Razakar Narsanhar Wikipedia: रजाकार नरसंहार, जानें किस तरह हैदराबाद आया भारत के हाथ

Razakar Narsanhar Wikipedia in Hindi: क्या आप जानते हैं कि भारत ने कैसे हैदराबाद को एक अलग मुल्क बनने से रोका और किस तरह हुआ था रजाकार नरसंहार आइये जानते हैं।

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2024-12-13 14:22 IST

Razakar Narsanhar (Image Credit-Social Media)

Razakar Narsanhar Wikipedia in Hindi: भारत के स्वतंत्रता संग्राम और देश के एकीकरण की प्रक्रिया में कई ऐसे पन्ने जुड़े हैं जो आज भी हमारी सामूहिक स्मृतियों में दर्द और संघर्ष की छाप छोड़ते हैं। उनमें से एक है हैदराबाद रियासत में रजाकार नरसंहार। यह घटना भारत की स्वतंत्रता के बाद 1948 में हुई, जब हैदराबाद के निज़ाम ने भारतीय गणराज्य में विलय का विरोध किया और एक सशस्त्र मिलिशिया, जिसे "रजाकार" कहा गया, ने आम जनता पर अत्याचार किए।

27 अगस्त, 1948 को एक खौफनाक घटना हुई, जिसे भैरनपल्ली नरसंहार के नाम से जाना गया।इस घटना के बारे में कई जगह यह जानकारी जरूर मिलती है कि 96 हिंदू मारे गए और मारने वाले रजाकार थे।

हैदराबाद एक ऐसा रजवाड़ा था जिसका निजाम एक मुसलमान था परंतु राज्य में बहुमत हिंदुओं का था। निजाम हिंदुओं से नफरत करते थे। अपनी एक कविता में निजाम ने लिखा है: ‘मैं पासबाने दीन हूं, कुफ्र का जल्लाद हूं।’ अर्थात मैं इस्लाम का रक्षक हूं और हिंदुओं का भक्षक। निजाम के अंतर्गत हैदराबाद में 13 प्रतिशत ही मुसलमान थे परंतु उच्च पदों पर 88 प्रतिशत मुसलमान थे। इसी तरह 77 प्रतिशत हाकिम मुसलमान थे। हैदराबाद की आमदनी का 97 प्रतिशत हिंदुओं से वसूला जाता था। इसके बावजूद निजाम हिंदू विरोधी था। उसके हरम में 360 स्त्रियाँ थीं। उनमें से अधिकतम ‘काफिर’ अर्थात् गैर मुस्लिम थीं। निजाम को खुश करने के लिए उसके अधीनस्थ अफगानिस्तान से चुरा कर लाई गई 10-12 साल की गैर-मुस्लिम लड़कियां भी खरीद कर लाते थे।मुसलमान निजाम पाकिस्तान में मिलना चाहता था। परंतु हैदराबाद पाकिस्तान से बहुत दूर था और चारों तरफ से भारत से घिरे द्वीप की भांति था।

Razakar Narsanhar (Image Credit-Social Media)

रजाकारों को उम्मीद थी कि इस लड़ाई में पाकिस्तान उनका साथ देगा। मगर जॉन जुब्रकी लिखते हैं, ”कराची में प्रदर्शनकारी भारत पर हमले की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए थे। लेकिन इस सबसे दो दिन पहले जिन्ना की मौत हो गई थी, इसलिए पाकिस्तान की तरफ से अब इस मामले में इंटरफेरेंस की पॉसिबिलिटी पूरी तरह जीरो हो चुकी थी।

हैदराबाद रियासत: स्वतंत्रता के समय की स्थिति

1947 में भारत को आज़ादी मिलने के बाद देश को 562 रियासतों में बांटा गया था। इनमें से अधिकांश रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय संघ में विलय का निर्णय लिया।लेकिन हैदराबाद रियासत एक अपवाद रही। उस समय हैदराबाद पर निज़ाम मीर उस्मान अली खान का शासन था। निज़ाम एक इस्लामी शासक थे, जबकि हैदराबाद की बहुसंख्यक जनता हिंदू थी।

11 जुलाई,1947 को निजाम ने अपना एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली भेजा ताकि हैदराबाद को एक स्वतंत्र देश घोषित किया जा सके। इस प्रतिनिधिमंडल ने प्रस्ताव रखा कि भारत से समझौता किया जाए, जिसमें विदेश नीति, रक्षा और संचार भारत के नियंत्रण में हों। लेकिन बाकी मामलों में हैदराबाद स्वतंत्र रहे।

Razakar Narsanhar (Image Credit-Social Media)

भारत सरकार ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और हैदराबाद को भारतीय संघ में मिलाने का निश्चय किया। निजाम ने मौखिक रूप से 28 अक्टूबर, 1947 को समझौते पर हस्ताक्षर करने का वादा किया। लेकिन कासिम रिजवी ने इसका जोरदार विरोध किया। उसने रातोंरात रजाकारों को संगठित कर निजाम के समर्थक नेताओं के घरों का घेराव करवा दिया और धमकी दी कि अगर समझौता किया गया, तो उनके घर जला दिए जाएंगे।

रजाकार का उद्देश्य

रजाकार संगठन का गठन 1938 में मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुसलमीन (MIM) के नेता कासिम रजवी ने किया। इसका मुख्य उद्देश्य हैदराबाद को एक इस्लामिक राज्य बनाए रखना और इसे भारतीय संघ में शामिल होने से रोकना था।

रजाकारों ने हैदराबाद में भय और आतंक का माहौल पैदा किया। उन्होंने हिंदू आबादी को निशाना बनाकर हिंसा, लूटपाट और हत्याओं को अंजाम दिया। रजाकारों का दावा था कि वे इस्लाम की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन उनके कृत्य धार्मिक कट्टरता और सत्ता बनाए रखने की चाह से प्रेरित थे।

Razakar Narsanhar (Image Credit-Social Media)

रजाकारों की गतिविधियां इतनी हिंसक थीं कि हैदराबाद की जनता के लिए यह समय भयावह हो गया। सैकड़ों हिंदू परिवारों को उनके घरों से निकाल दिया गया, महिलाओं पर अत्याचार किए गए, और हजारों लोग मारे गए।

हैदराबाद में हिंसा और नरसंहार

भारत की आजादी के बाद हैदराबाद रियासत का भारत में विलय एक चुनौतीपूर्ण और रक्तरंजित घटना थी। निजाम की हठधर्मिता और रजाकारों के अत्याचारों ने इस प्रकरण को और जटिल बना दिया। 1947 और 1948 के बीच, रजाकारों ने हैदराबाद में व्यापक पैमाने पर अत्याचार किए। इन अत्याचारों का उद्देश्य न केवल हिंदू आबादी को डराना था, बल्कि भारतीय संघ में विलय का विरोध करने वालों को दबाना भी था।रजाकारों ने गांव-गांव जाकर निर्दोष ग्रामीणों की हत्या की, महिलाओं का शोषण किया और संपत्तियों को लूटा। उनकी हिंसा ने समाज में धार्मिक विभाजन और अस्थिरता को बढ़ावा दिया।हैदराबाद में रजाकारों द्वारा की गई हिंसा के पीछे कासिम रजवी का नेतृत्व था। उन्होंने खुलकर ऐलान किया कि वह हैदराबाद को एक इस्लामिक राज्य बनाए रखेंगे, भले ही इसके लिए उन्हें खून बहाना पड़े।

Razakar Narsanhar (Image Credit-Social Media)

भारतीय सरकार की प्रतिक्रिया: ऑपरेशन पोलो

रजाकारों के अत्याचार और हैदराबाद रियासत के भारत में विलय से इनकार करने पर भारत सरकार ने सख्त कदम उठाने का निर्णय लिया। सितंबर 1948 में, तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में ‘ऑपरेशन पोलो’ नाम का सैन्य अभियान चलाया गया।

हिंदू आबादी के समर्थन में कम्युनिस्ट और आंध्र हिंदू महासभा के कार्यकर्ता मुखर हो गए। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, सितंबर 1948 में भारतीय सेना ने हस्तक्षेप किया, जिसे ‘हैदराबाद पुलिस एक्शन’ कहा गया। इस सैन्य अभियान को ‘ऑपरेशन पोलो’ नाम दिया गया, क्योंकि उस समय हैदराबाद में दुनिया के सबसे अधिक पोलो मैदान थे।

12 सितंबर, 1948 को दोपहर 1:45 बजे, भारतीय सेना ने रजाकारों के खिलाफ अपना अभियान शुरू किया। इस योजना के तहत पांच दिशाओं से हमला किया गया और किसी भी संभावित हवाई हमले का जवाब देने के लिए ‘पोलो एयर टास्क फोर्स’ भी तैयार की गई। जैसे ही अभियान आगे बढ़ा, यह स्पष्ट हो गया कि निजाम और रजाकारों की वास्तविक ताकत बहुत कमजोर थी।रजाकार, जो अब तक निहत्थे और निर्दोष लोगों पर अत्याचार करने में माहिर थे, सेना का सामना करने में असमर्थ साबित हुए। आर्मी की कार्रवाई ने उनकी हेकड़ी खत्म कर दी और उनके आतंक का अंत हो गया। यह स्पष्ट हो गया कि रजाकार केवल कमजोर और असहाय लोगों को डराने में सक्षम थे। लेकिन एक सशक्त और संगठित सेना से मुकाबला करना उनके लिए असंभव था।

भारतीय सेना ने 13 सितंबर, 1948 को हैदराबाद रियासत में प्रवेश किया। मात्र पांच दिनों के भीतर यानी 17 सितंबर, 1948 को भारतीय सेना ने रजाकारों और निज़ाम की सेना को हराकर हैदराबाद को भारतीय संघ में शामिल कर लिया।

Razakar Narsanhar (Image Credit-Social Media)

ऑपरेशन पोलो के परिणाम

भारतीय सेना के हस्तक्षेप के बाद रजाकारों की गतिविधियां समाप्त हो गईं। कासिम रजवी को गिरफ्तार कर लिया गया और MIM को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। निज़ाम मीर उस्मान अली खान ने भारतीय संघ के साथ विलय के समझौते पर हस्ताक्षर किए और हैदराबाद भारत का एक हिस्सा बन गया।

हालांकि, ऑपरेशन पोलो के दौरान भी हिंसा हुई। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, इस सैन्य कार्रवाई में कई निर्दोष लोग मारे गए। ऑपरेशन के बाद, सांप्रदायिक तनाव और समाज में विभाजन की स्थिति बनी रही।

रजाकार नरसंहार का प्रभाव-

रजाकारों की हिंसा और भारतीय सेना की कार्रवाई ने हैदराबाद में धार्मिक विभाजन को गहरा कर दिया।ऑपरेशन पोलो के बाद, हैदराबाद भारतीय गणराज्य का हिस्सा बन गया। लेकिन सांप्रदायिक घाव लंबे समय तक भरे नहीं जा सके।रजाकारों के नेताओं पर मुकदमे चलाए गए और कई को सजा दी गई।रजाकार नरसंहार को भारत के विभाजन और स्वतंत्रता संग्राम के बाद के दौर की सबसे दर्दनाक घटनाओं में गिना जाता है।

वर्तमान में रजाकार नरसंहार की स्मृति

आज भी रजाकार नरसंहार को याद किया जाता है, खासकर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के क्षेत्रों में। यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि धार्मिक कट्टरता और सत्ता के लालच ने कैसे निर्दोष लोगों की जिंदगी को प्रभावित किया।

कौन थे रजाकार


Razakar Narsanhar (Image Credit-Social Media)

रजाकार यानी मिलिशिया, इसका अर्थ होता है आम लोगों की सेना। इसे इस मकसद से तैयार किया गया था, ताकि जरूरत पड़ने पर हथियार उठा सकें। मूल रूप से इस सेना में भरती लोग अरब और पठान थे.। जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल को यह बिल्कुल मंजूर नहीं था कि हैदराबाद को अलग से मुल्क बनाया जाए, वो भी भारत के उस इलाके के बीचों-बीच जहां चारों ओर हिंदुओं की आबादी थी।इसलिए सरदार पटेल ने यह बयान भी दिया था कि हैदराबाद आजाद भारत के पेट में कैंसर जैसा है।

ऑपरेशन पोलो के दौरान 1373 रजाकार मारे गए। भारतीय सेना ने अपने 66 जवान खोए और 97 घायल हुए। इस सैन्य कार्रवाई के बाद रजाकारों का आतंक समाप्त हो गया और निजाम ने भारतीय संघ में विलय के लिए सहमति दे दी।

रजाकारों का आतंक और उनके नेतृत्व में हुआ नरसंहार भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है। यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि धार्मिक कट्टरता और सत्ता के लिए संघर्ष ने निर्दोष लोगों की जिंदगी को कैसे प्रभावित किया।भारत में हैदराबाद के विलय और रजाकारों के अंत ने यह साबित कर दिया कि लोकतंत्र और एकता ही देश को सशक्त बना सकते हैं। यह इतिहास हमें यह भी सिखाता है कि कट्टरता और हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह घटना हमें याद दिलाती है कि समाज में सांप्रदायिकता और कट्टरता को कभी भी बढ़ावा नहीं देना चाहिए। भारत जैसे विविधता भरे देश में, एकता और सहिष्णुता ही हमारे भविष्य की कुंजी है।

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