'अटल' जयन्ती विशेष: पत्रकारिता से राजनीति के शिखर तक पहुंचने वाले अकेले राजनेता

आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी भाषण कला को लेकर काफी मशहूर रहे। देश के सच्चे सपूत भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी छह लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके थे।

Update:2019-12-25 12:58 IST

श्रीधर अग्निहोत्री

आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी भाषण कला को लेकर काफी मशहूर रहे। देश के सच्चे सपूत भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी छह लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके थे। उत्तर प्रदेश के लखनऊ और बलरामपुर, गुजरात के गांधीनगर, मध्यप्रदेश के ग्वालियर और विदिशा और दिल्ली की नई दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले वाजपेयी इकलौते नेता हैं।

ग्वालियर के मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे थे अटल

मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक मध्यवर्गीय परिवार में 25 दिसंबर, 1924 को अटल जी का जन्म हुआ। पुत्र प्राप्ति से हर्षित पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी को तब शायद ही अनुमान रहा होगा कि आगे चलकर उनका यह पुत्र विश्वपटल पर भारत का नाम रोशन करेगा। अटल जी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में एमए की उपाधि प्राप्त की। अटल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे।

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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय योगदान करते हुए वे 1942 के आंदोलन में जेल गए। 1951 में भारतीय जनसंघ का गठन हुआ जिसके अटल जी संस्थापक सदस्य थे। भारत के बहुदलीय लोकतंत्र में अटल जी ऐसे राजनेता थे,जो प्रायरू सभी दलों को स्वीकार्य रहे। व्यक्तित्व की इसी विशेषता के कारण वे 16 मई, 1996 से 31 मई, 1996 तथा 1998 - 99 और 13 अक्तूबर, 1990 से मई, 2004 तक तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे।

कूटनीतिज्ञ, लोकप्रिय जननायक और कुशल प्रशासक

राजनीति में दिग्गज राजनेता, विदेश नीति में संसार भर में कूटनीतिज्ञ, लोकप्रिय जननायक और कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ वे एक अत्यंत सक्षम और संवेदनशील कवि, लेखक और पत्रकार भी थे। विभिन्न संसदीय प्रतिनिधिमंडलों के सदस्य और विदेश मंत्री तथा प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विश्व के अनेक देशों की यात्राएं कीं और भारतीय कूटनीति तथा विश्वबंधुत्व का ध्वज लहराया। वे राष्ट्रधर्म (मासिक), पाञ्चजन्य (साप्ताहिक), स्वदेश (दैनिक) और वीर अर्जुन (दैनिक) के संपादक रहे। उनकी अनेक पुस्तकें और कविता संग्रह प्रकाशित हैं। देश की आर्थिक उन्नति, वंचितों के उत्थान और महिलाओं तथा बच्चों के कल्याण की चिंता उन्हें हरदम रहती थी।

वाजपेयी 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार और सर्वात्तम सांसद के गोविन्द बल्लभ पंत पुरस्कार, 2015 में सर्वाच्च सम्मान भारत रत्न सहित अनेक पुरस्कारों व सम्मानों से विभूषित थे। विभिन्न विषयों पर अटल जी द्वारा रचित अनेक पुस्तकें और कविता संग्रह प्रकाशित हैं। वह पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।

लालकृष्ण आडवाणी के साथ भाजपा की स्थापना की

अटल बिहारी वाजपेयी ने लालकृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर भाजपा की स्थापना की थी और उसे सत्ता के शिखर पहुंचाया। भारतीय राजनीति में अटल-आडवाणी की जोड़ी सुपरहिट साबित हुई। अटल बिहारी देश के उन चुनिन्दा राजनेताओं में से एक थे, जिन्हें दूरदर्शी माना जाता था। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में ऐसे कई फैसले लिए जिसने देश और उनकी खुद की राजनीतिक छवि को काफी मजबूती दी। इसे अटल जी के विराट व्यक्तित्व की बानगी ही कहेंगे कि चाहे पक्ष हो या फिर विपक्ष हर किसी को वो न सिर्फ भाते थे बल्कि हर किसी के दिल में उतर जाते थे। इसी के चलते उनके बीमार होने पर हर कोई उनके लिए दुआ कर रहा था। वह एक कुशल वक्ता थे और शब्दों पर उनकी कितनी जबरदस्त पकड़ थी वह उनके भाषणों से साफ झलकती है।

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संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहली बार दिया हिंदी में भाषण

संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनका हिंदी में दिया भाषण आज भी गर्व की अनुभूति देता है। पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी 1957 में बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से जनसंघ के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े। उस साल जनसंघ ने उन्हें लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर तीन लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ाया था। लखनऊ में वह चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वे दूसरी लोकसभा में पहुंच गए। वाजपेयी के अगले पांच दशकों के लंबे संसदीय करियर की यह शुरुआत थी।

जवाहरलाल नेहरू ने एक बार अटल जी को लेकर भविष्यवाणी की थी कि यह शख्स एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा। संसद में जब वाजपेयी जी बोलते थे तो उनके धुर विरोधी भी उन्हें सुनना पसंद करते थे। यहां तक की नेहरु जी भी उनका भाषण ध्यान से सुना करते थे। शब्दों के धनी अटलजी राजनीति में लिए अपने कड़े फैसलों के साथ ही अपनी कविताओं के लिए भी दुनिया भर में मशहूर थे। वे पहले गैर कांग्रेसी नेता थे जिन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया।

बेस्ट पार्लियामेंटेरियन से नवाजा गया से भी नवाजा गया

आज जब संसद में पक्ष-विपक्ष के हंगामे और आरोप-प्रत्यारोप का घटिया स्तर दिखता है तो वह दौर याद आता है जब अटल जी विपक्षी सांसदों को धैर्य से सुनते थे और धैर्य और मर्यादा के दायरे में ही उसका माकूल जवाब भी देते थे।यकीनन, आज संसद में इस व्यवहार को सीखने की जरूरत है, ताकि सदन की कार्यवाही में लगने वाली आम जनता की खून-पसीने की कमाई बर्बाद न हो। वाजपेयी जी अपने साक्षात्कारों में अमूमन कहा करते थे कि वह शुरू से ही पत्रकार बनना चाहते थे, लेकिन दुर्भाग्य से राजनीति में आ गए। वे राजनीति में दिग्गज राजनेता, विदेश नीति में संसार भर में समादृत कूटनीतिज्ञ, लोकप्रिय जननायक और कुशल प्रशासक थे।

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अमेरिका से सम्बन्ध बेहतर बनाये

अटलजी और बुश के शासनकाल में भारत और अमेरिका के संबंधों ने नए स्तर को छुआ। इससे पहले भारत और अमेरिका के बीच के रिश्तों में बहुत फासला था। अटल बिहारी वाजपेयी को भारत-पाक के रिश्तों को ठीक करने के लिए भी जाना जाता है। 1999 में जब सरकार बनी तो अटलजी दो दिन के लिए पाकिस्तान यात्रा पर गए। उन्होंने दिल्ली से लाहौर बस सेवा की शुरू करने का एक ऐतिहासिक फैसला लिया। बस सेवा शुरू होने के बाद पहले यात्री के तौर पर उन्होंने पाकिस्तान विजिट किया। भारत-पाकिस्तान सीमा के वाघा बॉर्डर पर उनका स्वागत तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने किया था।

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यहीं से भारत-पाक के नए रिश्तों की शुरूआत हुई। कारगिल युद्ध शुरू होने के बाद भी यह बस सेवा जारी रही, लेकिन साल 2001 में पार्लियामेंट अटैक के बाद इसे रोक दिया गया। 16 जुलाई 2003 में संबंधों में सुधार के लिए इसे फिर से शुरू किया गया। साल 2004 में इस्लामाबाद में हुए सार्क शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए अटल जी इस्लामाबाद पहुंचे थे जहां पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत बेनजीर भुट्टो के साथ भी उनकी मुलाकात हुई। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने साल 2000 में भारत का दौरा किया था। क्लिंटन 22 सालों में भारत का दौरा करने वाले पहले राष्ट्रपति थे। उनसे पहले 1978 में जिमी कार्टर ने सबसे पहले भारत का दौरा किया था। इस यात्रा के दौरान क्लिंटन 5 दिन के लिए भारत में रुके।

पडोसी देशों से सम्बन्ध सुधारे

अटल जी का बांग्लादेश से भी काफी करीबी रिश्ता था। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भी उनकी मुरीद थी। शेख हसीना का कहना था कि अटल जी हमारे करीबी मित्र थे। बांग्लादेश की आजादी के लिए भी उन्होंने काफी योगदान किया था। 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अटल जी के योगदान के लिए बांग्लादेश सरकार ने उन्हें बांग्लादेश लिबरेशन वार ऑनर से सम्मानित किया था। उनका पूरा राजनीतिक जीवन दूसरे राजनेताओं के लिए आदर्श था। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में नैतिकता के उच्च मापदंड स्थापित किए। उनके ऊपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा। उनका राजनीतिक जीवन पूरी तरह पाकसाफ था।

स्वतंत्रता से पहले और बाद में भी देश के लिए जिए

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत माता के एक ऐसे सपूत थे, जिन्होंने स्वतंत्रता से पूर्व और पश्चात भी अपना जीवन देश और देशवासियों के उत्थान एवं कल्याण के लिए न्योछावर कर दिया। जिनकी वाणी से असाधारण शब्दों को सुनकर आम जन उल्लासित होते रहे और जिनके कार्यों से देश का मस्तक ऊंचा हुआ। उन्हें भारत की संस्कृति, सभ्यता, राजधर्म, राजनीति और विदेश नीति की गहरी समझ थी। बदलते राजनीतिक माहौल में गठबंधन सरकार को सफलतापूर्वक बनाने, चलाने और देश को विश्व में एक शक्तिशाली गणतंत्र के रूप में प्रस्तुत कर सकने की करामात अटल जी जैसे करिश्माई नेता के बूते की ही बात थी। प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में जहां उन्होंने विभिन्न देशों से संबंध सुधारने के लिए अभूतपूर्व कदम उठाए, वहीं अंतरराष्ट्रीय दवाबों के बावजूद गहरी कूटनीति तथा दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए पोखरण में परमाणु विस्फोट किया तथा कारगिल युद्ध जीता था।

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