Subramanian Swamy: लड़ाई नहीं, भारत-चीन के साथ आर्थिक हित ही साधना चाहता है अमेरिका

Subramanian Swamy: ब्लिंकेन पहले ही कह चुके हैं कि अमेरिका और भारत के रिश्तों के कोर में आर्थिक संबंध हैं। यही हित अमेरिका और चीन के बीच हैं। चीन के साथ अमेरिकी व्यापार हाल के दशकों में काफी बढ़ा है।

Update:2023-06-15 14:56 IST
Subramanian Swamy (photo: social media )

Subramanian Swamy: भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी लगातार मोदी सरकार पर आलोचनाओं के बाण छोड़ते रहते हैं। इस कड़ी में स्वामी ने प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा पर सवाल उठाए हैं। स्वामी ने एक ट्वीट में कहा है कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने चीन यात्रा के पहले एक बयान दिया है कि अमेरिका - भारत रिश्ते की गहराई में सिर्फ आर्थिक संबंध हैं, इसमें चीन से लड़ाई के लिए जगह नहीं है। स्वामी ने सवाल उठाया है कि ऐसी स्थिति में मोदी की अमेरिका यात्रा के क्या मतलब हैं।

आर्थिक हित की बात

दरअसल, ब्लिंकेन पहले ही कह चुके हैं कि अमेरिका और भारत के रिश्तों के कोर में आर्थिक संबंध हैं। यही हित अमेरिका और चीन के बीच हैं। चीन के साथ अमेरिकी व्यापार हाल के दशकों में काफी बढ़ा है। आज, अमेरिका किसी भी अन्य देश की तुलना में चीन से अधिक आयात करता है, और चीन अमेरिकी वस्तुओं और सेवाओं के लिए सबसे बड़े निर्यात बाजारों में से एक है। इस व्यापार ने अमेरिका को उपभोक्ताओं के लिए कम कीमतों और निगमों के लिए उच्च लाभ के रूप में मदद की है। यही नहीं, अमेरिकी फेडरल बांड्स में सबसे बड़ा निवेशक चीन ही है। ऐसे में अमेरिका आर्थिक हितों को दरकिनार कर सोचना शुरू कर देगा, ये मानना और उम्मीद करना ही गलत होगा।

वहीं, सुब्रमण्यम ने एक ट्वीट करते हुए पीएम मोदी को एक सलाह दी है। उन्होंने लिखा कि 'मोदी को अमेरिका की अपनी प्रस्तावित यात्रा रद्द कर देनी चाहिए क्योंकि भारत में कई जगहों पर आग लगी हुई है। इसके अलावा अमेरिका ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर कुछ भी सार्थक प्रस्ताव नहीं दिया है। व्यापार को वाणिज्य मंत्रालय पर ही छोड़ देना चाहिए।' कुछ तरह ही विदेश नहीं जाने की नसीहत दी।

Modi should cancel his proposed visit to USA because India is on fire at a number of places. Further the US has proposed nothing worthwhile on India’s national security issues. Vyapar should be left to Commerce Ministry. A PM should not go abroad at a drop of a hat.

ब्लिंकेन जा रहे चीन

कोरोना आने पर और डोनाल्ड ट्रंप के पूरे कार्यकाल के दौरान अमेरिका के चीन से संबंध बहुत खराब रहे। बिडेन के आने के बाद भी रिश्ते सुधरने की बजाए जासूसी गुब्बारों, ताइवान और साउथ चाइना सी के मसले पर और खराब हो गए। डिप्लोमैटिक और राजनीतिक रिश्ते भले ही खराब हों लेकिन आर्थिक रिश्ते अब भी मजबूती से कायम हैं। विदेश मंत्री ब्लिंकेन की इस हफ्ते चीन यात्रा का आधार भी यही है। ये दौरा दोनों महाशक्तियों के बीच संबंधों को सुधारने के लिए अमेरिका का एक बड़ा दांव है।

ब्लिंकेन की बीजिंग यात्रा, 2018 के बाद से किसी अमेरिकी विदेश मंत्री द्वारा पहली और बिडेन प्रशासन के एक अधिकारी द्वारा वहां की पहली कैबिनेट स्तर की यात्रा है। विदेश विभाग के प्रवक्ता मैट मिलर ने कहा कि वाशिंगटन के साथ संबंधों को जिम्मेदारी से प्रबंधित करने के लिए संचार की खुली लाइनों को बनाए रखने के महत्व पर चर्चा करने के लिए वह वरिष्ठ चीनी अधिकारियों से मिलेंगे।

आर्थिक रिश्ते

अमेरिका, बीजिंग के साथ अपने संबंधों को "जोखिम से मुक्त" करना चाहता है - जिसका मतलब है कुछ निर्यातों को प्रतिबंधित करते हुए चीन के साथ व्यापार करना है, जैसे कि प्रौद्योगिकी जिसका उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक दोनों देश एक नई वास्तविकता में प्रवेश कर सकती हैं जिसमें सिर्फ ओवरलैप होते हितों पर ही टकराव होगा। दोनों ही देश आर्थिक हितों पर टकराव नहीं चाहते हैं।

अमेरिका और भारत

जहां तक भारत और अमेरिका के रिश्तों की बात है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा से पहले, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के केंद्र में आर्थिक संबंध हैं। ब्लिंकेन ने यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल (यूएसआईबीसी) के सालाना इंडिया आइडियाज समिट को संबोधित करते हुए कहा, "हमारी रणनीतिक साझेदारी के केंद्र में हमारे आर्थिक संबंध हैं। और राष्ट्रपति बिडेन और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में यह दिन पर दिन मजबूत होता जा रहा है।

रिकॉर्ड लेवल पर व्यापार

ब्लिंकेन ने कहा कि पिछले साल दोनों देशों के बीच व्यापार 191 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, जिससे अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया। अमेरिकी कंपनियों ने भारत में विनिर्माण से लेकर दूरसंचार तक कम से कम 54 अरब डॉलर का निवेश किया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में, भारतीय कंपनियों ने आईटी, फार्मास्यूटिकल्स और अन्य क्षेत्रों में 40 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है और 4,25,000 नौकरियों का सृजन किया है।

भारत - चीन तनाव और अमेरिका

भारत और चीन के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। लद्दाख में चीन की बेजा हरकत, अरुणाचल पर निगाह ये सब दोनों देशों के बीच कटुता बढ़ाने वाला रहा है। लद्दाख में टकराव के बावजूद अमेरिका ने भारत के समर्थन में कोई बहुत बड़ा कदम नहीं उठाया है। इज़ दिशा में बस यही हुआ है कि अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन का हाल में भारत दौरा हुआ जिसमें अमेरिका से हथियार खरीद पर बातचीत हुई।

अमेरिका चुनाव

अगले साल अमेरिका में चुनाव होने हैं। राष्ट्रपति जो बिडेन फिर से दौड़ में हैं। ऐसे में वह न तो चीन के प्रति नरम रवैया रखने का जोखिम उठा सकते हैं और न ही आर्थिक मोर्चे पर झगड़ा कर के। ऐसे में चीन से युद्ध तो संभव नहीं दिखता। हां, युद्ध जैसी मुद्रा की अपेक्षा जरूर की जा सकती है। इसी क्रम में अमेरिका नाटो प्लस के विस्तार की रणनीति में लगा हुआ है।

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