकर सवाल उठने लगे हैं। संत रविदास के जन्मस्थली सीर गोवर्धन को लेकर बीजेपी सरकार के सभी वादे और दावे सिर्फ कागजों पर ही सीमित हैं। लिहाजा रैदासी अब गुस्से में हैं।
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बीजेपी ने नहीं पूरा किया वादा
तीन साल पहले रैदासियों के दिल में बीजेपी सरकार से उम्मीद जगी थी। पीएम मोदी ने 46 करोड़ रुपये की अलग-अलग कई परियोजनाओं का ऐलान किया था। इसके तहत इस परियोजना के तहत रविदास मंदिर में एक पार्क, एक लंगर हॉल और संत रविदास की भव्य प्रतिमा भी लगाने का निर्णय हुआ था।
दावा किया गया कि योजना की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर ली गई है। लेकिन सीर गोवर्धन पहुंचने पर हकीकत सामने आ जाती है। सिर पर गठरी लिए जब धूल और कंकड़ भरी सड़कों से गुजरते हुए रैदासी अपने इष्ट देव के दरबार में पहुंचते हैं तो दिल में सुकून तो जरूर रहता है, लेकिन चेहरे पर गुस्सा साफ दिखता है।
रैदासियों के मुताबिक उनके सबसे बड़े संत के साथ बीजेपी सरकार छलावा कर रही है। पीए मोदी ने अपना वादा अभी तक पूरा नहीं किया। माना जा रहा था कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार आने के बाद रविदास जनस्थली की दशा सुधर जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। 9 फरवरी को मनाई जाने वाली जयंती पर आने वाले रैदासी खुले आसमान के नीचे टेंट में रहने को मजबूर रहते हैं। श्रद्धालुओं के खाने-पीने की पूरी व्यवस्था मंदिर प्रशासन करता है।
मिनी पंजाब बनेगा सीर गोवर्धन
संत रविदास के इस जन्म स्थान पर 9 फरवरी को बड़ा आयोजन होने जा रहा है, क्योंकि उनके अनुयायी संत रविदास का 643वां जन्मोत्सव मनाने जा रहे हैं। इस आयोजन को लेकर सीर गोवर्धन में तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। यहां लगभग साढ़े तीन लाख स्क्वायर फिट में भव्य पंडाल बनाने के साथ ही लोगों के रहने-खाने की व्यवस्था की जा रही है। इस वृहद आयोजन में 2 दिनों तक वाराणसी का यह पूरा इलाका मिनी पंजाब की शक्ल ले लेगा। दो दिनों में लगभग 20 लाख से ज्यादा लोगों की मौजूदगी काशी के इस पवित्र स्थान पर होने का अनुमान है।
वाराणसी के सीर गोवर्धन का महत्व अपने आप में है, क्योंकि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश समेत देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में लोग यहां पर पहुंचते हैं। हर साल रविदास जयंती के मौके पर लाखों की भीड़ यहां जुटती है। रविदासियों के धार्मिक प्रमुख संत निरंजन दास अनुयायियों के साथ पंजाब से यहां पहुंचेंगे। मुख्य आयोजन मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित खाली पड़े मैदान पर होगा। वहां भव्य पंडाल में सत्संग का आयोजन किया जाएगा। आयोजन में इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आने की उम्मीद जताई जा रही है।
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सीर गोवर्धन में लगता है नेताओं का तांता
वाराणसी के सीर गोवर्धन को यूं ही सियासत का नया अखाड़ा नहीं कहा जा रहा है। दो दशकों तक संत रविदास की इस जन्मस्थली पर सिर्फ बीएसपी सुप्रीमो मायावती और उनके समर्थक ही दिखते थे, लेकिन यूपी की सियासत में नरेंद्र मोदी ने दस्तक के साथ अब यहां आने वाले चेहरे बदल गए हैं। बीएसपी समर्थकों की तुलना में बीजेपी नेता कहीं अधिक दिखते हैं। वाराणसी से चुनाव लड़ चुके अरविंद केजरीवाल साल 2016 में पंजाब चुनाव के पहले आए थे। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सीर गोवर्धन में संत रविदास का आशीर्वाद ले चुके हैं। पिछले साल यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पहुंचे थे। उन्होंने चंद्रग्रहण के बावजूद मंदिर में प्रसाद छका था।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी की सियासत में एक नया समीकरण देखने को मिला था। दो दशकों तक बीएसपी का साथ देने वाले दलितों ने मायावती को अचानक जमीन पर ला दिया। दलितों ने मायावती की तुलना में नरेंद्र मोदी पर विश्वास जताया। नतीजा ये हुआ कि बीजेपी ने बीएसपी के वोटबैंक में सेंधमारी करते हुए यूपी की 71 सीटें हासिल कर लीं। वहीं मायावती की पार्टी बीएसपी शून्य पर पहुंच गई।
जानकार बताते हैं कि मोदी सरकार किसी भी कीमत पर दलितों को अपने से दूर नहीं होने देना चाहती है। एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त फैसला सुनाया तो मोदी सरकार ने उसे संसद में पलटने में तनिक भी देर नहीं की। बीजेपी को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। पीएम मोदी रैदासियों के जरिए फिर से दलितों का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं। बीजेपी के इस दलित प्रेम का नजारा 2019 के लोकसभा चुनाव में भी दिखाई दिया। पूर्वांचल के दलितों ने पीएम मोदी का साथ दिया और उनकी झोली में खूब सीटें दी।
बीजेपी ने दलित पॉलिटिक्स को किया हाईजैक
कुल मिलाकर कहे तो बीजेपी ने रविदास जयंती के बहाने उत्तर प्रदेश के अंदर दलित पॉलिटिक्स की एक नई नींव रखी है। अब इसके पीछे की वजह भी समझिए। रैदासियों पर अब तक मायावती अपना हक जताती रही हैं। उनकी सियासत में दलित महापुरुषों और संतों का अहम रोल रहा है। इन्हीं महापुरुषों की बदौलत मायावती ने दलितों को राजनीति का ऐसा ब्रांड बना दिया, जिसे पाने की चाहत हर पार्टी को है। यूपी में बीजेपी ने मायावती की इसी पॉलिटिक्स को अब हाईजैक कर लिया है। दलित महापुरुषों के बहाने बीजेपी दलितों पर डोरे डालने में काफी हद तक कामयाब रही है। रैदासियों को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी सिर्फ जुबानी तौर पर प्रयास नहीं कर रही है बल्कि जमीनी स्तर पर भी उसकी कोशिशें दिख रही हैं।
बीजेपी ने सरकार बनने के साथ ही सीर गोवर्धन में 1997 से अधूरे पड़े प्रोजेक्ट को परवान चढ़ाने की कोशिश की। दरअसल साल 1997 में बीएसपी सुप्रीमो मायवती ने संत रविदास की जन्मस्थली पर एक भव्य स्मारक और पार्क निर्माण की योजना बनाई थी। मायावती का यह ड्रीम प्रॉजेक्ट तब एसपी के विरोध प्रदर्शन के कारण पूरा नहीं हो पाया। अब भाजपा बीएसपी सुप्रीमो के उसी प्रॉजेक्ट का पूरा करने का ख्वाब रैदासियों को दिखा रही है।