गुजरात चुनाव : राहुल ने मेघमाया मंदिर में मत्था टेका, जानिए क्यों जरुरी है धार्मिक होना
गांधीनगर : गुजरात चुनाव प्रचार से जुडी खबरों के साथ ही एक खबर बड़ी प्रमुखता से सामने आती है कि प्रचार के लिए आए नेता ने मंदिर में दर्शन कर आशीर्वाद लिया। इनमें उन नेताओं के नाम भी होते हैं, जो आमतौर पर मंदिर जाने या धार्मिक होने के लिए नहीं जाने जाते। अब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को ही देख लीजिए जिस इलाके में प्रचार के लिए जाते हैं वहां के प्रसिद्ध मंदिर में माथा जरुर टेकते हैं।
चलिए पहले आपको ये बता देते हैं कि राहुल का गुजरात में चुनावी दौरे का आज अंतिम दिन है। उन्होंने सूरत के मेघमाया मंदिर में मत्था टेका है। इस दौरे की शुरुआत राहुल ने अक्षरधाम मंदिर से की थी। स्वामी नारायण पंथ अक्षरधाम मंदिर का संरक्षक है। राज्य का पाटीदार इस मंदिर में विशेष आस्था रखता है। कुछ ऐसा ही हाल मेघमाया मंदिर का भी है।
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ये बात तो आपको समझ में आ ही गई होगी कि राहुल का मंदिर भ्रमण आस्था से नहीं बल्कि वोटबैंक से जुड़ा है। इसके बाद की कथा हम बाच देते हैं।
देश के किसी भी राज्य की जनता की अपेक्षा गुजराती कहीं अधिक धार्मिक होते हैं। सामान्य जीवन में भी वो अपने दिन का आरंभ और समापन भगवत नाम से ही करते हैं। आलम ये है कि जब वो अपनी बहन बेटी या बेटे की शादी के लिए रिश्ता देखते हैं, तो भी इस बात का ध्यान देते हैं कि परिवार संपन्न और धार्मिक हो। कुछ ऐसा ही उनका राजनीतिक मिजाज भी है। उनकी नजर हर उस नेता पर होती है जो उनके पास वोट की गुहार लगाने आता है की उसने उनके आराध्य को नमन किया या नहीं।
अब थोड़ी राजनीति की बात करते हैं। गुजरात में कोई भी चुनाव हो इस दंगल में उतरने वाली पार्टियां अपने कद्दावर नेताओं का प्रचार कार्य-कर्म ऐसा तय करती हैं कि वो मंदिरों में माथा अवश्य टेकें। और उससे जुडी खबरों को ये पार्टियां वायरल भी करती हैं कि हमारे नेता फलां मंदिर गए, वहां आशीर्वाद लिया। ये पार्टियां इस बात का भी ख्याल रखती हैं की विरोधी दल का बड़ा नेता मंदिर गया या नहीं।
तो इस सबके बाद आप समझ गए होंगे कि गुजरात में नेतागिरी करनी है तो भले ही आप पढ़े लिखे न हों, शासन प्रशासन की समझ हो या ना हो। लेकिन आपका धार्मिक होना बहुत जरुरी है। वर्ना आपकी राजनीति शुरू होने से पहले ही समाप्त समझिए।