Social Media Addiction: जिन्दगी की रील, स्टेटस और स्टोरी, देखें कैसे बर्बाद हो रही आपकी जिंदगी

Social Media Addiction: पश्चिम बंगाल की उस महिला और उसके पति के रूप में जिन्होंने सोशल मीडिया पर मशहूर होने के पागलपन में अपने 8 महीने के बच्चे को बेच दिया और मिले पैसे से आईफोन खरीद लिया ताकि इंस्टाग्राम पर बढ़िया बढ़िया रील्स बन सकें।

Update:2023-08-02 08:34 IST

Social Media Addiction: ललक और वह भी मशहूर होने की। रास्ता भी बेहद आसान। हाथों में स्मार्टफोन और उसमें समाई सोशल मीडिया। काफी खूबसूरत और बेहतरीन मंजर लगता है।लेकिन हर चमकती चीज के पीछे अंधेरा भी होता है और वही अंधेरा है इस सोशल मीडिया के पीछे। मशहूर होने, पहचान बनाने, लोगों से स्वीकारोक्ति पाने के लिए सोशल मीडिया ने कई कई रास्ते बना दिये हैं। मुफ्त के रास्ते। बिना मेहनत वाले रास्ते। कुछ भी कर देने वाले रास्ते। लेकिन इनकी कीमत भी चुकानी पड़ती है जो पता तब चलती है जब बहुत कुछ चला जाता है।

आप मानें या न मानें, सोशल मीडिया है बहुत ताकतवर। कुछ भी कर सकने की ताकत है इसमें। इतनी ताकत है कि ये किसी मां से उसके हाथों उसका बच्चा बिकवा सकता है। नजीर सामने है, पश्चिम बंगाल की उस महिला और उसके पति के रूप में जिन्होंने सोशल मीडिया पर मशहूर होने के पागलपन में अपने 8 महीने के बच्चे को बेच दिया और मिले पैसे से आईफोन खरीद लिया ताकि इंस्टाग्राम पर बढ़िया बढ़िया रील्स बन सकें। ठीक ऐसा ही हुआ था चीन में जहां एक दंपति ने आईफोन खरीदने के लिए अपनी 18 दिन की नवजात बेटी को बेच दिया था। और यही हुआ ऑस्ट्रेलिया में जहां एक महिला की आईफोन के बदले अपने अजन्मे बच्चे की अदला बदली का सौदा कर डाला था। इन लोगों को आई फ़ोन क्यों चाहिए था? सोशल मीडिया के लिए इस्तेमाल करने के लिए।

ये है सोशल मीडिया की ताकत। दिलोदिमाग को कंट्रोल करने की ताकत। इसी सोशल मीडिया पर रील्स और स्टोरी डालने के फेर में मुंबई में एक दंपति समुद्र की लहरों में समा जाते हैं जबकि उनका बेटा "मम्मी मम्मी अब आ जाओ" चिल्लाता रह जाता है। कर्नाटक में एक 23 वर्षीय युवक रील्स बनाने की कोशिश में वॉटरफॉल में बह गया पता भी नहीं चला। सूरत में रील बनाने वक्त एक लड़का मालगाड़ी की चपेट में आ गया।

डरावनी दास्तानें बहुत सी हैं, हमारे समाज की ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से हैं। कहीं टिकटॉक तो कहीं इंस्टाग्राम तो कहीं स्नैपचैट, वाईबू या फेसबुक है।

सोशल मीडिया की ताकत का अंदाज इस डेटा से

सोशल मीडिया की ताकत का अंदाज़ इस डेटा से भी लगा लीजिये : भारत में व्हाट्सएप के सक्रिय यूजर्स हैं 53 करोड़ 14 लाख से ज्यादा, इंस्टाग्राम के 51 करोड़ 69 लाख, फेसबुक के 49 करोड़ 27 लाख, टेलीग्राम के 38 करोड़ 40 लाख और फेसबुक मैसेंजर के 34 करोड़ 39 लाख यूजर्स। अब तो थ्रेड्स नाम से नया प्लेटफॉर्म भी आ गया है, आगे और भी आएंगे। और करोड़ों लोग जुड़ेंगे।

दुनियाभर की बात करें तो साल 2017 में 2.73 अरब लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे थे जो 2023 में 4.89 अरब हो चुके हैं और 2027 तक 5.85 अरब हो जाएंगे। हैरान करने वाले आंकड़े हैं। दुनिया की कुल आबादी जैसा कि संयुक्त राष्ट्र ने बताया है 2023 में 8 अरब से थोड़ा ज्यादा है। सो दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी सोशल मीडिया में जुटी हुई है।

ये बहुत बड़ी संख्या है। जो बढ़ती ही जा रही है। क्या क्या गुल खिला रही है ये एक्टिव यूजर्स को खुद भी नहीं पता। दरअसल सोशल मीडिया का मतलब ही हमने कुछ गलत लगा लिया है। सोशल क्या है? ज़ाहिर है, सामाजिक होना। समाज की रवायतों का पालन करना। जो समाज में घुलमिल कर रहे, सबसे मिले जुले वो सोशल है और यही सोशल एक्टिविटी है। मीडिया यानी माध्यम, एक जरिया। अब सोशल मीडिया जुड़ाव पैदा करने की बजाए दूरियां बनाने लगे, बच्चे को ही बिकवा दे,जानें लेने लगे तो फिर क्या कहेंगे?

शादी ब्याह, बर्थडे में सेल्फी पॉइंट

सेल्फी किस तरह हमारे जीवन में घुस चुकी है, इसका अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि अब शादी ब्याह, बर्थडे, या किसी भी आयोजन में बाकायदा सेल्फी पॉइंट बनाये सजाए जाते हैं। रेस्तरांओं, होटलों में स्थायी सेल्फी पॉइंट नज़र आते हैं। सरकारों तक ने शहरों - कस्बों, रेलवे, बस स्टेशनों में सेल्फी की पक्की व्यवस्था कर दी है। पहले ऐसा नहीं था। अब ये जिंदगी का हिस्सा है। सब एक दूसरे की सेल्फी, रील, स्टेटस, स्टोरी देख रहे हैं, लाइक कर रहे हैं और भूलते जा रहे हैं। कोई स्टोरी, रील या स्टेटस स्थायी नहीं है। कल क्या किया था वह तक याद नहीं रहता। फिर भी ऐसी होड़ लगी है कि बच्चे बेचने तक की नौबत है। "सोशल दुनिया" में जहां सब कुछ अनलिमिटेड है। बस लाइक्स चाहिए, भले ही उसके लिए जान की बाज़ी क्यों न लगानी पड़े। हाथ में एक स्मार्टफोन है, जिसमें कई कई सोशल ऐप हैं। सबमें अपडेट डालनी है, ताकि कहीं पिछड़ न जाएं, लाइक्स घट न जाएं।

सवाल दीगर है, इतने विशाल सोशल मीडिया यूनिवर्स से क्या जिंदगियां बेहतर हुईं हैं? दुनिया ज्यादा सुंदर हुई है? जिंदगी आसान बनाने के इंतजाम हुये हैं? जवाब हमारे घर, बाहर, चारों तरफ मौजूद हैं। इनके जवाब रील्स, स्टेटस और स्टोरी से मिल पाएंगे क्या कभी?

इसका उत्तर ईमानदारी से तलाशें तो हाथ लगता है- कभी नहीं। क्योंकि यह तो अभी उस घटाटोप अँधेरे का शैशव काल है। अभी यौवन शेष है। सोशल मीडिया की शुरूआत 1990 के दशक के मध्य में जियोसिटिज , क्लासमेट्स डॉट कॉम और सिक्स डिग्रीज डॉट कॉम जैसे प्लेटफ़ॉर्मों के आगमन से हुई। सिक्सडिग्रीज अद्वितीय थी क्योंकि यह वास्तविक लोगों के लिए उनके वास्तविक नामों का उपयोग करके जुड़ने के लिए डिज़ाइन की गई पहली ऑनलाइन सेवा थी। इसमें प्रोफ़ाइल, मित्र सूची और स्कूल संबद्धता जैसी विशेषताएं शामिल थीं, जिससे यह सीबीएस न्यूज के अनुसार "पहली सोशल नेटवर्किंग साइट" बन गई । 2000 के दशक की शुरुआत में फ्रेंडस्टर और माईस्पेस जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने व्यापक लोकप्रियता हासिल की। इसके बाद फ़ेसबुक यूट्यूब और ट्विटर सहित अन्य प्लेटफ़ॉर्म आए। जिसके दंश के रुप में।

हम आदमी की आत्मा व संवेदना मरते हुए देख रहे हैं। भाव के ख़ात्मे के रूप में देख रहे है। भौतिकता के अंतहीन विस्तार के रूप में देख रहे हैं। रिश्तों की मौत के रूप में देख रहे हैं। वास्तविक दुनिया की जगह आभासी दुनिया के विस्तार के रूप में देख रहे हैं। नैतिक व मौलिक पतन के रुप में देख रहे हैं। समाज को बाज़ार व आदमी को प्रोडक्ट बनते जाने के रूप में देख रहे है। कार्ल मार्क्स ने कहा था कि सभी सामाजिक संबंध आर्थिक चंपों पर निर्भर करते हैं। एडम स्मिथ ने आर्थिक मानव की संकल्पना पेश की थी। हास्य अभिनेता महमूद में एक फ़िल्म बनाई थी- सबसे बडा रुपैया । ये तीनों अलग अलग कालखंड में कहे गये या घटें। उस समय उनकी बड़ी आलोचना हुई थी। ख़ासतौर से तो भारत में। पर जब कहीं बच्चा बिकते, कहीं वॉटर फाल में बहते, कहीं ट्रेन की चपेट में आने की घटनाएँ सुनते देखते हैं तो लगता है आदमी के अंतहीन पतन का एक सिरा कब का देख रहे थे।

(लेखक पत्रकार हैं ।)

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