पांच जजों की पीठ..रामजन्मभूमि मुद्दा, सियासत और आस्था

राम जन्मभूमि का मामला संवेदनशील है। पूरे देश में इस मसले पर चर्चा गर्म है। संत, बीजेपी और अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अलावा संघ से जुड़े कई आनुषांगिक हिंदूवादी संगठन लगतार इस बात की मांग करते आ रहे हैं कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की सभी अड़चनों को दूर किया जाय।

Update:2019-01-09 17:28 IST

अनूप ओझा

राम जन्मभूमि का मामला संवेदनशील है। पूरे देश में इस मसले पर चर्चा गर्म है। संत, बीजेपी और अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अलावा संघ से जुड़े कई आनुषांगिक हिंदूवादी संगठन लगतार इस बात की मांग करते आ रहे हैं कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की सभी अड़चनों को दूर किया जाय। इन सबके बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक जनवरी को दिए एक साक्षात्कार में राम मंदिर पर ऑर्डिनेंस लाने के सवाल पर कहा था, 'क़ानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही इस पर विचार संभव है। इन सब बातों के बीच सवाल तैर रहा है कि राम मंदिर पर न्यायालय का फैसला क्या आएगा।

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अयोध्या मसले पर अब 5 जजों की बेंच करेगी सुनवाई

अयोध्या मसले पर अब 10 जनवरी को 5 जजों की बेंच सुनवाई करेगी। इस बेंच में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई के अलावा, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस यूयू ललिति, जस्टिस बोबडे और जस्टिस एनवी रमन्ना होंगे। इससे पहले 4 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अयोध्या जमीन विवाद मामले पर 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई नई पीठ करेगी।मुस्लिम पक्षकारों ने इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने का स्वागत किया है। पिछले वर्ष जब यह मामला सुनवाई के लिए आया तो मुस्लिम पक्षकारों की ओर से मांग की गई कि इस मसले को संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए।

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अयोध्या मामले में पांच सदस्यीय पीठ का गठन मुद्दा बन गया है। इस बारे कानूनी जानकारों की राय जुदा है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस बीएन खरे के मुताबिक, चीफ जस्टिस को संविधान पीठ के गठन का अधिकार है। अगर चीफ जस्टिस को लगता है कि इसमें कानूनी सवाल है तो वह ऐसा कर सकते हैं। ऐसा पहले भी हुआ है। वहीं पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल व वरिष्ठ वकील विकास सिंह का कहना है कि जब तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया था तो प्रशासनिक स्तर पर इसे पांच सदस्यीय पीठ के पास नहीं भेजा जा सकता। यह गैरकानूनी है।

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राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद केस में करीब 9 हजार से ज्यादा पन्ने हैं जो हिन्दी, पाली, उर्दू, अरबी, फारसी, संस्कृत आदि सात भाषाओं हैं। इनका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। कोर्ट के आदेश पर अनुवाद का यह काम उत्तर प्रदेश सरकार ने किया है।

 

13 जुलाई 2018: सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया कि अयोध्या में विवादित ज़मीन के मामले में 20 जुलाई से लगातार सुनवाई होगी।

20 जुलाई 2018: सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रखा।

27 सितंबर 2018: सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से जुड़े 1994 वाले फ़ैसले पर पुनर्विचार से इनकार किया। उस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'मस्जिद में नमाज़ पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है'। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फ़ारुकी मामले को संवैधानिक पीठ के पास भेजने से भी इनकार कर दिया।

 

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इसके पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में दिए अपने फैसले में अयोध्या अयोध्या की 2.77 एकड़ ज़मीन को रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड- तीनों पक्षों में बराबर बांटने का फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में पिछली सुनवाई 29 अक्टूबर को हुई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में जनवरी के पहले हफ़्ते में 'उपयुक्त पीठ' के सामने सुनवाई होगी जो सुनवाई का प्रारूप तय करेगी।

अयोध्या केस के पक्षकार

इस मामले के मुस्लिम पक्षकरा इकबाल अंसारी का कहना है कि हमें अदालत का हर फैसला मंजूर है और इसके लिए सरकार को अध्यादेश नहीं लाना चाहिए।

14 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी अंतरिम याचिकाओं को ख़ारिज किया। केवल सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका के बारे में अदालत ने कहा कि अब इसे एक अलग याचिका के रूप में सूचीबद्ध किया जाएगा।

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जमीन विवाद का मुख्य मामला

राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दिवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई हाई कोर्ट ने दिए फैसले में कहा था कि तीन गुंबदों में बीच का हिस्सा हिंदुओं का होगा जहां फिलहाल रामलला की मूर्ति है। निर्मोही अखाड़ा को दूसरा हिस्सा दिया गया इसी में सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल है। बाकी एक तिहाई हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दिया गया। इस फैसले को तमाम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बहाल कर दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ इस मामले की सुनवायी करेगी।

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