Union Carbide Waste: यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा बन गए हैं जी का जंजाल

Union Carbide Gas Tragedy Waste Disposal: भोपाल गैस कांड के करीब 40 साल बाद भी उस बंद और बर्बाद कारखाने में जहरीला कचरा का निपटान नहीं हो सका है। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने का आदेश दिया है, हालांकि पीथमपुर के लोग इसके सख्त खिलाफ हैं।;

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2025-01-06 16:13 IST

Union Carbide Waste (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

MIC Gas Leak Case Bhopal: 2 और 3 दिसंबर, 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने (Union Carbide Factory) से अत्यधिक जहरीली ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ (MIC) गैस लीक होने से हुई कुख्यात गैस त्रासदी में हजारों लोग मारे गए थे और न जाने कितने ही लोग आज तक उस जहर के दुष्परिणाम झेल रहे हैं। 40 साल बीत चुके हैं। लेकिन उस बंद और बर्बाद कारखाने में जहरीला कचरा का निपटान न हो सका। अब लगभग 20 साल की कानूनी लड़ाई के बाद तीन दिसंबर, 2024 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने चार हफ्तों के अंदर कचरे को हटाने का आदेश दिया।

नतीजा यह निकला कि 377 टन कचरे को इंदौर के पास स्थित पीथमपुर (Pithampur) पहुंचाया जाए। वहां उसे जला कर नष्ट किया जाए। लेकिन पीथमपुर के लोग इसके सख्त खिलाफ हैं। जब कचरे से भरे ट्रक वहां पहुंचे तो जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन हुआ। हिंसक झड़प हुई। जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया, तो दो लोगों ने अपने शरीर पर पेट्रोल डाला और खुद को आग लगा ली। लोगों को डर है कि कचरे को निपटाने से उनकी सेहत और पर्यावरण पर असर पड़ सकता है।

कैसे पहुंचा पीथमपुर

(फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

नए साल के पहले दिन यानी एक जनवरी को यूनियन कार्बाइड से 337 टन कचरे (Union Carbide Waste) को लीक प्रूफ थैलियों में भर 12 बंद ट्रकों में भोपाल से करीब 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर के लिए भेजा गया। इस काफिले के लिए भोपाल से पीथमपुर तक एक ग्रीन गलियारा बनाया गया। काफिले में करीब 100 पुलिसकर्मियों को तैनात किया और एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड आदि को भी साथ ही भेजा गया।

क्या है प्रोसेस

कचरे का निपटान ‘रामकी एनवायरो इंजीनियर्स लिमिटेड’ (Ramky Enviro Engineers Limited) की यूनिट में होना है। यह यूनिट 12 गांवों से घिरी हुई है। केंद्र सरकार ने कचरे को जलाने के लिए 126 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं, जिसमें से 20 फीसदी राशि रामकी एनवायरो को पहले ही जारी कर दी गई है। सरकार पहले थोड़ी मात्रा में कचरे को जलाएगी और जबलपुर उच्च न्यायालय को रिपोर्ट सौंपेगी। इसके बाद हर घंटे 90 किलोग्राम कचरे को जलाने की योजना है, यह प्रक्रिया 2015 में भी अपनाई गई थी। पूरे जहरीले कचरे को उपचारित करने में छह महीने तक का समय लग सकता है।

कचरे को रामकी प्लांट के अंदर 850 से 1,200 डिग्री सेल्सियस पर एक गर्म, रोटरी भट्ठी के अंदर और फिर एक दहन कक्ष में रखा जाएगा। कचरे को जलाने से उत्पन्न होने वाली जहरीली गैसों को बेअसर करने के लिए स्क्रबर नामक वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों का उपयोग किया जाएगा।

भोपाल में क्या बचा है?

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रस्तुत 2010 की रिपोर्ट में पाया गया था कि यूनियन कार्बाइड संयंत्र के अंदर और आसपास की मिट्टी बेंजीन हेक्साक्लोराइड, एल्डीकार्ब और आर्बेरिल जैसे कीटनाशकों से दूषित थी, इसके अलावा और केमिकल थे जो सेहत पर गंभीर दुष्परिणामों का कारण बन सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, संयंत्र के अंदर और आसपास की मिट्टी की मात्रा 11 लाख मीट्रिक टन है।

यूनियन कार्बाइड ने संयंत्र के अंदर जहरीले कचरे से भरे 21 डंप पिट्स बनाए थे और 1977 में जहरीले कचरे को इकट्ठा करने के लिए लैंडफिल के रूप में काम करने के लिए बाहर 32 एकड़ जमीन पर सोलर वाष्पीकरण तालाब बनाए थे। इसे साफ करने की बात अभी तक नहीं की गयी है। एक्टिविस्टों का कहना है कि भोपाल में यूनियन कार्बाइड प्लांट के आसपास करीब सवा लाख की आबादी इस प्रदूषण के संपर्क में है तथा कचरे को पीथमपुर ले जाने से और अधिक लोगों पर प्रदूषण का खतरा मंडराएगा।

क्यों हटाया गया कचरा

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दो दिसंबर, 1984 की रात यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से कीटनाशक बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट लीक हो गई थी, जिसकी वजह से करीब 3,500 लोग तुरंत मारे गए थे। समाचार एजेंसी एफपी के मुताबिक, अनुमान है कि बाद के दिनों में गैस के असर की वजह से कम से कम 25,000 लोगों की जान गई होगी। तब से लेकर आज तक फैक्ट्री के टॉक्सिक कचरे को परिसर से हटाया नहीं जा सका था।

इस कचरे में कई तरह के खतरनाक पदार्थ थे और एक रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें ऐसे केमिकल भी शामिल थे, जिन्हें 'फोरेवर केमिकल' (Forever Chemical) कहा जाता है, यानी ऐसे केमिकल जिनके टॉक्सिक गुण कभी खत्म नहीं होते। कई अध्ययनों में यह बात बताई गई कि इस कचरे से रिसाव हो रहा है जो जमीन के नीचे जाकर भूजल में मिल रहा है और लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है।

क्या कहते हैं एक्टिविस्ट

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

चार एक्टिविस्ट संगठनों ने मिल कर एक बयान जारी किया है, जिसमें उन्होंने दावा किया कि पर्यावरण और वन मंत्रालय की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक, कचरे को जलाने के बाद 900 टन अवशेष बनेंगे, जिनमें जहरीली भारी धातुओं की बहुत अधिक मात्रा होगी। संगठनों के अनुसार, पीथमपुर में लैंडफिल से पिछले कुछ सालों से जहरीला रिसाव जारी है और संयंत्र से निकलने वाले गैस और जहरीले कचरे के कारण स्थानीय लोगों में कई बीमारियों भी फैली हैं।

एक्टिविस्टों ने महीनों तक जलने वाले कचरे से होने वाले जहरीले प्रदूषण का मुद्दा भी उठाया है। एक्टिविस्टों का कहना है कि बेहतर विकल्प यह होता कि यूनियन कार्बाइड को ही कहा जाता कि वो स्टेनलेस स्टील के डिब्बों में इस सारे कचरे को ले जाती क्योंकि उसके पास इसके सुरक्षित निष्पादन के तरीके हैं।

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